हकीकत बनती टेलीमेडिसिन की दुनिया

टेलीमेडिसिन डॉक्टरी परामर्श की एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें मरीज या मरीजों के परिजन डॉक्टर के सामने भौतिक रूप से उपस्थित न होकर भी वही सुविधा हासिल कर सकते हैं, जो सुविधा डॅक्टर के सामने मौजूद होने पर मिलती है। क्योंकि मरीज या उसके परिजन डॉक्टर या डॉक्टरों के सामने वीडियो कांफ्रैंसिंग के चलते वैसे ही उपस्थित होते हैं,जैसे कोई सदेह आमने-सामने उपस्थित होता है। स्वास्थ्य के मामले में टेलीमेडिसिन व्यवस्था बहुत ही काम की साबित हुई है। अगर इसका विकास न हुआ होता तो कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के दौरान बीमार लोगों की देखभाल की बहुत बड़ी समस्या उठ खड़ी होती। अगर टेलीमेडिसिन इस हद तक विकसित न हो गई होती,जितनी की इस समय है तो कोरोना का संकट और ज्यादा कहर ढाता। एक अनुमान के मुताबिक हिंदुस्तान में अप्रैल 2020 से नवंबर 2020 के दौरान करीब 20 करोड़ लोगों ने टेलीमेडिसिन की सुविधा हासिल की है मतलब करीब 82,000 लोगों ने यह सुविधा प्रतिदिन हासिल की। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य में यह किस कदर बढ़ने वाली है।
आखिर टेलीमेडिसिन कैसे संभव होती है?
टेलीमेडिसिन दरअसल संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी, चिकित्सा विज्ञान, इंजीनियरिंग एवं आयुर्विज्ञान का समन्वय है। इसके लिए विशेष रूप से तैयार किए गए हार्डवेयर और सॉफ्वेयर, रोगी तथा डॉक्टर दोनों तरफ  मौजूद होते हैं। इनके जरिए बीमार के एक्स-रे, ईसीजी आदि सीधे डॉक्टरों तक पहुंचते हैं, जबकि डॉक्टर की तरफ  से रोगी की विभिन्न जांचों के निष्कर्ष पहुंचते हैं। यह सब वास्तव में इनसैट उपग्रह के माध्यम से संभव होता है। रोगी की बीमारी से सम्बन्धित सभी जानकारियां हासिल करके विशेषज्ञ डॉक्टर सीधे वीडियो कॉन्फ ्रेसिंग के द्वारा बातचीत करके रोगी का उपचार करते हैं। इस उपचार में दवाईयां देना तथा बीमार व उसके परिजनों को कई किस्म की सलाहें देना तो शामिल ही है, आजकल तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के चलते डॉक्टर दूर बैठे अपने स्थानीय सहायकों के जरिये सर्जरी तक करते हैं। यूं तो आजकल टेलीमेडिसिन की सुविधा देश के सभी अस्पतालों और नर्सिंग होमों में उपलब्ध है तथा तमाम डॉक्टर अपने घरों से भी ऑनलाइन इस सुविधा को देश-विदेश तक मुहैय्या करा रहे हैं। लेकिन भारत में इसकी शुरुआती गतिविधियां सरकारी अस्पतालों, कुछ गैर-सरकारी संगठनों या ट्रस्टी अस्पतालों में ही सम्पन्न हुईं ताकि इस प्रणाली को सुचारु रूप से चलाने का पर्याप्त प्रशिक्षण संभव हो सके। इसे सबसे पहले कर्नाटक राज्य के सभी जिला चिकित्सालयों में शुरू किया गया था।
दुनिया में टेलीमेडिसिन कब शुरू हुई?
