फूल खिल पड़े


(क्रम जोड़ने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)
वह उन पक्षियों को निशाने लगाता रहता। दोस्तों को कहता,’’आओ, दिखाऊं, निशाना कैसे लगाया जाता है?’’ हनी दोस्तों को बिजली की तारों पर बैठे पक्षियों की कतार दिखाता हुआ पूछता,’’बताओ, पहले कौन से पक्षी पर निशाना लगाऊं? पहला,दूसरा,तीसरा,पांचवां या सातवां ?’’
अगर कोई दोस्त तीसरे पक्षी को निशाना बनाने को कहता तो अगले ही क्षण वह पक्षी फड़फड़ाता हुआ नीचे आ गिरता और देखते ही देखते किसी कुत्ते का निवाला बन जाता।
एक दिन हमारी गली के बाहर पीपल पर फाख्ताओं का एक जोड़ा मस्ती में बैठा हुआ था। हनी के हाथ में एयरगन थी और उसकी पैंट की जेब गोलियों से भरी पड़ी थी। हनी ने उसी समय फाख्ताओं के जोड़े की ओर निशाना साधा और एयरगन का घोड़ा दबा दिया। अगले ही क्षण एक फाख्ता तड़पती हुई नीचे आ गिरी। हनी अपनी निशानेबाजी पर खुश होता दोस्तों से बोला,’’लो उठाओ।’’
उस समय मैं धोबी से कपड़े प्रेस करवाकर घर की ओर आ रहा था। मैंने फाख्ता को तड़पते हुए देखा। मैंने फटाफट प्रेस किए हुए कपड़े की गठरी नजदीक खड़े एक मोटरसाइकिल की सीट पर रखी और जख्मी फाख्ता को उठाकर उसे एक टोंटी से पानी पिलाने की कोशिश की लेकिन कुछ ही समय के बाद उसकी गर्दन एक तरफ  लुढ़क गई।
मैंने देखा, हनी आगे जाकर पेड़ पर बैठे एक तोते को निशाना बना रहा था।
हनी घर आकर मम्मी को बड़े गर्व से अपनी निशानेबाजी के बारे में बताता। यह भी बताता कि उसने आज कितने पक्षियों पर निशाना लगाया है। मम्मी उसे कभी उसे करने से मना न करते। 
एक बार तो हनी से मम्मी के माथे पर भी एयरगन की गोली लग गई। एक दिन जब वह घर के लोहे वाले गेट पर चढ़ती जा रही एक गिलहरी को अपना निशाना बना रहा था तो गिलहरी तो चुस्ती से दीवार पर चढ़कर भाग गई लेकिन गोली गेट की सलाखों से निकल कर घर में प्रवेश कर रही मम्मी के माथे पर जा लगी। वह पड़ोस में कोई काम गई थीं। ज्यों ही वह घर के गेट खोलने लगी तब तक एयरगन से गोली छूट चुकी थी। अचानक ऐसी घटना भी घट सकती है, हनी सोच भी नहीं सकता था। परमात्मा का श्ुक्र था कि गोली मम्मी की आंख में लगने से बचाव रह गया।
    इस घटना के बाद मैंने एक दिन उसकी गोलियों वाली डिब्बी उठाकर नाली में फेंक दी। बाद में वह काफी देर तक ढूं़ढता रहा, मुझसे और मम्मी से पूछता रहा लेकिन उसे न मिली। वह तिलमिलाता हुआ फिर दुकान से जाकर गोलियों की दो डिब्बियां खरीद लाया। 
हनी जब किसी चीज़ के लिए जिद्द करता और मम्मी मना करने की कोशिश करते तो वह आसमान सिर पर उठा लेता। मम्मी थोड़ी देर में ही उसकी इच्छा पूरी कर देतीं। नतीजा यह निकला कि हनी को अपनी हर जिद्द मनवाने का ढंग आ गया। हठ करके पूरी हुई मांगों ने उसकी कई और नाजायज मांगें भी पूरी करने की राह खोल दी थीं। उसके मन में यह अहसास भर दिया गया कि यदि कोई इच्छा हो तो उसे जिद्द करके आसानी से पूरा करवाया जा सकता है।
