वैक्सीन की प्रतीक्षा समाप्त

पिछले वर्ष पूरे विश्व को अपनी मारक शक्ति से दहला कर रख देने वाली कोरोना महामारी से मानवता के बचाव हेतु वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई औषधि यानि वैक्सीन के उपलब्ध होने की प्रतीक्षा की घड़ियां समाप्त होने का समय अब जैसे बहुत करीब आ गया लगता है। बहुत संभव है कि कोरोना-निरोधी टीकाकरण अभियान की शुरुआत इसी सप्ताहांत अथवा अगले सप्ताह से हो जाए। भारत के लिए विशेष उपलब्धि की बात यह है कि यहां की आबादी के लिए जिस वैक्सीन कोविशील्ड को भारतीय औषधि महा-नियंत्रक ने मंज़ूरी दी है, वह पूर्णतया स्वदेशी धरातल पर निर्मित है हालांकि इसे बनाने वाली पुणे की कम्पनी सीरम ने इसका निर्माण आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय एवं अमरीकी कम्पनी एस्ट्राज़ेनेका के सहयोग से किया है। इसके साथ ही प्रसन्नता एवं सोने पर सुहागे वाली बात यह भी है कि औषधि महानियंत्रक ने हैदराबाद की कम्पनी बायोएनटैक द्वारा आविष्कृत वैक्सीन कोवैक्सीन से आपात् टीकाकरण की अनुमति भी दे दी है। इन दोनों औषधियों की मंज़ूरी से पूर्व इनके तीन-तीन चरणों पर मानवीय परीक्षणों के इतर अनेक तरह के सम्बद्ध परीक्षण भी किये गये।
वैसे, कोरोना महामारी के विरुद्ध टीकाकरण की पहली अच्छी खबर पिछले मास दिसम्बर में ब्रिटेन से मिली थी जब अमरीकी एवं जर्मन कम्पनियों के सहयोग से निर्मित फाईज़र वैक्सीन का टीका लगाया जाना शुरू हुआ था। इसके बाद अमरीका, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, कैनेडा, इसरायल, पानामा, आस्ट्रिया आदि देशों में भी टीकाकरण शुरू हुआ था। रूस और चीन ने भी अपने तौर पर वैक्सीन तैयार कर ली थी। भारत में भी एक अवसर पर फाईज़र के आयात की बात चली थी परन्तु कोविशील्ड और कोवैक्सीन को मंज़ूरी मिलना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वदेशी अभियान हेतु एक बड़ी सफलता माना जा सकता है। इस लिहाज से यह खबर भारतीय जन-मानस के लिए प्रसन्न होने की दोहरी खुराक हो सकती है। एक तो यह कि कोरोना से बचाव हेतु वैज्ञानिकों के प्रयास फल लाये हैं, और कि विश्व इतिहास में इससे पूर्व, किसी महामारी के निरोध हेतु इतनी शीघ्र कभी किसी वैक्सीन का आविष्कार नहीं किया जा सका। खुशी की दूसरी डोज़ यह है कि देश के वैज्ञानिकों ने विदेशी धरा से उपजी इस महामारी की काट पूर्णतया देशी ज़मीन पर की है। इससे यह भी आस बंधती है कि स्वदेशी पर निर्भरता बढ़ाने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयत्नों पर बूर पड़ने की उम्मीद बनने लगी है। 
इस प्रकार भारत में विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण का अभियान शुरू होने से वैश्विक धरातल पर इसे कोरोना महामारी के विरुद्ध मनुष्य की निर्णायक जंग करार दिया जा सकता है। कोरोना महामारी को लेकर स्वदेशी औषधि आविष्कारों का यह अगला चरण भी काफी सुखद प्रतीत होता है कि भारतीय धरती पर कोरोना निरोधी छह टीकों का विकास अग्रणी चरणों पर है। इन प्रयत्नों में वैज्ञानिकों को यदि सफलता मिलती है, तो नि:संदेह रूप से भारत में न केवल सभी पात्र लोगों का टीकाकरण सफलता से आरम्भ हो सकता है, अपितु भारत इन टीकों के निर्यातक देश के रूप में भी उभर सकता है। इस दृष्टिकोण से भारत एक बार फिर विश्व बन्धुत्व के तौर पर नेतृत्व देने में  सक्षम हो सकता है। भारतीय औषधि महानियंत्रक द्वारा इन दोनों औषधियों के मानव-शरीर हेतु पूर्णतया कारगर करार दिये जाने से वैश्विक तौर पर इन्हें मान्यता हासिल होने की सम्भावना इस लिए भी बढ़ जाती है कि इनको एक से दूसरे स्थान पर लाने-ले जाने हेतु किसी बड़े ताम-झाम की ज़रूरत नहीं पड़ती। भारतीय वातावरण को सहन करने में सफल रहने वाली इन दोनों वैक्सीनों के लिए फाईज़र की भांति किसी खास शीत तापमान की आवश्यकता भी नहीं पाई गई। सम्भवत: यही कारण है कि ब्रिटेन में भी आक्सफोर्ड की औषधि से टीकाकरण शुरू कर दिया गया है। 
भारत सरकार द्वारा किये जाते दावों के अनुसार पूरे देश को चार ज़ोनों में बांट कर पहले चरण पर 30 करोड़ कोरोना योद्धाओं खास तौर पर मैडीकल वर्गों से जुड़े लोगों को यह टीका लगाया जाएगा। इसके बाद आवश्यकता के अनुरूप अन्य क्षेत्रों का विस्तार किया जाता रहेगा। 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को टीका न लगाया जाने और वरिष्ठ जनों का टीकाकरण प्राथमिक आधार पर किये जाने का फैसला भी उल्लेखनीय माना जा सकता है। पंजाब कभी कोरोना के भीषण प्रकोप को सहन करने वाले प्रांतों में एक माना जाता रहा है। पंजाब सरकार ने केन्द्र से यह अनुरोध किया है कि पंजाब को वैक्सीन वितरण के मामले में अग्रिम कतार में रखा जाए। बेशक पंजाब में कोरोना का अब अधिक संक्रमण नहीं है, परन्तु इस मामले में यह प्रांत अभी भी नाज़ुक क्षेत्र में है। वैसे भी, पंजाब के स्वास्थ्य मंत्रालय ने दावा किया है कि प्रदेश में प्रतिदिन चार लाख लोगों का टीकाकरण किये जाने की व्यवस्था कर ली गई है। इस हेतु बाकायदा केन्द्र भी निर्धारित कर लिये गए हैं, और केन्द्र सरकार से अनुमति एवं टीके आदि उपलब्ध हो जाने पर तत्काल टीकाकरण शुरू किया जा सकता है। हम समझते हैं कि इन तमाम स्थितियों के दृष्टिगत देश और प्रदेश के लोग इस खुशी से रू-ब-रू होने के लिए सचमुच बेताब हैं। व्याधियों पर मनुष्य की विजय के इस अवसर की प्रतीक्षा हेतु सभी का पलक-पांवड़े बिछाना बहुत स्वाभाविक-सी क्रिया है।