टीकाकरण का आ़गाज़

देश भर में टीकाकरण की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जिस पुख्ता ढंग से यह योजनाबंदी की गई है, वह अतीव श्लाघनीय एवं संतोषजनक है। लगभग एक वर्ष तक देश को कोरोना माहामारी का सामना करना पड़ा है। पिछले वर्ष जनवरी के महीने में इस बीमारी की आहट महसूस हुई थी। उसके बाद मार्च महीने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से एकाएक कठोर तालाबन्दी की घोषणा कर दी गई थी जिससे एक बार तो लोग अनेकानेक कठिनाइयों में फंस गये थे। इस तालाबन्दी ने उनकी समस्याओं में भारी वृद्धि कर दी थी। विशेष तौर पर प्रवासी श्रमिकों की हालत अतीव दयनीय बनी दिखाई देती थी। एक प्रकार से इस महामारी के कारण पूरा देश दहल गया था। इससे देश में डेढ़ लाख से अधिक लोगों की मौत भी हो गई है तथा संक्रमित होने वालों की संख्या करोड़ से अधिक तक पहुंच गई है। निरन्तर तालाबंदियों ने तथा उपजे आतंक ने एक बार तो समूचे कामकाज एवं गतिविधियों को ही ठप्प करके रख दिया था। पहले ही बड़े स्तर पर बेरोज़गारी में पिस रहे लोगों के अतिरिक्त लाखों अन्य लोग बेरोज़गार हो गये थे। देश की आर्थिकता को अपूर्णीय आघात पहुंचा था। आज भी इस महामारी का प्रभाव जारी है परन्तु जन-जीवन की वास्तविकताओं को किसी भी प्रकार दृष्टिविगत नहीं किया जा सकता। इसलिए इस बड़े जंजाल में फंसे नागरिकों को निकालने के लिए धीरे-धीरे छूट प्रदान की गई। जन-मानस में भी आतंक दूर होने लगा तथा अब धीरे-धीरे सम्पूर्ण गतिविधियां एवं कामकाज पथ पर आने लगा है, परन्तु लगभग एक वर्ष के समय में हुये नुकसान को पूरा करना अत्याधिक कठिन है। इस महामारी से बचने के लिए अभी भी बड़ी सावधानियां अपनाने की ज़रूरत महसूस होती है। विश्व भर में जिस दिन से यह बीमारी फैलने लगी थी, उस दिन से ही यह बात भी महसूस होने लगी थी कि सावधानियों एवं उपचार के बावजूद इस हेतु कोई प्रभावपूर्ण टीका ईजाद हुये बिना इससे छुटकारा नहीं हो सकता एवं निकट भविष्य में व्यापक स्तर पर टीकाकरण की आवश्यकता होगी। विश्व भर के विकसित देशों में ऐसा टीका बनाने की दौड़ शुरू हो गई थी जिसमें सबसे पहले रूस का टीका तैयार हुआ था। अमरीका जैसा बड़ा एवं विकसित देश भी इस बीमारी की पूरी तरह से लपेट में आ गया था। इस कारण अमरीका का सभी पक्षों से भारी नुकसान हुआ। वहां भी इसके लिए टीके विकसित किये जाने लगे थे। ब्रिटेन जो स्वयं इस महामारी से अत्यधिक प्रभावित हो चुका है, में भी टीके बनाने की तत्परता दिखाई जाने लगी थी। अब कुछ देशों में तैयार किये गये टीकों का प्रयोग होने लगा है। भारत के लिए भी यह संतोषजनक बात कही जा सकती है कि इसके दो टीकों को स्वीकृति मिल गई है। एक टीका ब्रिटेन के आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की ओर से बनाया गया है जिसका सीरम इंस्टीच्यूट ने देश में उत्पादन किया है। इसका नाम कोविशील्ड है तथा दूसरा टीका हैदराबाद में भारत बॉयोटैक की ओर से तैयार किया गया है जिसका नाम कोवैक्सिन है। एक प्रकार से ये दोनों ही टीके भारत में तैयार हो चुके हैं जिन्हें पूरे योजनाबद्ध ढंग से लगाने का कार्य देश भर में शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसकी शुरुआत करते हुये इसे एक भारी सफलता करार देते हुये कहा है कि विश्व भर में शुरू किये गये टीकाकरण का यह सबसे बड़ा अभियान है जिसे क्रमिक रूप से पहले स्वास्थ्य कर्मियों एवं सम्बद्ध अन्य व्यक्तियों से शुरू किया जाएगा तथा इसके बाद गम्भीर रोगियों एवं अधिक आयु के वृद्धजनों को लगाया जा सकेगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में तैयार किये गये ये दोनों टीके पूरी तरह से ठीक एवं प्रभावशाली हैं। इनके संबंध में किसी को कोई भ्रम नहीं रहना चाहिए। भारत ने पहले भी टीकाकरण के माध्यम से पोलियो एवं चेचक जैसी बीमारियों पर सफलता हासिल की है। इस नये अभियान से भी यह विश्वास बंधता है कि शीघ्र ही इस महामारी को भी टीकाकरण के माध्यम से जड़ से उखाड़ दिया जाएगा। यह समूचे देश के लिए संतोषजनक एवं प्रसन्नता की बात होगी, जिससे पुन: देश तेजी के साथ विकास के पथ पर चलने में सफल होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द