सीतामढ़ी जहां लव-कुश ने बांधा था श्री राम का ‘अश्वमेध घोड़ा’

श्री राम हिंदुत्व के जननायक हैं। उनका संस्कार और चरित्र हिंदुत्व समाज की प्राणवायु है। राम मर्यादा पुरुषोत्तम और समदर्शी के साथ पारदर्शी हैं। हिंदुत्व के पथ में राम और सीता पग-पग पर समाहित हैं। श्री राम सिर्फ एक नाम नहीं, वह हमारे जीवन दर्शन हैं। रामराज्य का यह दर्शन अयोध्या से लेकर पूरे भारत और दुनिया में बिखरा पड़ा है। अयोध्या और राम एक दूसरे के पूरक हैं। हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार अयोध्या सप्त पुरियों मथुरा, माया , काशी, कांची, अवंतिका और द्वारका में शामिल है। श्री राम की नगरी अयोध्या को अथर्ववेद में भगवान की नगरी कहा गया है। श्री राम ने अपना पूरा जीवन लोक कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने हमेशा अयोध्या में धर्म को राज्य की नीति में शामिल किया। अयोध्या के शाब्दिक विश्लेषण से पता चलता है कि अ से ब्रह्मा, य से विष्णु और ध से रुद्र यानी त्रिदेव का स्वरूप है। अयोध्या जहां ब्रह्मा, विष्णु और शंकरजी स्वयं विराजमान हैं। अयोध्या के कण-कण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बसे हैं। सरयू नदी के पावन तट पर बसी है अयोध्या। इसकी स्थापना महाराज मनु ने की थी। इसे साकेत के नाम से भी जाना जाता है लेकिन श्री राम के जीवन चरित्र से संबंधित स्थल पूरे भारत भूमि में है। उत्तर प्रदेश के श्री राम से सम्बन्धित प्रमुख धर्मस्थलों में एक है सीता समाहित स्थल यानी सीतामढ़ी जो धर्मनगरी काशी-प्रयागराज के मध्य भदोही के दक्षिणांचल में गंगा तट पर बसा है।  
सीतामढ़ी महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली है। धार्मिक मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में इसी पवित्र स्थली पर लव-कुश कुमारों ने प्रभु श्री राम के ‘अश्वमेध यज्ञ’ के घोड़े को बांधा था और उनकी चतुरंगिणी सेना को पराजित किया था। मां सीता अग्नि परीक्षा के दौरान यहीं धरती में समाहित हुई थीं। अनादिकाल से यहां आषाढ़ मास की शुक्लपक्ष को नौमी मेले का आयोजन होता है। यह मेला पूरे नौ दिन चलता है। यहां प्रभु वाल्मीकि सीता का निवास, लवकुश का जन्मस्थल आदि को रेखांकित करते हुए तुलसीदास ने आत्मानुभूति प्रकट कर दी कि यहां माता जानकी के चरण कमलों के चिन्ह विद्यमान हैं। भागीरथी यानी मां गंगा इस पवित्र तीर्थ स्थल को छूती हुई चंद्राकार होते हुए निकलती हैं। महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली ठीक गंगा तट पर है। जब प्रभु श्री राम ने अयोध्या की प्रजा के विश्वास की रक्षा के लिए मां सीता का अग्नि परीक्षा के लिए निर्वासन किया था तो यहां घोर जंगल था। जिस जगह मां सीता धरती में समाहित हुई थीं, वहां दो मंजिला भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है। मंदिर के निचले तल में धरती में समाहित होती मां सीता की भव्य प्रतिमा है जबकि ऊपरी तल पर कांच की कलात्मकता के साथ मां सीता की मनमोहक प्रतिमा स्थापित की गई है। परिसर में 108 फीट आसमान को नापती महाबली बजरंग बली की प्रतिमा पर्यटकों को दूर से अपनी तरफ आकर्षित करती है। एशिया की सबसे ऊंची प्रतिमाओं में हनुमान प्रतिमा भी है। कैलाश पर्वत पर शिव की जटा से निकलती गंगा मन को मोह लेती हैं। यहां निर्मित झील और फव्वारे रात की रोशनी में सुंदरता नयनाभिरान बनाते हैं। भारत के पर्यटन मानचित्र पर सीता समाहित स्थल बेहद तेजी से उभरा है। यहां पूरे साल देश और दुनिया से पर्यटक आते हैं। अब तो विदेशी सैलानियों की भी आमद बढ़ने लगी है।  पर्यटन स्थल पर पहुंचने के बाद पूरा प्राकृतिक वातावरण आपको मिलेगा। प्रयागराज से राष्ट्रीय राजमार्ग से चल कर भीटी और वाराणसी से आने पर जंगीगंज नामक स्थल पर उतर कर सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। दोनों स्थलों से सीतामढ़ी की दूरी 11 किमी के आसपास है। पर्यटन स्थल तक निजी वाहन चलते हैं। (उर्वशी)