भारत-बांग्लादेश बैठक बेनतीजा रहने की सम्भावना

इसकी कोई संभावना नहीं है कि नदी जल बंटवारे पर भारत और बांग्लादेश के बीच जनवरी 2021 की निर्धारित वार्ता बहुत प्रगति करेगी। इसका प्रमुख कारण पश्चिम बंगाल का चुनाव है। बांग्लादेश के लिए, यह अच्छी और बुरी खबर दोनों है। नकारात्मक हिस्सा यह है कि शुष्क मौसम के दौरान भारत से बांग्लादेश तक तीस्ता नदी का पानी छोड़े जाने पर अंतिम निर्णय में फिर से देरी हो सकती है। यह मामला 2011 से लंबित है, जिस वर्ष भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक विस्तृत योजना पर काम करने पर सहमति व्यक्त की थी कि तीस्ता के पानी को समान रूप से साझा किया जाएगा। ढाका में एक समारोह में दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच 2013 में हस्ताक्षर करने के लिए एक अंतिम समझौता तैयार था कि अचानक एक झटका लगा।बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी ढाका जाने वाली थीं, लेकिन उन्होंने अचानक अपनी यात्रा रद्द कर दी। इससे डॉ. सिंह और भारतीय प्रतिनिधिमंडल बेहद शर्मिंदा हुए। इससे भी बदतर, ममता ने खुद फार्मूला की बारीकियों पर सवाल उठाया। उनकी आपत्ति यह थी कि अगर इसे लागू किया जाता है, तो इस तरह के प्रावधान पांच महीने की लम्बी अवधि के दौरान उत्तरी बंगाल के जिलों को पूरी तरह से सुखा देंगे। उन्होंने कुछ अधिकारियों पर विवरण के बारे में उन्हें अंधेरे में रखने का आरोप लगाया।उनके अचानक इस फैसले से द्विपक्षीय संबंधों में नर्मी और भारत की राष्ट्रीय राजनीति में गिरावट आई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के बीच संबंधों में काफी खिंचाव आया।तब और अब के बीच, बांग्लादेश द्वारा तीस्ता प्रश्न को हल करने के लिए विभिन्न स्तरों पर बार-बार प्रयास किए गए हैं लेकिन सुश्री बनर्जी के अड़ियल रवैये ने प्रगति को रोक रखा है। उनके और बांग्लादेशी प्रधानमंत्री के बीच संबंध कथित तौर पर मधुर हैं। वे ज्यादातर मौकों पर उपहार और सद्भावना संदेशों का आदान-प्रदान करती हैं। लेकिन बांग्लादेश को अभी तक तीस्ता के पानी का उचित हिस्सा नहीं मिला है, जो कि एक बहाव देश के रूप में है। यह सवाल है कि क्या वर्तमान स्थिति में बांग्लादेश के लिए कोई सकारात्मक संकेत है?ढाका के साथ-साथ कोलकाता में भी एक अस्थायी लेकिन अनौपचारिक जवाब पर चर्चा की जा रही है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव निर्धारित होने के बाद बांग्लादेश के लिए अच्छी खबर हो सकती है। अगर भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे चलने वाली विपक्षी पार्टी बन जाती है, तो संभावना है कि तीस्ता नदी का मुद्दा बिना किसी देरी के सुलझा लिया जाएगा। इस विचार पर ढाका के राजनीतिक व मीडिया विश्लेषकों ने गंभीरता से चर्चा की है और अभी भी कर रहे हैं। बांग्लादेशी प्रिंट मीडिया के हालिया लेख पश्चिम बंगाल चुनावों में बांग्लादेश की गहरी दिलचस्पी का संकेत हैं।  शेख हसीना का तर्क है कि बांग्लादेश में तीस्ता द्वारा परोसा जाने वाला क्षेत्र बहुत बड़ा है। वहां रहने वाले लाखों लोग इसके पानी से वंचित हैं। टोरसा और अन्य नदियां पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक तुलनीय हिंटरलैंड या मानव निवास की सेवा नहीं करती थीं। 
ऐसी नदियों से पानी निकालने और इसे बांग्लादेश को देने की यांत्रिकी आसान नहीं होगी, क्योंकि वहां का भूभाग जटिल है। तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद है कि भाजपा बनर्जी के वैकल्पिक प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए बांग्लादेश को मनाने की कोशिश करेगी और भारत में उत्तर बंगाल के जिलों के लोगों को अलग नहीं करेगी। टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि इस तरह के फैसलों का चुनाव नतीजों से कोई लेना-देना नहीं है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शेख हसीना के बीच 17 दिसम्बर, 2020 को हुई सबसे हालिया बैठक के बाद एक संयुक्त बयान जारी किया गया। इसमेें कहा गया कि 2011 में उल्लिखित जल बंटवारे के फार्मूले को लागू करने के लिए भारत सरकार अभी भी सारे प्रयास जारी रखे हुए है। दिल्ली द्वारा विचार किया जाने वाला क्षेत्रीय सुरक्षा का मुद्दा एक और प्रश्न है। तीस्ता जल बंटवारे के मुद्दे पर तनाव के बीच, चीन ने हाल ही में बांग्लादेश मीडिया के अनुसार, ढाका को लगभग 300 मिलियन डॉलर की तत्काल सहायता की पेशकश की। इसका उद्देश्य नीचे की ओर तीस्ता में प्रवाह को पुनर्जीवित करने और बिना भारतीय पक्ष को जाने ऐसा करने की पेशकश की गई है।इस तरह की बात को भारत की राजग सरकार नहीं चाहेगी। संवेदनशील संकीर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर क्षेत्र से दूर नदी-संबंधित परियोजना पर वर्षों से काम कर रहे चीनी ’विशेषज्ञों की भीड़ की उपस्थिति भारत को स्वीकार्य नहीं होगी! (संवाद)