कृषि कानूनों के विरुद्ध ़फतवा माने जा रहे हैं बरोदा चुनाव परिणाम

बरोदा उपचुनाव को केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए कृषि बिलों के साथ जोड़कर भी देखा जा रहा था। कांग्रेस व इनेलो लगातार यह प्रचार कर रही थीं कि बरोदा की जनता भाजपा सरकार के खिलाफ मतदान करके केंद्र सरकार द्वारा पारित 3 कृषि बिलों के विरोध में अपना रोष ज़ाहिर करेगी। दूसरी तरफ भाजपा नेता लगातार यह दावा कर रहे थे कि केंद्र सरकार द्वारा पारित 3 कृषि बिल किसानों के हक में हैं और बरोदा की जनता भाजपा उम्मीदवार को जितवाकर कृषि बिलों के समर्थन में अपनी मोहर लगाएगी। भाजपा ने बरोदा उपचुनाव जीतने के लिए न सिर्फ अपनी पूरी ताकत लगाई थी बल्कि जजपा नेता भी निरंतर भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में बरोदा हल्के में जनसभाएं करते रहे और यह भी दावा करते रहे कि भाजपा उम्मीदवार रिकार्ड मतों से विजयी होगा। अब भाजपा के चुनाव हारने और कांग्रेस उम्मीदवार के चुनाव जीतने के बाद कांगे्रस ने भाजपा की इस हार को सीधे-सीधे केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए 3 कृषि बिलों के विरोध में हरियाणा की जनता का फतवा बताया है। उनका यह भी कहना है कि प्रदेश की जनता ने यह जता दिया है कि वह इन कृषि बिलों के पूरी तरह खिलाफ है और सरकार के खिलाफ उसने अपना रोष प्रकट किया है। कांग्रेस निरंतर इस बात को मुद्दा बना रही है कि बरोदा की जनता के जनादेश को देखते हुए केंद्र सरकार को इन कृषि बिलों को तुरंत वापस ले लेना चाहिए। 
असफल रही भाजपा की रणनीति
बरोदा उपचुनाव जीतने के लिए भाजपा की ओर से बनाई गई रणनीति सफल नहीं हो पाई। कांग्रेस जहां अपनी सीट बरकरार रखने में सफल रही, वहीं भाजपा इस सीट को जीतने का मौका चूक गई। हालांकि भाजपा के पास सीट जीतने का एक अच्छा अवसर था लेकिन उम्मीदवार के चयन को लेकर भाजपा सही रणनीति नहीं बना पाई। आमतौर पर उपचुनाव जीतना सत्तापक्ष के लिए आसान हुआ करता है लेकिन भाजपा ने पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र व जाटों के प्रभाव वाले बरोदा हल्के में किसी जाट उम्मीदवार पर भरोसा जताने की बजाय गैर जाट सैलिब्रिटी व नामी पहलवान योगेश्वर दत्त पर दांव लगाया था। 
भाजपा के पास जाटों में 3-4 दमदार प्रत्याशी थे लेकिन भाजपा ने पिछले चुनाव में बरोदा से हारने वाले योगेश्वर दत्त को ही उम्मीदवार बनाया। पहले उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा से टिकट की मांग कर रहे डॉ. कपूर नरवाल या जजपा नेता भूपेंद्र मलिक अथवा डॉ. केसी बांगड़ को भाजपा अपने चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतार सकती है। यह भी माना जा रहा था कि उपचुनाव में उम्मीदवार जजपा का होगा और चुनाव चिन्ह भाजपा का होगा ताकि दोनों पार्टियां उम्मीदवार को जितवाने पर पूरी ताकत लगा सकें। 
भाजपा खेमे से जो शुरुआती सूचनाएं आई थीं उनके अनुसार भाजपा द्वारा चुनाव जीतने के लिए किसी जाट उम्मीदवार को मैदान में उतारने के संकेत मिल रहे थे। तब यह माना जा रहा था कि भूपेंद्र मलिक या डॉ. कपूर नरवाल जैसा उम्मीदवार जाटों के गांव में अपने गौत्र व भाईचारे के नाम पर अच्छे खासे वोट हासिल कर लेगा और भाजपा उम्मीदवार होने के नाते उसे गैर जाट वोट भी मिल जाएंगे। लेकिन भाजपा ने भूपेंद्र मलिक या डॉ. नरवाल पर दांव लगाने की बजाय गैर-जाट सैलिब्रिटी पर दांव लगाना उचित समझा। हालांकि गठबंधन उम्मीदवार के पिछले चुनाव के मुकाबले वोट तो काफी बढ़ गए लेकिन वह जीत नहीं पाया। 
कारगर रही कांग्रेस की रणनीति
