भारत की राजनीति को प्रभावित कर रहा है अमरीका का घटनाक्रम

रिपब्लिक टीवी के मालिक और संपादक अर्नब गोस्वामी कुछ दिनों पहले तक बॉलीवुड के छोटे-छोटे कलाकारों की वाट्सएप चैट अपने चैनल पर सार्वजनिक कर रहे थे, लेकिन अब उनकी खुद की वाट्सएप चैट सार्वजनिक हो गई है। इसे ही प्राकृतिक न्याय कहते हैं। असल में मुंबई पुलिस ने कुछ दिनों पहले टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट यानी टीआरपी घोटाले का पर्दाफाश किया था, जिसके केंद्र में अर्नब गोस्वामी ही है। उसी सिलसिले में मुंबई पुलिस ने टीआरपी का पूरा सिस्टम देखने वाली संस्था बार्क के पूर्व प्रमुख पार्थो दासगुप्ता के साथ अर्नब की हुई चैट को आरोप पत्र में शामिल किया है। लगभग 500 पृष्ठों की चैट के मुताबिक अर्नब को पुलवामा में हुए आतंकवादी हमले और भारतीय सेना द्वारा बालाकोट पर किए गए एयर स्ट्राइक की जानकारी पहले से थी और इसी के आधार पर उन्होंने दावा किया था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत होगी। वैसे तो टीआरपी का खेल और उसे लेकर चल रहा विवाद चैनलों का आपसी मामला है पर इस मामले में जो खुलासे हो रहे हैं, उससे केंद्र सरकार की छवि धूमिल हुई है। जिस तरह एक जमाने में कारपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया के टेप जारी हुए थे और पता चला था कि कैसे नामी पत्रकार बरखा दत्त कांग्रेस में अपने रसूख के दम पर डीएमके को मनचाहे मंत्रालय दिलाने के अभियान में शामिल थीं। वैसे ही अब पता चला है कि अर्नब गोस्वामी केंद्र सरकार में अपनी पहुंच के दम पर टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ  इंडिया और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में बन रही नीतियों को प्रभावित कर रहे थे। 
ट्रम्प के नाम पर राजनीति
भारत में किसी भी चीज पर राजनीति हो सकती है। इसलिए हैरानी की बात नहीं है कि अब ट्रम्प के नाम पर राजनीति हो रही है। वैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सितंबर 2018 में अमरीका जाकर उनके प्रचार अभियान की शुरुआत की थी और ‘अब की बार ट्रम्प सरकार’ का नारा दिया था। लेकिन अब चुनाव हार कर व्हाइट हाऊस छोड़ने से पहले उन्होंने जिस तरह का ड्रामा किया है, वह अब राजनीति का विषय बन गया है। पश्चिम बंगाल में चुनाव निकट हैं और वहां तृणमूल कांग्रेस व भाजपा दोनों एक दूसरे को ट्रम्प जैसा ठहराने में लगे हैं। इस बीच महाराष्ट्र की रिपब्लिकन पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले इस मामले को अलग ही रास्ते पर ले गए। उन्होंने कहा कि ट्रम्प के बर्ताव से हमारी पार्टी की छवि खराब हो रही है। मोदी सरकार के इस ‘समझदार’ मंत्री ने यह भी ख्याल नहीं किया कि ट्रम्प से मोदी की निजी दोस्ती है।
27 लाख करोड़ से ज्यादा की नकदी
यह तो कई आंकड़ों से साबित हो गया है कि नोटबंदी का फैसला बुरी तरह से असफल रहा है। उससे न तो काला धन खत्म हुआ और न जाली नोटों का प्रचलन बंद हुआ। नोटबंदी लागू करने के बाद उसकी विफलता भांप कर जिस दूसरे लक्ष्य का प्रचार हुआ था, वह भी बुरी तरह से फेल हुआ है। बाद में कहा जाने लगा था कि नोटबंदी कैशलेस अर्थ-व्यवस्था बनाने के लिए की गई थी। अब हकीकत यह है कि नवंबर 2016 के मुकाबले भारत में नकदी की मात्रा डेढ़ गुणी बढ़ गई है। अब करीब 50 फीसदी ज्यादा नकदी लोगों के हाथ में है। रिजर्व बैंक के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक इस समय लोगों के हाथ में 27 लाख 70 हजार करोड़ के लगभग नकदी है। जिस समय नोटबंदी की गई थी उस समय 18 लाख करोड़ रुपए के करीब नकदी थी, जिसमें 15 लाख 44 हजार करोड़ रुपए के पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट थे। इसमें से 15 लाख 28 हजार करोड़ रुपए रिजर्व बैंक में वापस लौट गए थे। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद देश की बैंकिंग प्रणाली पर लोगों को विश्वास नहीं रहा।
कोरोना तो बहाना है
ऐसा पहली बार हो रहा है कि इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर कोई विदेशी राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष बतौर मुख्य अतिथि गणतंत्र दिवस परेड में शामिल नहीं हो रहा है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने बताया है कि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की स्थिति को देखते हुए सरकार ने तय किया है कि इस साल गणतंत्र दिवस परेड में कोई विदेशी मेहमान नहीं होगा। असल में केंद्र सरकार ने कोरोना की महामारी के बावजूद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया था और वह आने वाले भी थे, पर ब्रिटेन में वायरस का नया स्ट्रेन आने उन्होंने कार्यक्रम रद्द कर दिया। जानकार सूत्रों का कहना है कि इसके बाद भारत सरकार ने मॉरीशस के प्रधानमंत्री और सूरीनाम के राष्ट्रपति से संपर्क किया गया था, लेकिन उन्होंने भी आने से इन्कार कर दिया। जाहिर है कि किसी विदेशी मेहमान को बुलाने में सफलता नहीं मिलने के बाद सरकार ने यह बयान जारी किया कि कोरोना की वजह से इस बार विदेशी मेहमान नहीं बुलाने का फैसला किया गया है। 
वाड्रा की बेचैनी
प्रियंका गांधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा की सांसद बनने की बेचैनी बढ़ती जा रही है। पिछले चुनाव में उन्होंने जिस तरह से अमेठी और रायबरेली में प्रचार किया था, उससे उसी समय उनके राजनीति में उतरने की उम्मीद जताई जाने लगी थी, लेकिन अब उन्होंने खुल कर इस इच्छा का इजहार किया है। प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की दो दिन की पूछताछ के बाद उन्होंने कहा कि अब उनको संसद में पहुंच कर लड़ाई लड़नी होगी। सवाल है कि ईडी या सीबीआई के मुकद्दमे  लड़ने के लिए सांसद बनना क्यों जरूरी है? मौजूदा सांसदों में भी दर्जनों ऐसे हैं, जिनके खिलाफ  सीबीआई और ईडी के मुकद्दमे चल रहे हैं। उन्हें सांसद होने की वजह से कोई राहत हासिल नहीं होती है। सो, मुकद्दमों की बात तो एक बहाना है। असली बात यह है कि वाड्रा राजनीति में उतरने को बेचैन हैं। उनको लग रहा है कि गांधी-नेहरू परिवार की अमेठी, रायबरेली, सुल्तानपुर, फूलपुर जैसी तमाम सीटें खाली हैं या खाली हो रही हैं।