अपने ही बुने जाल में फंसे के.पी. ओली

चीनी राष्ट्रपति से तथाकथित दोस्ती और नेपाल में चीनी राजदूत हाओ यांकी के मायाजाल में फंसे नेपाल के प्रधानमंत्री से काम चलाऊ प्रधानमंत्री बने केपीओली अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंसे नज़र आ रहे हैं । अपनी चीन परस्ती और उसके कारण चीन को खुश करने के लिए भारत से युद्ध तक कीधमकी देने के कारण ओली द्वारा अपनी पार्टी में पहले से चल रहे विरोध को न केवल प्रचंड रूप दिया गया बल्कि भारत से सांस्कृतिक, राजनीतिक औरआर्थिक रूप से जुड़े पूरे नेपाल को भी अंगड़ाई लेने के लिए विवश करना प्रारम्भ कर दिया था। वस्तुत: नेपाल दक्षिणी एशिया का पहला ऐसा प्रभुतासम्पन्न राष्ट्र है जिसमें चीन अपनी राजदूत और सत्तारूढ़ पार्टी के पदाधिकारियों के माध्यम से अपने हित साधने के उद्देश्य से ओली को सत्ता में बनाए रखने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर खुले आम लगा रहा है। पूरी तरह चीन की गोद में जा बैठे ओली के चहुँतरफा विरोध के कारण उनके हाथ से सत्ता खिसकने की आशंका के चलते पहले तो नेपाल में चीनी राजदूत हाओ यांकी ने साम-दाम-दंड-भेद से नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी में एक बार फिर बहुमत ओली की ओर करने का प्रयत्न किया किन्तु असफल होने पर ओली के माध्यम से भारत से सम्बन्ध सुधारने के लिए दशहरा के पुनीत अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी को बधाई दिलाई गई। फिर भारत के ‘रा’ चीफ, उसके बाद थल सेनाध्यक्ष और इससे भी बात न बनने पर विदेश सचिव को बुलाया गया किन्तु कोई बात सिरे न चढ़ने पर यांकी ने नेपाल के थल सेनाध्यक्ष और राष्ट्रपति से मिल करऔर उन्हें अपने प्रभाव में लेकर संविधान में व्यवस्था न होने पर भी ओली से सिफारिश कराकर लोकसभा भंग करा दी।  इससे और बवाल मच गया और पूरा नेपाल सड़काें पर आ गया तो यांकी ने आने हाथ खड़े कर दिए। मजबूरन चीन ने सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चायना के उप नेता को स्थिति सुधारने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल के साथ सीधी दखलंदाज़ी के लिए नेपाल भेजा जिसने नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी के प्रमुख नेताओं के अलावा राष्ट्रपति से भी बात की। इसके बाद इस दल ने नेपाल की विपक्षी पार्टी कांग्रेस के दलनेता देवबहादुर देउबा से मिलकर, इस संकट के हल पर बात की । चीनी प्रतिनिधिमंडल की नेता विदेशी मामलों की उपमंत्री गुओ ये ओझो ने कूटनीतिक चाल चलते हुए देउबा को, नेपाली कांग्रेस से चीन के अच्छे संबंधाें की याद दिलाते हुए उन्हें इस वर्ष सीपीसी की होने वाली सौवीं वर्षगांठ के समारोह का निमंत्रण भी दिया जिसे स्वीकार करते हुए देउबा ने चीन के राष्ट्रपति और जनता को इसकी बधाई भी दी। नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता पर चीन के सीधे हस्तक्षेप पर भारत विस्मित तो है किन्तु अपनी गरिमा के अनुसार और मालदीव में इसी तरह के क्र म में अपनाई गई नीति का अनुसरण करते हुए चीन के प्रति किसी भी तीखीप्रतिक्रि या से बच रहा है । यह खुला सत्य है कि विश्व की सबसे अच्छी शासन प्रणाली होते हुए भी प्रजातंत्र का एक गर्भजनित दोष है कि इस प्रणाली में जनता और शासक दोनों हीराष्ट्रपरक न होकर व्यक्तिपरक हो जाते हैं । हर घटक राष्ट्र के हिताें पर स्वयं के हितों को प्राथमिकता देने लगता है और इस प्रकार कई बड़े-बड़ेघोटालों अथवा नीतिगत दोषों का जन्म स्वयंमेव हो जाता है । वास्तविकता यह है कि वर्तमान नेपाल ओली की गलतियों के चलते पूरी तरह चीनी चंगुल में फंस चुका है। नेपाल में अपनी खूबसूरत और तेज़तर्रारराजदूत जिन्हें नेपाल से पहले पाकिस्तान में हर ज़रूरी ट्रेनिंग देकर नेपाल भेजा गया था, के माध्यम से चीन नेपाल के सर्वोच्च संवैधानिक संस्थानों मेंघुसपैठ कर चुका है। यांकी की पैठ का आलम यह है कि वह ओली से लेकर राष्ट्रपति, सेनाध्यक्ष, सुप्रीम कोर्ट के अंदर तक अपना दखल बना चुकी हैं।हालात तो यहां तक बिगड़ चुकी हैं कि सचिवालय के हर सचिव के अलावा नेपाली प्रशासन के हर बड़े अधिकारी को वह अपनी मुट्ठी में बंद कर चुके हैं।अपुष्ट सूत्रों के अनुसार स्थिति यहां तक पंहुच चुकी है कि वह जिस अधिकारी को जब चाहें, चीनी दूतावास में तलब कर लेती हैं। आम लोगों में यहां तकचर्चा है कि चीनी दूतावास में बाकायदा यांकी दरबार लगाती हैं और उसमें ओली की ओर से आदेश भी जारी करती हैं जिन्हें ओली ने कभी नहीं काटा । भारत से नेपाल के कई मामलों में बहुत ही निकट के सम्बन्ध हैं और नेपाल में होने वाली किसी भी घटना का भारत पर भी असर पड़ता है। भारत औरनेपाल भले ही दो सम्प्रभुतासम्पन्न राष्ट्र हों किन्तु आंतरिक रूप से धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से एक दूसरे से रिश्तों के अटूट बंधनमें ऐसे जकड़े हुए हैं कि एक करवट भी लेता है तो दूसरा प्रभावित हो जाता है । नेपाल में स्थिति यहां तक बिगड़ चुकी है कि आये दिन नेपाल में कुपित लोग ओली सरकार के विरुद्ध आन्दोलन करते नज़र आते हैं। कई पक्ष नियमों काहवाला देकर संसद भंग करने के निर्णय के विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट भी जा चुके हैं। स्थिति लगातार बिगड़ते देख चीनी प्रतिनिधि मंडल इस सम्बन्ध में भारतीयअधिकारियों से भी वार्ता का प्रस्ताव कर चुका है। नेपाल की स्थिति के बारे में कोई नहीं कह सकता कि वहां ऊंट किस करवट बैठेगा। कुल मिला कर यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अपनी अमर्यादित टिप्पणियों और अंध चीन समर्थक नीतियों के चलते ओली स्वयं अपने बुने जाल में फंसकर बैकफुट पर आ गए हैं और नेपाल में शीघ्र सत्ता परिवर्तन की स्थिति बनती जा रही है। इस स्थिति में ओली भारत विरोध की नीति भूल कर अपनी सत्ता बचाने के प्रयासों में लगे हैं तो भारत सरकार बड़े धैर्यपूर्वक ‘वेट एंड वाच’ नीति का अनुसरण करते नज़र आ रही है । (अदिति)