पाकिस्तान में हिन्दू लड़कियों का जब्री धर्मान्तरण

वजूद में आने के बाद से ही पाकिस्तान धार्मिक अल्प-संख्यकों के लिए जुल्म का सबब बना हुआ है। यहां सबसे ज्यादा जुल्म हिंदू लड़कियों पर ढाए जा रहे हैं। सिंध प्रांत के बलूचिस्तान में हिंदू महिला शिक्षिका का जबरन धर्मांतरण करवा के उसका नाम  एकता से आयशा कर दिया गया। इस घटना पर स्थानीय प्रशासन ने कोई कार्यवाही नहीं की। इमरान सरकार ने भी चुप्पी साध रखी है। हालांकि अल्पसंख्यकों के लिए काम करने वाली संस्था वॉइस ऑफ  माइनॉरिटी ने इस घटना को लेकर चिंता जताई है। संस्था का कहना है कि ‘पाकिस्तान में जबरन धर्म परिर्वतन करवाना बहुत सामान्य हो चुका है। एक दिन ऐसा भी आएगा जब यहां के झंडे में से सफेद रंग निकाल दिया जाएगा।’ पाक में सफेद रंग अल्पख्यकों का प्रतीक है।सिंध प्रांत में अक्सर हिंदू लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्म परिर्वतन के मामले आते रहते हैं। अमरीका स्थित सिंधी फाउंडेशन और न्यूज एजेंसी एपी की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल 12 से 28 वर्ष की करीब 1000 हिंदू युवतियों को अगवा कर उनका जबरन धर्मांतरण कराया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक मियां मिट्ठू नाम का एक शख्स सिंध प्रांत में सबसे ज्यादा धर्मांतरण कराता है। उसके खिलाफ जबरन धर्मांतरण के 117 मामले दर्ज हो चुके हैं, लेकिन कार्यवाही किसी पर नहीं हुई। पाकिस्तान के मानवाधिकार संगठन के अनुसार जनवरी 2004 से मई 2018 के बीच सिंधी लड़कियों के अपहरण के 7,430 मामले सामने आए थे। सिंध प्रांत में ही नम्रता नाम की दंत चिकित्सक की सरेआम हत्या कर दी गई थी। इस  घटना का मामला पाक संसद में मुस्लिम लीग नवाज़ के नेता ख्वाज़ा आसिफ  ने उठाते हुए कहा था कि ‘नम्रता की घटना से घोटकी में हिंदू समुदाय भयभीत और चिंतित है। उनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। वे वफादार पाकिस्तानी हैं।’ इन स्थितियों से पता चलता है कि पाक अल्प-संख्यकों के लिए सुरक्षित देश नहीं है। यहां गैर-सुन्नी शिया और अहमदिया मुसलमान भी कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं। गैर मुस्लिमों पर अत्याचार का आधार यहां अस्तित्व में आया कठोर ईशनिंदा कानून है। इस कानून का सबसे अधिक दुरुपयोग हिंदू, सिख व ईसाइयों के विरुद्ध होता है। इस कारण पाकिस्तान से हिंदू लगातार पलायन भी कर रहे हैं, जो भारत के लिए चिंता का कारण है। पाकिस्तान में अल्प-संख्यकों के खिलाफ  दहशतगर्दी का माहौल कट्टरपंथियों द्वारा सोची-समझी साजिश है। साजिश के तहत वहां पहले अल्प-संख्यकों की नाबालिग किशोरियों का अपहरण किया जाता है, फिर उनसे कोरे कागज पर दस्तखत कराए जाते हैं। जिसमें प्रेम के प्रपंच और इस्लाम के कबूलनामे की इबारत होती है। इसके बाद उसका किसी मुस्लिम लड़के से निकाह करा दिया जाता है। मजबूरी की यही दास्तान, अल्प-संख्यक परिवारों की कई लड़कियां बयान कर चुकी हैं। अल्प-संख्यकों पर जारी इन अत्याचारों की कहानी भारत के दक्षिणपंथी दल नहीं कह रहे, बल्कि इन सच्चाइयों का बयान पाकिस्तान का मीडिया और मानवाधिकार आयोग भी कर चुके हैं।  पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार डॉन ने अपने एक सम्पादकीय में लिखा है कि अल्पसंख्यक व्यापारियों व उनकी बालिकाओं के बढ़ रहे अपहरण, दुकानों में की जा रही लूटपाट, उनकी संपत्ति पर जबरन कब्जे और धार्मिक कट्टरता के माहौल ने अल्पसंख्यक समुदाय को मुख्य धारा से अलग कर दिया है। पाकिस्तान में जारी इन घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में वहां के मानवाधिकार आयोग ने भी नाराजगी जाहिर की है। हिंदुओं के उत्पीड़न पर वहां की सुप्रीम कोर्ट भी दखल दे चुकी है, लेकिन सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान प्रांतों में हिंदुओं पर इस तर्ज के अत्याचारों का सिलसिला थम नहीं रहा है। कई बार अपहरण कर धर्म परिवर्तित कर निकाह कराई गईं किशोरियां भी डर के चलते न्यायालय में सच्चाई उजागर नहीं कर पाती हैं, क्योंकि इन्हें परिजनों की हत्या कर देने की धमकी दे दी जाती है। इन अत्याचारों से मुक्ति का मार्ग तलाशते हिंदू धार्मिक तीर्थ यात्राओं के बहाने अस्थायी वीजा पर लगातार भारत आ रहे हैं। नतीजतन इस्लाम धर्मावलंबी देश पाकिस्तान में 17 करोड़ मुसलमानों के बीच हिंदुओं की आबादी बमुश्किल 27 लाख बची है। 1947 में इस आबादी का घनत्व 27 फीसदी था, जो अब घटकर महज दो फीसदी रह गया है। लाहौर स्थित जीसी विवि के प्राध्यापक कल्याण सिंह ने बताया है कि पाक में पिछले 15 सालों से सिखों का जबरन धर्मपरिवर्तन कराया जा रहा है जिसके चलते सिखों की संख्या महज 8000 बची है। हालांकि पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्ना ने अल्पसंख्यकों को यह भरोसा दिया था कि उन्हें हर क्षेत्र में समानता का अधिकार होगा। सातवें दशक में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा का असली कारण बने जनरल ज़िया उल हक। उन्होंने नीतियों में बदलाव लाकर दो उपाय एक साथ किए। एक तरफ  तो अफगानिस्तान में चल रहे संघर्ष के बहाने कट्टरपंथी मुसलमानों को संरक्षण देते हुए, उन्हें अल्प संख्यकों के खिलाफ  उकसाने का काम किया। वहीं, दूसरी तरफ  उनके मताधिकार पर प्रतिबंध लगाकर उन्हें अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया।  यहीं से कट्टरपंथियों ने अल्पसंख्यकों को जबरन धर्मपरिवर्तन के लिए मजबूर करने का सिलसिला शुरू कर दिया। देखते-देखते एक सुनियोजित साजिश के तहत नादान व नाबालिग अल्पसंख्यक लड़कियों का अपहरण और उनके बलात धर्म परिवर्तन की शुरुआत हुई, ताकि पाकिस्तान में बचे-खुचे अल्पयंख्यक भी पलायन की प्रताड़ना के लिए विवश हो जाएं। बाद के दिनों में पाकिस्तानी मदरसों की पाठ्य पुस्तकों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ  नफरत की इबारत लिखे पाठ भी पढ़ाए जाने लगे। 

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