अवसान की ओर जा रही है कांग्रेस

चिर-पुरातन राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ने स्वतंत्रता संघर्ष में भरपूर योगदान डाला था तथा भारत का संविधान बनाने एवं लागू करने में भी इसके नेताओं का बड़ा हाथ था। उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद एवं सरदार पटेल जैसे परिपक्व नेताओं ने पार्टी को मजबूत बनाने में भारी योगदान डाला था। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में देश आधुनिक पथों पर आया। स्वतंत्र भारत में कांग्रेस को बहुत बार लोगों ने अपना ़फतवा दिया एवं इस पर अपना विश्वास व्यक्त किया। आज देश जहां तक भी आगे बढ़ सका है, उसमें कांग्रेस के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। 
परन्तु पिछले कुछ दशकों में जिस प्रकार इस पार्टी ने पीछे की ओर मोड़ काटा है, वह अब खटकने लगा है। पार्टी की कारगुज़ारी को लेकर इसके बड़े नेताओं में भी बेचैनी दिखाई देने लगी है। इसका एक कारण इस राष्ट्रीय पार्टी का एक परिवार के गिर्द घूमते रहना भी है। इसके साथ ही यह भी सन्देश जाता है कि नेहरू-गांधी परिवार के बिना पार्टी निर्जीव हो जाएगी। लम्बी अवधि से पार्टी सभी प्रकार के चुनावों में पिछड़ती चली जा रही है। इसका आधार दुर्बल होता जा रहा है। कभी पार्टी का शासन देश के अधिकतर प्रांतों में होता था। आज इसका आधार सिकुड़ कर कुछ राज्यों तक ही रह गया है। इसका भविष्य भी अनिश्चित प्रतीत होने लगा है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने इसे एक प्रकार से चित्त करके रख दिया है। ऐसा कुछ राहुल गांधी के नेतृत्व में हुआ है। पार्टी के बहुत-से बड़े नेता यह महसूस करने लगे हैं कि राहुल गांधी के हाथों में पार्टी का भविष्य सुरक्षित नहीं है। इसी कारण पार्टी के साथ जुड़े रहे कई बड़े नेताओं ने लगभग चार मास पूर्व पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक लम्बा पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप में यह लिखा था कि पार्टी को पुन: अपने पांवों पर खड़ा करने के लिए भारी यत्न किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि यह पिछड़ कर रह गई है। इस पर विश्वास उठने के कारण ही पिछले बहुत-से चुनावों में पार्टी को पराजय मिली है। इस संबंध में उन्होंने राहुल गांधी पर अंगुली उठाई थी तथा अन्य नेताओं को लाये जाने की मांग की थी। राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में मिली लज्जाजनक पराजय को देखते हुये पार्टी अध्यक्ष के पद से त्याग-पत्र दे दिया था तथा फिर कई महीनों के बाद उनकी माता सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। यह सिलसिला आज भी जारी है। पार्टी के भीतर जिस प्रकार का माहौल बना है, उसे देखते हुये सोनिया गांधी की यह आंतरिक दुर्बलता अवश्य सामने आई है कि उनमें भी इंदिरा गांधी की भांति पुत्र मोह की बड़ी कमज़ोरी है। वह किसी भी ढंग से राहुल गांधी को पुन: पार्टी अध्यक्ष का पद दिलाने की इच्छुक हैं जिसके कारण पार्टी के भीतर असंतोष पैदा हुआ है जबकि ऐसी स्थिति में पार्टी को अपने भीतर झांकने की बड़ी ज़रूरत थी। चार मास बाद सोनिया गांधी ने पार्टी के असंतुष्ट नेताओं सहित एक बैठक बुलाई ताकि सभी को मना कर एक पथ पर लाया जा सके। वह पथ था राहुल गांधी को पुन: पार्टी अध्यक्ष का पद सौंपना। गुलाम नबी आज़ाद एवं आनंद शर्मा जैसे असंतुष्ट नेताओं को भी इस पथ पर चलना पड़ रहा है। अब यह प्रश्न शेष है कि राहुल गांधी के सिर पुन: पार्टी का ताज कब सजता है?
पिछले दिनों कांग्रेस ने अपना 136वां स्थापना दिवस मनाया है। इस समय इस महत्त्वपूर्ण दिवस पर सोनिया के उत्तराधिकारी राहुल गांधी की अनुपस्थिति सभी को अवश्य खटकी है क्योंकि इससे एक दिन पूर्व ही उन्होंने इटली के दौरे पर जाने को अधिमान दिया था। इससे ही उनकी प्रतिबद्धता का एहसास हो जाता है। दुर्बल हुई इस राष्ट्रीय पार्टी ने कब पुन: स्वस्थ होना है, इस संबंध में अभी स्पष्ट रूप में कुछ कहा जाना कठिन है, परन्तु इसका देश की राजनीति पर अत्याधिक बुरा प्रभाव पड़ रहा है। विपक्ष के कमज़ोर होने से लोकतंत्र भी कमज़ोर हो रहा है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द