विषाक्त शराब कांडों के लिए त्रुटिपूर्ण नीतियां दोषी 

आजकल देश में जहरीली शराब से मौतों की खबर आना रोजमर्रा की बात हो गई है। मध्य-प्रदेश के मुरैना से 16 और उत्तर.प्रदेश के बुलंदशहर से 6 लोगों की मौत की दर्दनाक खबर आई है। चूंकि ये मौतें गरीब लोगों की होती हैं, इसलिए सत्ता और प्रशासन के लोगों में संवेदनशीलता कम ही नजर आती है। सरकार एक-दो जिम्मेदार लोगों को निलंबित करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेती है जबकि निलंबन कोई सजा ही नहीं है। यदि निलंबन सजा होती तो तीन महीने पहले मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में विषैली शराब से 16 मजदूरों की मौत की पुनरावृत्ति इतनी जल्दी नहीं हुई होती। अक्सर जहरीली शराब के लिए दोषी स्थानीय लोगों को ही ठहरा दिया जाता है, लेकिन इस शराब के निर्माण में कहीं न कहीं शराब ठेकेदारों का भी हाथ हो सकता है ? क्योंकि मुनाफे की हवस देशी शराब में जहर मिलाने का काम कर देती है। सरकारें  इस ओर ध्यान ही नहीं देतीं। दरअसल अब शराब के ठेकों में भी नेता और आबकारी अधिकारियों की साझेदारी देखने में आ रही है। इसलिए चलताऊ कार्यवाही करके सरकारें मौन साध लेती हैं।  तमाम दावों और घोषणाओं के बावजूद देश में जहरीली शराब मौत का पर्याय बनी हुई है। न तो इसके अवैध निर्माण का कारोबार बंद हुआ है और न ही बिक्री पर रोक लग पाई है। नतीजतन हर साल जहरीली शराब से सैंकड़ों लोग बेमौत मारे जाते हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश ,पंजाब, आंध्र-प्रदेश, असम और बिहार में बड़ी संख्या में इस शराब से मरने वालों की खबरें रोज आ रही हैं। लॉकडाउन के दौरान पंजाब और आंध्र प्रदेश में करीब सवा सौ लोग सैनेटाइजर पीने से ही मर गए थे, लेकिन तमाम हो-हल्ला मचने के बावजूद राज्यों के शासन-प्रशासन ने इन हादसों से कोई सबक नहीं लिया। बिहार में यह स्थिति तब है जब वहां पूर्ण शराबबंदी है। साफ  है शराब लॉबी अपने बाहू और अर्थबल के चलते शराब का अवैध कारोबार बेधड़क करने में लगी है। राज्यों की पुलिस और आबकारी विभाग या तो कदाचार के चलते इस ओर से आंखें मूंदे हुए हैं अथवा वे स्वयं को इस लॉबी के बरक्स बौना मानकर चल रहे हैं। इसीलिए गांव-गांव देशी भट्टी पर कच्ची शराब बन और बिक रही है। बिहार की तरह गुजरात में भी शराबबंदी है, बावजूद इसके सीमावर्ती राज्य मध्य-प्रदेश और राजस्थान से तस्करी के जरिए शराब खूब लाई और बेची जाती है। लिहाजा शराबबंदी व्यावहारिक नहीं है।  इस पर रोक अपराध बढ़ाने का काम भी करती है।  बिहार में जब पूर्ण शराबबंदी लागू की गई थी, तब इस कानून को गलत व ज्यादतीपूर्ण ठहराने से संबंधित पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका पटना विश्व विद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर राय मुरारी ने लगाई थी। तब पटना हाईकोर्ट ने शराबबंदी संबंधी बिहार सरकार के इस कानून को अवैध ठहरा दिया था। इस बाबत सरकार का कहना था कि हाईकोर्ट ने शराबबंदी अधिसूचना को गैर-कानूनी ठहराते समय संविधान के अनुच्छेद 47 पर ध्यान नहीं दिया जिसमें किसी भी राज्य सरकार को शराब पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। बिहार सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को विसंगतिपूर्ण बताते हुए यह भी कहा था कि पटना उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ का जो फैसला आया है, उसमें एक न्यायाधीश का कहना था कि शराब का सेवन व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है। वहीं दूसरे न्यायाधीश का मानना है कि शराब का सेवन मौलिक अधिकार है। ऐसे विडंबनापूर्ण निर्णय भी शराबबंदी के ठोस फैसले पर कुठाराघात करते हैं। शराब के कारण घर के घर बर्बाद हो रहे हैं और इसका दंश महिला और बच्चों को झेलना पड़ रहा है। साफ  है, शराब के सेवन का खमियाजा पूरे परिवार और समाज को भुगतना पड़ता है।  दिशाहीन नेतृत्व देश का भविष्य बनाने वाली पीढ़ियों का ही भविष्य चौपट करने का काम कर रहा है। पंजाब इसका जीता-जागता उदाहरण है। शराब से राजस्व बटोरने की नीतियां जब तक लागू रहेंगी, मासूम लोग शराब के लती बनते रहेंगे। निरंतर शराब महंगी होते जाने के कारण गरीब लोगों को भट्टियों में बनाई जा रही देशी शराब पीने को मजबूर होना पड़ता है। सैनेटाइजर में 70 प्रतिशत से ज्यादा अल्कोहल होने का प्रचार हो जाने के कारण लाचार लोग इसे पीकर भी मौत के मुंह में समा रहे हैं।  

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