करवट ले रहा है भारत का मुस्लिम समाज  

इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत के साथ मुस्लिम समाज भी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में करवट ले रहा है। इस बात से भी कोई इंकार नहीं कर सकता कि जब से केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ है, देश का हर क्षेत्र, हर समाज, हर सोच और हर पन्थ अपनी सोच में परिवर्तन ला रहा है। देश की अपनी बुनियादी सोच बदल रही है। गहरी निराशावादिता जिसमें देश को जानबूझ कर डाला गया था और भयभीत रखा गया था, उससे देश उबर रहा है। 2014 से पहले मुस्लिम देशों की नाराज़गी का हव्वा खड़ा कर कर के हमें आतंकवाद का विरोध भी करने से रोका जाता था। हमें सिर्फ आतंकवाद की कड़ी निंदा का अधिकार था। 
कश्मीर का हाल तो देश में सबसे बुरा हो चुका था। पांच लाख कश्मीरी हिन्दुओं में से हजारों को मार कर और अनेक महिलाओं की जघन्य दुष्कर्म के बाद हत्या के पश्चात निकाल बाहर कर दिया गया था और इसे कश्मीरी पंडितों के पलायन का नाम देकर देश को धोखे में रखा गया। उसे जातिवाद की अफीम पिला कर नशे में रखा गया ताकि कोई विरोध न हो मगर आज वही कश्मीर है जो महबूबा मुफ्ती के तिरंगे के बहिष्कार की घोषणा पर खौल उठता है। विलय दिवस 26 अक्तूबर को पूरे जम्मू कश्मीर में तिरंगा दिवस भी मनाता है और स्वयं बड़बोली महबूबा मुफ्ती के घर और पीडीपी के मुख्यालय पर भी तिरंगा फहराया जाता है। कश्मीरी समाज यहीं नहीं ठहरता। महबूबा मुफ्ती के विरोध में इसी दिन पीडीपी के तीन आधार स्तम्भ जिसमें एक मुस्लिम भी है, पीडीपी से त्यागपत्र दे देते हैं। जो कश्मीर पंडितों के नरसंहार और उन्हें घाटी से बाहर कर देने की घटना पर उफ तक नहीं करता, आज वह तिरंगे के बहिष्कार पर लालचौक में भी तिरंगा फहराने की कोशिश करता है। पूरे कश्मीर को तिरंगों से स्थानीय जनता द्वारा पाट दिया जाता है। 
आज जातिवाद से बुरी तरह ग्रसित बिहार में चुनाव जातिवाद से हट कर अन्य सम सामयिक मुददों पर लड़ा जा रहा है। यहाँ तक कि एमआईएमआईएम के सदर ओवैसी तक बहुत दबी जुबान से इस्लाम के नाम पर वोट मांग रहे हैं और एक वाक्य में तीन बार अपने भारतीय होने की घोषणा करते नहीं थकते। देश में मदरसों, धार्मिक जमातों और विभिन्न इस्लामिक धार्मिक और शिक्षण संस्थानों ने मुस्लिमों को उकसाने और विद्रोह की स्थिति पैदा करने के तो अनथक प्रयास करने शुरू किए थे, उनमें भी काफी हद तक कमी आई है। तीन तलाक के इक्का-दुक्का केसों को छोड़ कर मुस्लिम महिलाओं को इस कुरीति और हलाला की अकल्पनीय जलालत से निजात मिली है। अगर कोई केस होता भी है तो तलाकशुदा महिला को उचित आर्थिक मदद और समाज में सम्मानित स्थान मिलना प्रारम्भ हो चुका है। अक्सर होने वाले हिन्दू-मुस्लिम दंगों और मुस्लिम प्रेरित दंगों में भी उल्लेखनीय गिरावट इन पांच सालों में आई है।  इसके अतिरिक्त आए दिन लाउडस्पीकर लगा कर मुस्लिमों को भड़काने और हिन्दुओं को धमकियां देने वाले धार्मिक जलसों की संख्या शून्य तक पहुंच चुकी है। मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में बात बात पर सरकारी सम्पत्ति फूंक देने की मानसिकता तो जैसे समाप्त होती जा रही है। बात बात पर फतवेबाजी की मानसिकता भी उल्लेखनीय रूप से कम हुई है और अगर कोई फतवा दिया भी जा रहा है तो उसके साइड-इफेक्ट्स को ध्यान में रख कर ही दिया जा रहा है। आज का अधिकाँश मुसलमान स्वयं को राष्ट्रवादी घोषित करने में जरा सा भी नहीं झिझकता। अगर कोई धार्मिक जमात या कोई मुल्ला मौलवी समाज को बांटने वाली बात करता भी है तो मुस्लिम समाज के ही अनेक लोग उसके विरोध में उठ खड़े होते हैं और उसकी निंदा करने लगते हैं। 
सबसे खुशी की बात यह है कि जिस मुस्लिम महिला की गवाही को इस्लाम में आधी गवाही मानने का प्रचलन था, वही अब उसे बराबरी के दर्जे पर लाने की मानसिकता की ओर तेजी से बढ़ने लगा है। आज परिवार और समाज में मुस्लिम महिला को हिकारत नहीं, इज्जत की नजर से देखा जाने लगा है। जिस मुस्लिम समाज में महिला को धार्मिक विषयों पर अपनी राय तक रखने का अधिकार तक नहीं था, उसे इस क्षेत्र में भी मान्यता चाहे वह धीरे धीरे ही सही, मिलनी शुरू हो गई है। आज धार्मिक प्रकरणों में उसकी आवाज अनसुनी होकर नक्कारखाने में तूती की आवाज़ नहीं बनती है। उसे मान्यता मिल रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुस्लिम महिला काजियों और मुफ्तियों द्वारा जारी फतवों को समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा माना जाना और सर झुका कर उनका पालन किया जाना है।
मुस्लिम समाज में हाशिए पर पड़ी महिलाओं का जागरण और धार्मिक मामलों में उनकी पैठ स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि मुस्लिम समाज भी करवट ले रहा है और बहुसंख्यक समाज के समान अपनी महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए कदम दर आगे बढ़ने का सफल प्रयास कर रहा है। यह देश और भारतीय समाज के लिए भी एक शुभ संकेत है। दोनों समाजों के सहयोग से ही भारत आगे बढ़ेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। सचमुच भारत के मुस्लिम समाज का एक वर्ग करवट ले रहा है और समय के साथ स्वयं में परिवर्तन ला रहा है। (अदिति)