नेपाल का घटनाक्रम एवं भारत

भारत के पुरातन साथी एवं मित्र पड़ोसी देश नेपाल में पिछले दशकों में जो बड़े परिवर्तन देखने को मिले हैं, वे आश्चर्यचकित करने वाले हैं। नेपाल हिमालय से घिरा हुआ एक छोटा सा देश है जो सदियों तक भारत का एक अच्छा पड़ोसी बना रहा है। दूसरी ओर चीन के साथ भी इसकी सीमाएं जुड़ती हैं, परन्तु भारत के साथ इसके संबंध सदैव घनिष्ठ रहे हैं। महात्मा बुद्ध का जन्म दो हज़ार वर्ष से भी पूर्व आज के नेपाल में ही हुआ था, परन्तु वह पूरी आयु भारत की धरती पर ही विचरण करते रहे थे क्योंकि उस समय दोनों देशों की सीमाएं कोई अधिक मायने नहीं रखती थीं। भारत की स्वतंत्रता के बाद भी नेपाल के साथ अच्छे संबंध ही नहीं बने रहे, अपितु दोनों देशों के नागरिक बिना किसी बाधा के एक-दूसरे देश में आते-जाते रहे, सभी तरह का कारोबार करते रहे तथा निवास करते रहे हैं। दोनों के बीच व्यापार भी चलता रहा है तथा किसी भी प्रकार की पाबंदियां नहीं रही हैं। आज भी लाखों नेपाली भारत में दशकों से निवास कर रहे हैं तथा यहां हर प्रकार का कारोबार एवं सरकारी नौकरियां भी कर रहे हैं। सैकड़ों वर्षों तक नेपाल की राजशाही ने सदैव भारत की ओर ही झुकाव रखा था परन्तु राजशाही के विरुद्ध समय-समय पर उठते रहे आन्दोलनों ने अंतत: उसकी शक्ति को कमज़ोर कर दिया था। उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में बड़ी परम्पराएं भी स्थापित की थीं। इसीलिए नेपाली कांगे्रस सहित अन्य कई पार्टियां भी राजनीतिक परिदृश्य पर उभरती रहीं तथा उनकी गतिविधियां एवं सत्ता प्रशासनिक क्षेत्र में भी स्थापित हो रही थीं परन्तु कुछ समय बाद नेपाल के अत्याधिक पिछड़ा होने के कारण वहां उभरे कम्युनिस्ट आन्दोलनों ने ज़ोर पकड़ना शुरू कर दिया था। उनके नेता अनेक गुटों में बंटे होने के बावजूद इस संघर्ष को आगे बढ़ाते रहे। इसलिए भिन्न-भिन्न परतों वाली कम्युनिस्ट पार्टियां सफल हुईं तथा राजशाही परम्परा का अंत हो गया। लम्बे संघर्ष एवं परिश्रम के बाद नया नेपाली संविधान अस्तित्व में आया जिसका आधार लोकतांत्रिक व्यवस्था ही बनी। इसके बाद समय-समय पर होने वाले चुनावों में पार्टियों की टूट-फूट होती रही। भिन्न-भिन्न वामपंथी दल शासन का अंग बनते रहे परन्तु वर्ष 2017 में सम्पन्न हुए आम चुनावों में वामपंथी दलों को भारी समर्थन प्राप्त हुआ। सरकार बनाने के लिए दो कम्युनिस्ट पार्टियों ने आपसी विलय किया और एक नई नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनाई। नि:संदेह राजशाही के अंत के बाद नेपाल पर प्रत्येक पक्ष से चीन का प्रभाव बढ़ता रहा। समय-समय पर चीन ने बहुत सी योजनाओं के लिए नेपाल की भारी आर्थिक सहायता भी की। इस विलय के बाद के.पी. शर्मा ओली प्रधानमंत्री बने। ओली को पहले से ही चीन समर्थक माना जाता रहा है। अपने कार्यकाल के दौरान भी उनका झुकाव अधिकतर चीन की ओर ही रहा है। इस काल के दौरान ही चीन ने नेपाल में अपना और प्रभाव बढ़ा लिया है। 
अब नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं में भारी मदभेद उभरने के कारण ओली ने पिछले महीने निचले सदन को भंग करने की घोषणा कर दी। संयुक्त पार्टी में पुष्प कमल दहल जो प्रचंड के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा दो पार्टियों के विलय में उन्हें नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का कार्यकारी चेयरमैन बनाया गया था, के साथ उभरे मदभेदों के कारण सरकार एवं पार्टी में भारी संकट उत्पन्न हो गया है। इस समय चीन का प्रत्यक्ष रूप में नेपाल के आंतरिक मामलों में किया जा रहा हस्तक्षेप भारत को अधिक सतर्क करने वाला है क्योंकि चीन का सदैव यह यत्न रहा है कि नेपाल के अपने प्रभाव को वह किसी न किसी रूप में भारत के विरुद्ध प्रयुक्त करे। भारत के लिए भी यह परीक्षा की घड़ी होगी कि वह इस समय नेपाल के साथ अपने अच्छे संबंधों एवं अच्छी दोस्ती को बनाए रखे। 

        -बरजिन्दर सिंह हमदर्द