दुनिया में कोरोना वायरस फैलने लगा था जिसे कोविड-19 के नाम के साथ जाना जा रहा था। कोई कहता था कि यह बीमारी चमगादड़ों से फैली है, कोई किसी देश को ज़िम्मेदार ठहरा रहा था। इस महामारी ने दुनिया में बहुत सी जानें ले ली थीं। डॉक्टरों नर्सों ने लोगों को बचाने के लिए अपनी जिं़दगी दाव पर लगाई हुई थी। सरकार ने सभी स्कूल बंद कर दिए थे। विद्यार्थियों की पढ़ाई का कोई नुक्सान न हो, इसलिए स्कूलों की तरफ से अध्यापक विद्यार्थियों को आनलाइन पढ़ाने लगे थे। 
मैंने मम्मी से कहा कि हमारे तेजिन्द्र मैडम और बाकी सर हमें अगले सोमवार से मोबाइल पर आनलाइन स्टडी करवायेंगे इसलिए मुझे एक मोबाइल की ज़रूरत है। यह सुनकर मम्मी ने बड़े प्यार से मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोलीं, ’’घोने बेटा, तुम फिर वही बातें करते रहते हो। पढ़ाई में क्या रखा है? तुझे पता है न कि अपने यहां कौन सी नौकरी रखी पड़ी हैं। बड़ी-बड़ी पढ़ाई करके भी लड़के-लड़कियां चपड़ासी की नौकरी के लिए मारे-मारे फिरते हैं। मैं मुखी से बात कर आई हूं। तुम अगले सप्ताह उसकी दुकान पर चले जाया करो। वहां उसे काम करने वाले एक लड़के की ज़रूरत है। तुम जब काम सीख गये तो हम तुझे एक बड़ी सी दुकान खोल देंगे।’’
मम्मी ने ’बड़ी सी दुकान’ शब्द इतने लमकाकर बोले कि एक बार तो मुझे मजा ही आ गया। कल्पना करके सोचने लगा,’’वाह ! क्या मैं सचमुच ही इतनी बड़ी दुकान का मालिक बनूंगा ?’’
और अगले ही दिन से स्कूल से मेरा नाता टूट गया। मैं मुखी अंकल की दुकान पर पहुंचा। मम्मी के साथ उनकी थोड़ी-बहुत जान-पहचान थी। मुखी अंकल की दुकान बड़े बाज़ार में थी। बाज़ार हमारे घर से दूर था। मैं उन को ’अंकल जी’ कहने लगा। उनकी पत्नी सलोचना का स्वभाव काफी अच्छा था। मैं उन्हें ’आंटी जी’ कहने लगा। ,
सुबह होते ही मैं मुखी अंकल की दुकान पर चला जाता। मैं पहने पानी का छिड़काव करता। फिर  दुकान में और बाहर भी झाड़ू लगाता। मुखी अंकल धूप-बत्ती करके परमात्मा का नाम जपते और फिर अपनी कुर्सी पर बैठ जाते।
एक दिन सलोचना आंटी ने मुझे कहा,’’घोने बेटा, तुम रात को इतनी दूर पैदल जाते हो। तुम यहां ही क्यों नहीं रह जाया करते?’’
मुझे लगा जैसे सलोचना आंटी ने मेरे दिल की बात बूझ ली थी। वहां तो मैं केवल सोने के लिए ही जाता था। वैसे भी वहां का माहौल अब मेरे लिए घुटन पैदा कर रहा था। मैंने घर आकर मम्मी से बात की तो वह बोलीं,’’ये तो तूने मेरे दिल की बात बूझ ली है बेटा। अच्छा रहेगा यह। तुम सारा दिन वहां काम करके थक जाते हो। फिर इतनी दूर घर पैदल आते हो। वहीं रह लिया करो। ठीक है।’’
मेरे मन के किसी कोने से आवाज़ आई,’’मम्मी मेरा कितना ख्याल रखते हैं।’’
मैंने अगले दिन सलोचना आंटी से कहा,’’आंटी जी, ठीक है अब मैं आपके पास ही रहा करुंगा।’’
सलोचना आंटी बोलीं,’’बेटा, मैंने तो पहले ही कहा था। यह तुम्हारा अपना घर ही तो है। अपनी दूसरी मंजिल पर जो कमरा बना हुआ है, खाना खाकर तुम वहां सो जाया करो। लेकिन हां, क्या तुम्हारे मम्मी का तुम्हारे बिन मन लग जाएगा?’’ (क्रमश:)
 ’’मन?’’ बात मेरे मुंह में ही रह गई,’’हां आंटी जी, कोई बात नहीं। मम्मी ने खुद ही कहा था कि मैं इतनी दूर पैदल आता आता थक जाता हूं। आपके पास ही रह जाया