टेलीमेडिसिन का आश्चर्यजनक रूप से लंबा इतिहास है जो टेलीफोन के आगमन के साथ शुरू हुआ। नि:संदेह कई दूसरे क्षेत्रों की तरह इस क्षेत्र में भी अमरीका अगुवा हैं। अमेरिका में ही सन 1906 में, एंथोवेन ने पहली बार टेलीफोन लाइनों पर इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईकेजी) संचरण के उपयोग की जांच की थी। 1920 के दशक में समुद्र में चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान सहायता के लिए चिकित्सकों को नाविकों से जोड़ने के लिए जहाज रेडियो का उपयोग किया जाता था। 1955 में, नेब्रास्का मनोरोग संस्थान स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए क्लोज-सर्किट टेलीविजन का उपयोग करत था। 1970 के दशक में, सुदूर अलास्का और कनाडाई गांवों में पैरामेडिक्स उपग्रह के माध्यम से दूर के शहरों के अस्पतालों से जुड़े रहते हुए आजीवन तकनीक का प्रदर्शन करने में सक्षम थे। आज, टेलीमेडिसिन प्रौद्योगिकी दुनिया के हर कोने में मौजूद है, जिसमें कार्डियोलॉजी, रेडियोलॉजी, मनोरोग और ऑन्कोलॉजी के क्षेत्र में निदान, उपचार तथा टेलीसर्जरी तक शामिल है। साथ ही टेलीकॉन्फ्रैंसिंग के जरिये आज पूरी दुनिया में कहीं पर भी डॉक्टरों और मरीजों के बीच जरूरी और वास्तविक संवाद बना रहता है। इसमें स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और चिकित्सा प्रशासन की बड़ी जिम्मेदार भूमिका होती है। सवाल है क्या टेलीमेडिसिन प्रो-इकोनॉमी है? निश्चित रूप से यह रोगियों और अर्थ-व्यवस्था दोनों के लिए सकारात्मक है। टेलीमेडिसिन के जरिये हजारों लोगों को घर बैठे ही स्वास्थ्य की सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं, जिससे वे अस्पतालों में जाने से बच सकते हैं। इससे अस्पतालों पर बोझ कम होता है, जो कि भारत और भारत उप-महाद्वीपों के देशों की सबसे बड़ी समस्या है। टेलीमेडिसिन के जरिये न केवल अनावश्यक लोगों को अस्पतालों में भीड़ बढ़ाने से रोका जा सकता है बल्कि इससे अच्छे खासे पैसे भी बचाए जा सकते हैं। हालांकि यह भी सच है कि स्वास्थ्य जैसी अहम समस्या को सिर्फ  वर्चुअल सुविधाओं के भरोसे हल नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर वर्चुअल सुविधाएं होती है तो भौतिक सुविधाएं भी अच्छी तरह से और प्रभावी रूप में दी जा सकती हैं। जब टेलीमेडिसिन के जरिये लाखों लोगों को घर बैठे चिकित्सा सुविधा मिल जाती है तो अस्पतालों में भीड़ और अफरा-तफरी का माहौल नहीं रहता, नतीजतन डॉक्टर मरीजों की बेहतर देखभाल कर पाते हैं।जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डॉक्टरों और आबादी का अनुपात 1:1000 होना चाहिए पर हमारे देश में 1.35 अरब आबादी मानते हुए ये 1:1457 के स्तर पर है। तिस पर भी एकेडमी ऑफ  फैमिली फिजीशियंस ऑफ  इंडिया के मुताबिक, चार राज्यों में इतने डॉक्टरों का रजिस्ट्रेशन मेडिकल शिक्षा के बाजारीकरण का एक नमूना है। देश के आधे से ज्यादा मेडिकल कॉलेज प्राइवेट हैं। पांडिचेरी जैसे छोटे से शहरनुमा राज्य में भी मेडिकल कॉलेजों की संख्या नौ हैं। भारत वर्ष में चिकित्सा विशेषज्ञों की कमी हैं, चिकित्सा विशेषज्ञों ग्रामीण/अर्ध शहरी क्षेत्रों में जाना नही चाहते हैं, उनकी सेवाएं बड़े शहरों तक ही सिमित रह जाती हैं। इन सब स्थितियों को देखते हुए बिना कहे इस बात को समझा जा सकता है कि देश में टेलीमेडिसिन की जबरदस्त जरूरत है।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर