मलाला यूसुफजई वएक नाम जिससे कांपता है तालिबान

परियों सी मासूम बच्ची है, जिसने शायद कभी कोई खतरनाक हथियार हाथ में भी न उठाया हो। मगर उससे दुनिया का सबसे खूंखार कट्टरवादी संगठन तालिबान थरथर कांपता है। तालिबान जो अपनी क्रूरता, कट्टरता तथा खौफ  के कारोबार के लिए जाना जाता है, इस छोटी-सी बच्ची के  सामने अपनी तमाम क्रूरताओं और कुटिल कट्टरताओं के बावजूद मेमना-सा बना हुआ है। आज पूरी दुनिया में मलाला का नाम लेते ही सामने क्रूरता का पर्याय तालिबान की तस्वीर घूमने लगती है  इतिहास में कभी कोई कट्टर संगठन साबित हुआ हो जैसा 14 वर्षीय छात्रा और महिलाओं के अधिकारों के लिए आंदोलनरत मलाला यूसुफजई के सिर पर गोली मारकर तालिबान हुआ है।मलाला आज महज एक नाम नहीं है। एक प्रेरणा, एक हौंसला, एक जज्बा और कट्टरता का एक मुखर विलोम है। आज पूरी दुनिया इस चांद सी सलोनी लड़की की हिम्मत और उसके जज्बे को सेल्यूट करती है। आज मलाला महज एक तालिबान की कट्टरता से लड़ रही पाकिस्तानी किशोरी नहीं है बल्कि पूरी दुनिया में लोकप्रिय सेलेब्रिटी है। आज शायद ही दुनिया का कोई ऐसा कोना है जो जहां स्त्रियों और बच्चों के अधिकारों की बात हो और मलाला का जिक्र न आए। दुनिया की अनगिनत संस्थाएं इस लड़की को सम्मानित करने के लिए लालायित हैं। न जाने कितने पुरस्कार इसे दिये गए हैं और न जाने दुनिया की कितनी वीवीआईपी शख्सियतों ने मलाला के लिए आवाज उठाई है।मलाला का जन्म 12 जुलाई 1997 में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह राज्य के स्वात जिले में स्थित मिंगोरा कस्बे में हुआ था। उसके पिता जियाउद्दीन यूसुफजई कवि होने के साथ-साथ स्वात घाटी जैसे पिछड़े इलाके में शिक्षा के लिए काम करते रहे हैं। शिक्षा के महत्व को मलाला ने अपने पिता से ही जाना और बहुत कम उम्र में ही वह अपने पिता की शैक्षिक गतिविधियों में शामिल होने लगी तभी उसके दिलोदिमाग में यह जज्बा मज़बूत हुआ कि पढ़ना बहुत जरूरी है। बिना पढ़े  कुछ नहीं किया जा सकता। मलाला की शुरुआती शिक्षा उस के घर में ही हुई। बाद में वह पढ़ने के लिए अपने घर के पास स्थित स्कूल में गई। मलाला बचपन में डाक्टर बनना चाहती थी क्योंकि उनके कस्बे में कोई पढ़ा लिखा डॉक्टर नहीं था। हालांकि मलाला ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उसके पिता चाहते थे कि वह राजनेता बने। शायद पिता की इच्छा के पीछे हर दिन राजनीतिक माहौल में रहने और तमाम तरह के राजनीतिक समस्याओं से जूझने की स्थितियां थीं। 21वीं सदी के पहले दशक में जब मलाला बड़ी हो रही थी, ठीक उन्हीं दिनों स्वात घाटी धीरे धीरे तालिबान के कब्जे में आ रही थी। कट्टरपंथी तालिबान चाहते हैं कि अपफगानिस्तान के हर कोने में मध्य युग की पुरुष प्रधान सत्ता कायम हो जहां महिलाएं सिर्फ  घरों के भीतर पर्दे में रहें। उनकी घर के बाहर कोई भी भूमिका या गतिविधि न रहे।  