हर्ड इम्यूनिटी बन रही है, तो फिर वैक्सीन क्यों ?

अमरीका और यूरोप कोरोना के कहर का सामना कर रहे हैं, तो भारत में कोरोना का संक्रमण लगातार उतरता जा रहा है। योरुपीय देशों और अमरीकी महादेशों के संयुक्त राज्य अमरीका में मौसम ठंडा होने के साथ जब कोरोना के मामले बढ़ रहे थे, तब भारत को भी यह सोच कर कंपकंपी लग रही थी कि कहीं दिसम्बर और जनवरी की शीतलहर में यहां भी कोरोना की दूसरी लहर न आ जाए। प्रथम लहर में प्रतिदिन कोरोना के मामले 98 हज़ार के आसपास पहुंच गए थे। फिर नये मामलों में गिरावट भी आ रही थी, लेकिन उस गिरावट से न तो यहां के लोगों को और न ही नीति निर्माताओं को सुकून मिल रहा था, क्योंकि शरद ऋतु का डर सता रहा था लेकिन यह डर भी गलत साबित होता दिख रहा है। उसका कारण यह है कि ठंड बढ़ने के साथ ही भारत में कोरोना के मामले लगातार गिरते जा रहे हैं। एक समय था, जब कोरोना के मामले प्रति दिन 90 हजार से ज्यादा बढ़ रहे थे और कुल सक्रिय मरीजों की संख्या 10 लाख को भी पार कर गई थी, लेकिन गत 16 दिसम्बर को मात्र 24 हजार नये लोग कोरोना से पीड़ित पाए गए। उसके पहले सोमवार को तो ये मामले 20 हजार के आसपास ही थे। रविवार को कम टैस्टिंग होता है, इसलिए सोमवार को कम मामले लगभग सभी सप्ताहों में आते रहे हैं, इसलिए उस दिन की आई रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया जाता, लेकिन बुधवार को मात्र 24 हजार नये आंकड़े आना और कुल सक्रिय कोरोना मरीजों की संख्या घट कर सवा तीन लाख हो जाना अब निश्चय ही सकून देता है।नये कोरोना मरीजों की संख्या में हो रही यह गिरावट लॉकडाउन के उठाए जाने के बाद आ रही है। यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र में तो एक समय प्रतिदिन कोरोना संक्रमण 26 हज़ार तक पहुंचा हुआ था, लेकिन वहां नये कोरोना संक्रमण के मामले में भारी गिरावट हुई है और वह 3 हजार से 4 हजार के बीच आ गया है। दिल्ली में तीसरी लहर का पीक 8600 प्रतिदिन पहुंच गया था, जो अब 2000 से नीचे लगातार चल रहा है। अभी सबसे ज्यादा चिंता केरल में है, लेकिन पूरे देश की बात की जाये, तो कोरोना का कहर लगातार कम होता जा रहा है। यदि भारत सरकार के विज्ञान और प्राद्यौगिकी विभाग के एक अघ्ययन की मानें, तो कोरोना कम होता होता आगामी फरवरी के अंत तक लगभग समाप्त हो जाएगा।अब सवाल उठता है कि कोरोना फरवरी महीने के अंत तक अपने आप ही समाप्त हो जाएगा, तो फिर वैक्सीन की ज़रूरत ही कहां रह जाएगी? वैक्सीन के बारे में जो खबरें आ रही हैं, वे बहुत उत्साहजनक नहीं हैं। कोई भी वैक्सीन शत-प्रतिशत सुरक्षा देने का दावा नहीं कर रहा। भारत में ऑक्सफोर्ड वाली जिस वैक्सीन के बारे में सबसे ज्यादा बात होती है और जिसे पुणे का एक वैक्सीन निर्माता भारी पैमाने पर तैयार कर रहा है, वह 62 फीसदी ही सुरक्षा दे पाती है। हैदराबाद में विकसित किया जा रहा भारत का देशी वैक्सीन, जिसे