" प्रकाशोत्सव पर विशेष "समूची मानवता के मार्ग-दर्शक श्री गुरु नानक देव जी

आज से साढ़े पांच सदियां पहले श्री गुरु  नानक देव का आगमन श्री ननकाना साहिब (पाकिस्तान) की पावन धरती पर हुआ। उस समय यह नगर राय भोए की तलवंडी के तौर पर जाना जाता था। श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश के बाद इस नगरी को श्री ननकाना साहिब होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। कूड़-कुसत्त के बोझ से गिरती, डोलती, अज्ञानता के अंधेरे में भटकती मानवता को श्री गुरु नानक देव जी के आगमन पर्व से एक अद्वितीय सुख-शांति नसीब हुई। श्री गुरु नानक देव जी की विचारधारा समूची मानवता को जोड़ने वाली है। आप जी ने पहली बार मानवीय समानता, सांझीवालता और स्वतंत्रता वाली क्रांतिकारी विचारधारा दे कर संसार का मार्ग दर्शन किया। गुरु साहिब की विचारधारा ने मनुष्य को धार्मिक पक्ष से सत्य, सामाजिक पक्ष से बराबरी एवं आर्थिक पक्ष से अपनी सच्ची-सुच्ची किरत से संतुष्ट रहना सिखाया। उनकी यह विचारधारा आज भी नयी नवीन है। श्री गुरु नानक देव जी ने एक करता पुरख से मानवता को जोड़ने के लिए सरल जीवन मार्ग दिखाया। उन्होंने धार्मिक क्षेत्र में फैली बुराइयों का खंडन किया और परमात्मा की प्राप्ति के लिए जो दिशा निर्धारित की, वह समाज के प्रत्येक वर्ग को जोड़ने वाली है। गुरु साहिब जी ने मूल-मंत्र में परमात्मा के स्वरूपों की व्याख्या की और उसकी प्राप्ति का मार्ग बताया। जपुजी साहिब में गुरु साहिब ने सच्चे मनुष्य की अवस्था बयान करते हुए स्पष्ट किया है कि नाम सिमरण से मन में से विकारों की मैल साफ हो जाती है और मन जागृत हो जाता है। जो मनुष्य परमात्मा की याद में अपने मन को टिका कर रखते हैं, वे उसी में अभेद्य हो जाते हैं और नाम मार्ग पर चल कर सरबत के भले वाला जीवन व्यतीत करते हैं। गुरु साहिब फरमाते हैं :
जिनी नामु धियाइया गए मसकति घालि।।
नानक ते मुख उजले केती छुटी नालि।। (अंग 8)

श्री गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म को सिर्फ आध्यात्मिकता तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि यह धर्म मानवीय जीवन के पक्ष से नेतृत्व करने वाला बनाया। उन्होंने मनुष्य को दया, सेवा, संतोष, सहज, संयम, नम्रता, आत्म-निर्मल एवं स्वाभिमान वाला जीवन जीने के योग्य बनाया। गुरु साहिब ने अपने समकालीन समाज में आर्थिक असमानता, लूट-पाट, छीना-झपटी के देखते हुए नाम जपो, किरत करो और वंड छको के मूलभूत सिद्धांत का प्रचार किया। अर्थात गुरु साहिब की विचारधारा मनुष्य का प्रत्येक पक्ष से नेतृत्व करने वाली है। धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक आदि  बारे बहुमुखी दिशाएं उनकी पावन गुरुवाणी में मिलती हैं। श्री गुरु नानक देव जी ने समाज में प्रचलित ऊंच-नीच के प्रचलन को नकारते हुए प्रत्येक मनुष्य को बराबर उठाया। समाज में बहिष्कृत और दबाए जा रहे लोगों की बेबसी को महसूस किया और उन्होंने उनको ‘नाम’ तथा ‘ज्ञान’ के मार्ग पर चलाया। श्री गुरु नानक देव जी के समय हिन्दुस्तानी समाज में महिला की स्थिति बड़ी बुरी थी। उसे पांव की जूती, दासी और पर्दे आदि में रहने वाली वस्तु ही समझा जाता था। महिला को आज़ादी प्रदान करने की शक्ति देने की प्रशंसा भी गुरु जी के हिस्से आई। उन्होंने महिला के सम्मान को हकीकी तौर पर बहाल करते हुए अपने पंथ में पुरुष के बराबर खड़ा कर दिया। श्री गुरु नानक देव जी विश्व की वह महान शख्सियत हैं, जिन्होंने किरत को धर्म के मूलभूत सिद्धांत के तौर पर लोगों के सामने लाकर रखा। गुरु साहिब ने गृहस्थ को प्रधानता देकर, दस नाखूनों की किरत करके सामाजिक जीवन जीने का संदेश दिया। गुरु जी ने सिद्धों-नाथों की प्रेरणा के प्रभाव में मुक्ति प्राप्ति के लिए जंगलों, पहाड़ों की कंदराओं में एकांतवास होने की निंदा की और गृहस्थ में रह कर, सेवा-सिमरण के द्वारा मानवीय जीवन का आनंद लेने का मार्ग दर्शाया। गुरु जी ने दस नाखूनों की सुच्ची किरत करने तथा वंड छकने का उपदेश दिया। उनके अनुसार पवित्र कमाई वही है, जो ईमानदारी से की गई हो। झूठ बोल कर, ठगी करके की गई कमाई, हक-सच की कमाई नहीं कही जा सकती। रिश्वत लेकर या भ्रष्ट तरीके से की गई कमाई लोगों का खून चूसने के बराबर है। यहीं बस नहीं, हक-सच से की गई कमाई को वंड छकन का उपदेश भी गुरु जी का विलक्ष्ण सिद्धांत है :
घालि खाइ किछु हथहु देइ।। 
नानक राहु पछाणहि सेइ।। (अंग 1245)

गुरु साहिब जी ने किरत कमाई को निर्मल तथा पवित्र करने के उद्देश्य से बांट कर छकने को प्रधानता दी। उनके  इस सिद्धांत में से ‘सरबत के भले’ की भावना प्रकट हेती ही। वंड छकने या ज़रूरतमंदों की सहायता करने के बारे गुरु जी के हुक्म से शर्त यह है कि यह सहायता मेहनत अथवा ‘घालि’ की कमाई में से ही होनी चाहिए न कि पाप की कमाई में से। इसलिए, अंत में यह कहा जा सकता है कि गुरु नानक देव जी सिर्फ सिखों के ही नहीं, बल्कि पूरी मानव जाति के सच्चे मार्ग-दर्शक हैं, जिन्होंने भ्रमों में भटक रही जनता का सही मार्ग-दर्शन करके, उसे परमात्मा के नाम-धर्म के रास्ते पर चलाया। उन्होंने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए धर्मशालाएं बनवाईं, लंगर की प्रथा कायम की। संगत-पंगत तथा सेवा-सिमरण के ऐसे अद्वितीय सिद्धांत मानवता के सामने रखे जो वर्तमान युग में भी स्थाई दिशा देने वाले हैं। हमें उनके दर्शाए मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। गुरु साहिब जी का 550वां प्रकाश पर्व सिख जगत द्वारा गत वर्ष मनाया गया है। उनकी पवित्र विचारधारा का प्रचार समाज में सुखद समरस माहौल के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसलिए आओ, श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर अपनी प्रथमिकताएं गुरु साहिब जी की सोच के अनुसार बनाएं और समूचे विश्व की खैर-सुख मांगें। 

-अध्यक्ष, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी,
श्री अमृतसर।