उसके  पिता का यह शैक्षिक सुधार आंदोलन काफी आड़े आ रहा था। इसलिए तालिबान ने 2007 और 2008 में कई बार चेतावनी दी कि पूरे इलाके में लड़कियों को पढ़ाने के लिए किया जाने वाला प्रचार, लगाए जाने वाले कैम्प और खोले जाने वाले स्कूलों जैसी गतिविधियों को तुरंत बंद किया जाए। लेकिन मलाला के पिता जियाउद्दीन यूसुपफजई ने इस पर ध्यान नहीं दिया। खुद मलाला सड़कों पर उतरकर स्वात घाटी में लड़कियों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्हीं दिनों मलाला के पिता एक दिन मलाला को पेशावर प्रेस क्लब ले गए जहां मलाला ने पहली बार पत्राकारों के साथ बातचीत करते हुए स्वात घाटी में लड़कियों की शिक्षा की बात की और पत्रकारों को बताया कि कैसे तालिबान ने स्वात घाटी के लोगों को शिक्षा से वंचित कर दिया है।यही पहली बात थी जो तालिबान को बहुत बुरी लगी। इस संगठन ने हमेशा से मलाला के पिता को अपनी राह में रोड़ा समझता रहा है लेकिन अब तो यह छोटी सी मासूम लड़की भी उनके लिए उसी सिरदर्द का विस्तार लगी। तालिबान ने मलाला के घरवालों को और विशेषकर इस किशोरी को सार्वजनिक तौर पर नसीहत दी कि अगर उसने यह सब बंद नहीं किया तो उसे इसके बुरे परिणाम भुगतने पड़ेंगे। लेकिन धमकी का न तो मलाला के पिता पर और न इस किशोरी पर कोई असर हुआ। उन्हीं दिनों जैसे जैसे यह लड़ाई आगे बढ़ रही थी, मलाला के पिता चाह रहे थे कि उनकी बेटी के जरिये स्वात घाटी की हकीकत अंतर्राष्ट्रीय निगाह में आए। मलाला ने तालिबानी हुकूमत की तमाम हकीकत को दुनिया के सामने बेनकाब किया। मलाला ने दुनिया को बताया कि कैसे तालिबान महिलाओं को लड़कियों की स्कूली शिक्षा से रोकते हैं और महिलाओं को घर से निकलकर किसी भी मसले में पुरुषों की बराबरी करने से। पहली बार दुनिया को पता चला कि तालिबान लड़कियों को स्कूल जाने से रोकने के लिए न सिर्फ स्कूल भवनों को तोड़ डालते हैं बल्कि उन्हें कई तरह की वीभत्स सजाएं देते हैं। उनके मां-बाप को धमकाते हैं और न मानने पर खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी देते हैं।  नतीजतन 9 अक्तूबर 2012 को तालिबान ने मलाला के  सिर में गोली मार दी। इस खबर को सुनकर पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई। किसी को भी यकीन नहीं था कि तालिबान इस हद तक बर्बरता पर उतर आएगा। पूरी दुनिया में मलाला की जिंदगी के लिए दुआएं, प्रार्थनाएं होने लगीं। उसे रावलपिंडी फिर इस्लामाबाद और अंत में बर्मिघम (इंग्लैंड) में उच्च स्तरीय मेडिकल सुविधाएं प्रदान की गईं जिससे वह बच गई। अब वह पाकिस्तान में नहीं है। इंग्लैंड में रह रही है। उसकी आप बीती पर दुनिया के दो बड़े प्रकाशक ‘आई मलाला’ नाम से उसकी डायरी छापने जा रहे हैं, जिसके लिए उसे 16 करोड़ रुपये दिये जाने की बात हुई है। मलाला आज पूरी दुनिया में शिक्षा की सबसे प्रभावशाली एम्बेसडर बन चुकी है।