कोवैक्सीन नाम दिया गया है, के बारे में कहा जा रहा है कि वह 50 फीसदी सुरक्षा ही दे पाती है। इसके अलावा वैक्सीन द्वारा कब तक सुरक्षा मिलती रहेगी, इसके बारे में भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि लम्बी अवधि में उस वैक्सीन का क्या साइड इफेक्ट होगा, इसकी भी जानकारी किसी को नहीं है। वैक्सीन तैयार कर रही कम्पनियों को भी पता नहीं है कि साल, दो साल या बाद वाले सालों में इस वैक्सीन के कारण साइड इफेक्ट क्या होंगे। जाहिर है कि वैक्सीन लगाने के खतरे भी कम नहीं हैं। तो फिर वैक्सीन की ओर हम बहुत आशावादिता से क्यों देखें, खासकर तब जब हर्ड इम्यूनिटी के कारण भारत में कोरोना अपने आप समाप्त होता दिख रहा है, और हमारे वैज्ञानिक कह रहे हैं कि यह आगामी फरवरी महीने में खुद-ब-खुद समाप्त हो जाएगा। हमारे वैज्ञानिक भी यही मानते हैं कि भारत में हर्ड इम्यूनिटी तेजी से बढ़ रही है। उनकी मानें तो अब तक 91 करोड़ लोगों को यह संक्रमण हो चुका है, जिनमें करीब 1 करोड़ की जांच द्वारा पहचान की गई, जबकि 90 करोड़ लोगों की जांच ही नहीं की गई। उनमें से लगभग सभी को पता भी नहीं चला कि उन्हें कोरोना हुआ था और वे ठीक भी हो गए। इस तरह के लोगों के शरीर में कोरोना का एंटी बॉडी तैयार हो चुका है। उन्हें अब न तो फिलहाल कोरोना होने वाला है और न ही वे किसी को कोरोना दे पाएंगे। वैक्सीन के द्वारा भी एंटी बॉडी ही तैयार किया जाता है शरीर में ताकि कोरोना का संक्रमण न लग सके और यदि लगे भी तो वह बहुत कमज़ोर हो और बिना इलाज के ही ठीक हो जाए।हमारे वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में बहुत तेजी से हर्ड इम्यूनिटी बनी है और इसका कारण भारत के लोगों की अव्यवस्था रही है। उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ढंग से नहीं किया और मॉस्क के प्रति भी ज्यादातर लापरवाह ही बने रहे। संक्रमण के बावजूद ज्यादातर मामलों में कोई समस्या नहीं आई और लोग अपने आप ठीक हो गए, तो इसके लिए भी वैज्ञानिक अलग अलग कारण बता रहे हैं या जानने की कोशिश कर रहे हैं। बढ़ती सर्दी के बीच भी कोरोना मामलों के नहीं बढ़ने के कारण के रूप में वे पहले से ही तैयार हर्ड इम्यूनिटी को ज़िम्मेदार बता रहे हैं। वे भारत के लोगों में व्याप्त अव्यस्था को इसका श्रेय दे रहे हैं। लोगों की अव्यवस्था और अनुशासनहीनता ही सही, लेकिन कोरोना की हर्ड इम्यूनिटी बन जाना और इसके कारण भारत का कोरोना मुक्ति की ओर तेजी से बढ़ना स्वागत योग्य कदम है। उम्मीद है कि जब दिसंबर का महीना समाप्त होगा, तो सक्रिय कोरोना मरीजों की संख्या अढ़ाई लाख तक आ जाएगी और नये संक्रमण के मामले प्रतिदिन 10 हज़ार से भी नीचे होंगे। लेकिन तब वैक्सीन की ज़रूरत ही कहां रह जाएगी? इसलिए केन्द्र और राज्य सरकारों को टीकाकरण को लेकर बहुत हड़बड़ी नहीं मचानी चाहिए, बल्कि फरवरी तक का इंतजार करना चाहिए। (संवाद)