डिजिटल इंडिया की अवधारणा और साइबर क्राइम 

डिजिटल इंडिया कार्यक्र म की शुरुआत 1 जुलाई, 2015 को डिजिटल सक्षम समाज की अवधारणा के साथ हो गयी थी लेकिन नोटबंदी के बाद जिस तरह सरकार ने इस पर बल दिया है, शहरी क्षेत्रों के अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने भी इसकी ज़रूरत को समझा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश डिजिटलीकरण की तरफ बहुत तेजी से बढ़ रहा है और नि:संदेह डिजिटल इंडिया की अवधारणा की तरफ बढ़ते देश ने आम जनों  के जीवन को थोड़ा सहज जरूर कर दिया है। चाहे बैंकों से पैसे निकासी की बात हो, फंड ट्रांसफर या फिर अपनी जमा पूँजी बैंक में जमा करने की बात ही क्यों न हो, आज ये सारे काम हम अपने घर बैठे या एटीएम के माध्यम से कर सकते हैं। इसके अलावा किसी खरीदारी के बदले भुगतान, यातायात के विभिन्न माध्यमों के घर बैठे टिकट बुक करने की सुविधा, ई कामर्स के जरिए व्यापार और सिर्फ इतना ही नहीं, कृषि सहित शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो जहाँ डिजिटलीकरण का फायदा आम जनता को नहीं हुआ हो। विशेषकर सुदूर गांव में रहने वाले आम लोगों के लिए इन सुविधाओं का उनके कम्प्यूटर या मोबाइल तक सिमट जाना किसी वरदान से कम नहीं है क्योंकि इन सुविधाओं ने नकद साथ लेकर चलने की मुश्किल को हल तो किया ही है, साथ नकद के कारण घटित होने वाले अपराध से भी बहुत हद तक निजात मिली है। लेकिन कहते हैं न कि तकनीक हमेशा अपने साथ वरदान और खतरा दोनों लेकर चलती है। जैसे-जैसे भारत कदम दर कदम डिजिटलीकरण की तरफ बढ़ रहा है वैसे-वैसे साइबर अपराध की घटनाएं भी दिनों दिन बढ़ती ही जा रही हैं। सुनने में शायद अतिश्योक्ति लगे किन्तु साइबर अपराध की घटना में किसी भी देश के मुकाबले भारत में  सबसे तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।
साइबर क्र ाइम की श्रेणी में  वैसे सभी अपराध आते हैं जिसमें कम्प्यूटर और इंटरनेट नेटवर्क के इस्तेमाल से अपराध को अंजाम दिया जाता है या किसी के कंप्यूटर या इंटरनेट नेटवर्क को लक्ष्य बनाकर अपराध को अंजाम दिया जाता है जिसमें साइबर आतंकवाद से लेकर चाइल्ड पोर्नोग्राफी, साइबर स्टॉकिंग भी शामिल है लेकिन मुख्य रूप से  जिस अपराध ने देश के प्रत्येक नागरिक को डिजिटल इंडिया के अवधारणा पर संदेह करने का मौका दिया है, वह है साइबर ठगी यानी फोन पर झांसा देकर, कम्प्यूटर हैक द्वारा या डेविड कार्ड, क्रेडिट कार्ड फर्जीवाड़ा के द्वारा फंड ट्रांसफर कर लेना या करवा लेना और आर्थिक नुकसान पहुँचाना। देश में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जिसके फोन पर  साइबर अपराधियों ने अलग-अलग तरीकों से झांसा देकर ठगी की कोशिश नहीं की हो।भारत में साइबर ठगी के आंकड़ों  पर दृष्टि डालें तो रिजर्व बैंक आफ इंडिया के अनुसार वित्त वर्ष 17-18 में  41168 करोड़ रूपये की ठगी की गई जबकि वित्त वर्ष 18-19  में  तकरीबन 71543 करोड़ रुपये की ठगी की गई यानी तकरीबन 74 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। वहीं वित्त वर्ष 2019-20 के पहले तिमाही में ही  साइबर क्र ाइम में तकरीबन 37 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी।  ऐसे में डिजिटलीकरण की तरफ तेज़ी से बढ़ा है भारत जिसमें सरकार न सिर्फ शहरी और पढ़े लिखे लोगों को डिजिटल होने को प्रेरित कर रही है अपितु गरीब, मजदूर, किसान, छोटे- छोटे व्यापारी, रेहड़ी वाले और कम पढ़े लिखे लोग भी डिजिटलीकरण के इस दौर में शामिल हैं। सबसे सुखद है कि भारत का प्रत्येक नागरिक इसको अपनाने हेतु या तो आगे बढ़ चुका है या अपनाने के प्रति बहुत उत्साहित है। ऐसे में साइबर सुरक्षा को लेकर सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। सवाल उठता है कि आखिर क्या कारण है कि साइबर क्राइम दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं और सरकार इन पर लगाम नहीं लगा पा रही है? आखिर साइबर क्र ाइम की रोक थाम की चुनौतियां क्या हैं? अगर इस विषय पर विचार करें तो जो मुख्य चुनौतियां प्रथम दृष्टया दृष्टिगोचर होती हैं, उनमें सर्वप्रथम निजी  सूचनाओं का लीक होना है जो साइबर क्राइम की रोक थाम में सबसे बड़ी चुनौती है। कहीं न कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि भारत निजी सूचनाओं का बाजार हो गया है। फेसबुक जैसे सोशल साइट पर डाटा चोरी कर बेचने का आरोप भी लग चुका है। ऐसे में निजी सूचनाओं की उपलब्धता ही अपराधियों को अपराध करने में सहायता प्रदान करती है। उसके बाद लाइसेंस रहित साफ्टवेयर का व्यापक उपयोग एक बड़ा खतरा है। सरकार इसपर लगाम नहीं लगा पा रही है। डिजिटल निरक्षरता भी साइबर अपराध की एक बड़ी वजह है क्योंकि न सिर्फ किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी या अनपढ़ लोग अपितु वैसे पढ़े लिखे लोगों की संख्या भी बहुत अधिक है जिन्हें कम्प्यूटर, इंटरनेट या आन लाइन बैंकिंग सिस्टम का ज्ञान नहीं है और वे आसानी से साइबर अपराधियों की ठगी का शिकार हो जाते हैं। डिजिटल बैंकिंग की मूल संरचना भी बहुत  सुदृढ़ नहीं है। अपराधी क्र ेडिट कार्ड और डेबिड कार्ड की क्लोनिंग भी करने में सफल हो जाते हैं।अगर सरकार चाहती है कि कदम दर कदम बढ़ते हुए देश डिजिटल इंडिया के सपने को पूर्ण रूप से साकार करे तो पंचायत स्तर पर डिजिटल साक्षरता ट्रेनिंग चलाने की जरूरत है। साथ ही लोगों को साइबर क्राइम के प्रति सजग और जागरूक करने की भी बढ़ी आवश्यकता है।

 (युवराज)