बरोदा सीट कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक रहे श्रीकृष्ण हुड्डा के निधन से खाली हुई थी और श्रीकृष्ण हुड्डा बरोदा सीट से 2009, 2014 व 2019 के चुनाव में लगातार 3 बार विधायक बने थे। इससे पहले वह 3 बार किलोई से भी विधायक रह चुके थे। कभी इनेलो में रहे डॉ. कपूर नरवाल चुनाव से पहले तक भाजपा में थे लेकिन भाजपा में उन्हें टिकट मिलने की कोई संभावना न होने व पार्टी द्वारा नज़रअंदाज़ किए जाने के कारण वह पिछले कुछ समय से कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के निरंतर सम्पर्क में थे और हुड्डा उन्हें बरोदा से कांग्रेस टिकट भी दिलाना चाहते थे। लेकिन चुनाव तक डॉ. नरवाल कांग्रेस में शामिल नहीं हुए थे और हुड्डा विरोधी खेमे के नेताओं ने डॉ. नरवाल को टिकट देने का यह कहते हुए विरोध करना शुरू कर दिया कि जो व्यक्ति कांग्रेस पार्टी का प्राथमिक सदस्य भी नहीं है, उसे टिकट दिए जाने से लोगों में गलत संदेश जाएगा। वैसे बरोदा हल्का पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा के हल्के किलोई के बिल्कुल साथ लगता है, इसलिए इसे भूपेंद्र हुड्डा के प्रभाव वाला हल्का भी माना जाता है। जब कांग्रेस हाईकमान डॉ. कपूर नरवाल को टिकट देने को राजी न हुआ तो अंतिम समय हुड्डा गुट की ओर से जिला परिषद सदस्य और कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा के करीबी इंदुराज नरवाल का नाम आगे बढ़ाया गया और कांग्रेस आलाकमान ने इंदुराज को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दिया। इंदुराज के लिए जहां भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा ने पूरी ताकत लगाई, वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा और हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी विवेक बंसल ने भी खूब मेहनत की। इसका नतीजा यह रहा कि कांग्रेस उम्मीदवार न सिर्फ 10 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीत गया बल्कि कांग्रेस अपनी सीट बरकरार रखने में भी सफल रही। 
इनेलो फिर हुई निराश
बरोदा उपचुनाव को इनेलो ने भी पूरी ताकत और शिद्दत से लड़ा था और पार्टी का दावा था कि बरोदा उपचुनाव में इनेलो उम्मीदवार भारी मतों से विजयी होगा। इनेलो प्रत्याशी के लिए जहां पार्टी प्रमुख व पूर्व उपमुख्यमंत्री चौधरी ओम प्रकाश चौटाला ने पूरे हल्के के हर गांव का दौरा किया, वहीं बरोदा उपचुनाव के लिए पार्टी विधायक अभय सिंह चौटाला भी करीब 2 महीनों से लगातार लगे हुए थे। यह सीट लम्बे समय तक चौधरी देवीलाल परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती रही है। 1977 से लेकर 2004 तक लगातार 7 चुनाव चौधरी देवीलाल परिवार के उम्मीदवार जीतते रहे थे। उस समय यह सीट आरक्षित हुआ करती थी। इनेलो बरोदा उपचुनाव जीतकर प्रदेश में फिर से अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन हासिल करना चाहती थी लेकिन चुनावी नतीजे ने एक बार फिर इनेलो को निराश किया और इनेलो उम्मीदवार न सिर्फ अपनी ज़मानत गंवा बैठा बल्कि पार्टी प्रत्याशी को मात्र 4 प्रतिशत वोट मिले और पार्टी मुख्य चुनावी मुकाबले से बाहर होकर चौथे स्थान पर चली गई। इस उपचुनाव में इनेलो उम्मीदवार को एलएसपी उम्मीदवार राज कुमार सैनी से भी कम वोट हासिल हुए यानि मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा उम्मीदवारों के बीच ही सिमट कर रह गया था। 
26 को हड़ताल की तैयारियां
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और केंद्र व राज्य सरकार के कर्मचारियों के संगठनों द्वारा 26 नवम्बर की राष्ट्रव्यापी हड़ताल में हरियाणा के कर्मचारी भी शामिल होने जा रहे हैं। हरियाणा में सर्व कर्मचारी संघ और हरियाणा कर्मचारी महासंघ से जुड़े हुए कर्मचारी संगठनों ने इस हड़ताल में शामिल होने का ऐलान किया है। हालांकि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल व परिवहन मंत्री मूलचंद शर्मा ने कर्मचारी संगठनों से इस हड़ताल में शामिल न होने का आग्रह किया है। इसके बावजूद कर्मचारी संगठन हड़ताल के लिए अड़े हुए हैं। कर्मचारी संगठनों ने हड़ताल की तैयारियां भी कर ली हैं और अब सबकी नजरें इस हड़ताल की सफलता पर लगी हुई हैं। 
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