आस्था के नाम पर लुटती गरीब जनता

प्राचीन काल से हमारे देश में अधिकतर लोग गरीब और गरीबी के कारण भयानक हीनता के भाव से पीड़ित रहते हैं और सदियों तक गुलाम भी रहे हैं। आज भी हमारे देश में अधिकतर लोग गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर कर रहे हैं। अशिक्षित लोग अपने धर्म-गुरुओं का अंधानुकरण करते हैं। एक के पीछे दूसरा आंखें बंद करके चलने लगते है।कहने को तो भारत एक गरीब देश  है,पर जब हम भरतीयों की फिजूलखर्ची पर नज़र डालते हैं तो हमारे होश उड़ जाते हैं। करोड़ों देवताओं वाले इस देश में जन्म से ले कर मृत्यु तक हर बात का उत्सव मनाया जाता है। यह ठीक है कि मनुष्य का जीवन ही उत्सव है, पर जहां उत्सव का अर्थ फिजूलखर्ची बन जाये, वहां उत्सव अभिशाप ही है। अकेले विवाह समारोहों का ही बजट अरबों खरबों में है। इतना ही नहीं पढ़े लिखे भी नोट उड़ाते हैं, पटाखे फोड़ने जैसे अनावश्यक कार्य करते दिखाई देते हैं। भारत में प्रतिवर्ष जितनी फिजूलखर्ची  की जाती है यदि हम उसे रोक पायें तो भारत दुनिया के धनी देशों में गिना जाने लगेगा। देश में बचपन से ही सभी भारतवासियों के घरों में धर्म की घुट्टी पिलाई जाती है। जीवन में कुछ अजीब घटनाओं के डर और कुछ सवालों के जवाब न मिलने पर हम इन रहस्यों को अंध-विश्वास का रूप दे देते हैं। हमारे देश में धर्म-गुरुओं की समृद्ध परम्परा रही है। इन धर्म-गुरुओं के भाषणों के द्वारा लोगों को दान करने के लिए प्रेरित किया जाता है क्योंकि दान करने को सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। मंदिर हमारे जीवन का आदर्श हैं। सभी लोग राग द्वेष से उपर उठकर मंदिर जाते हैं। समर्पण की भावना से ठाकुरजी के सामने शीष झुकाते हैं। प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर दुनिया के सभी लोगों को सुखी रखें। इतना ही नहीं मंदिरों की दान पेटियों में अपने सामर्थ्य के हिसाब से दान भी करते हैं ताकि दान के द्वारा मंदिर की देखभाल हो सके और पुजारियों का जीवन यापन भी हो सके। आजकल मंदिरों में काले धन का साम्राज्य फैलता जा रहा है। लोगों ने धर्म को भी कारोबार और कमाई का धंधा बना लिया है। जगह जगह ढोंग का कारोबार चल रहा है। देश में धार्मिक स्थल आस्था की दुकानें बनते जा रहे हैं। वहां श्रद्धालुओं से पैसेां की मांग की जाती है। हरिद्वार, वृंदावन, मथुरा, बनारस से लेकर  करीब-करीब सभी  मंदिरों और नदियों पर जिस प्रकार श्रद्धालुओं से पैसे निकाले जाते हैं,उसे देखकर एक घिन सी पैदा होने लगाती है।   इसी कारण आज हमारे देश में मंदिरों और आश्रमों में अधिक धन दौलत इकट्ठी हो रही है । मंदिरों की और पुजारियों की शान-शौकत और ठाठ बाठ अलग ही देखने को मिलती है । एक तरफ देश में भंयकर गरीबी है और दूसरी तरफ  मंदिरों के बेहिसाब चढ़ावे से दान पेटियां लबालब भर जाती हैं। धर्म प्रचार के द्वारा दान देने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है और बगुले भगत पुजारी ऐशो आराम की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। देश में भोले भाले गरीब लोग केवल मंदिरों में अपनी हैसियत से ज्यादा दान देकर ही नहीं लुटते आये बल्कि ढोंगी बाबाओं के जगह जगह आश्रमों के जाल में फंसते जा रहे हैं। छोटी -बड़ी समस्याएं हर एक के जीवन में आती हैं लेकिन ये लोग इन्हीं समस्याओं का हल ढोंगी बाबाओं के आश्रमों में दान देकर ढूंढने लगते हैं। व्यक्ति के आंतरिक विकास का तीन मार्ग होते हैं- ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग। इसमें साधारण मनुष्य भक्ति मार्ग का अवलम्बन करता है। भक्त अपने गुरु में परमात्मा की ही मूर्त्त देखने लगता है। तब इसका जो फल और कुफल है वह भक्त को ही भोगना पड़ेगा। पिछले 5 सालों में अनेक घटनाएं सामने आई हैं, जिनसे हमारी आंखें खुलनी चाहिए , लेकिन आज भी लोग  अंधविश्वास से इन ढोंगी गुरुओं में आस्था रखते हैं।