रियायती कृषि ऋण का वास्तविक लाभ किसानों को मिले

केन्द्रीय वित्त मंत्री एक फरवरी को पेश होने वाले आम बजट के दौरान कृषि क्षेत्र के बजट में पुन: अचानक बिना अनुमानित वृद्धि की घोषणा कर सकते हैं। विशेष बात यह है कि जिस तरह कृषि क्षेत्र को रियायती दरों पर दिये जाने वाले ऋणों में अचानक वृद्धि हुई है, उसके अनुपात में कृषि और किसानों के हालात में कुछ विशेष सुधार होता नहीं दिखाई दे रहा। एक ओर किसान इस समय सुरक्षित और बढ़िया आय के लिए संघर्ष कर रहे हैं और दूसरी ओर आय के सुधार के लिए किसानों को आज भी संस्थागत वित्तीय संस्थाओं से किफायती ब्जाय दरों पर ऋण नहीं मिलते। केन्द्र सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) तथा राज्य सरकारों की वर्षों से यही कोशिश रही है कि किसानों को किफायती ब्याज दरों पर संस्थागत ऋण मिले और इसके लिए बढ़ाए गए ऋणों के बिना रुके प्रवाह के बावजूद कृषि और किसानी पर यह कोई विशेष प्रभावी नहीं रहे हैं। देश के 85 फीसदी से अधिक किसानों की कृषि आय में पिछले कई वर्षों से एक ठहराव आया हुआ है। यदि ऐसी ही रियायती ब्जाज दरों पर ऋणों का वहन किसी दूसरे क्षेत्र के लिए निर्विघ्न चला हुआ होता तो उसकी वित्तीय तरक्की आज आसमन को छू रही होती। केन्द्र सरकार प्रत्येक वर्ष रियायती दरों पर कृषि कर्ज़ों के लक्ष्यों में वृद्धि करती हैं और बैंक भी उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ऋण जारी करते हैं। एक फरवरी को पेश होने वाले बजट में केन्द्रीय वित्त मंत्री 2021-22 के लिए भी रियायती दरों पर ऋण देने के लिए नये लक्ष्य को निर्धारित करेंगे। 2011-12 के बजट में निर्धारित किया गया 4.75 लाख करोड़ कृषि के लिए रियायती ऋण का लक्ष्य 2020-21 के बजट में बढ़ कर 15 लाख करोड़ रुपये हो गया है, जिसमें 21 हज़ार 175 करोड़ रुपये की सबसिडी भी शामिल है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या रियायती दरों पर दिये गए इतने बड़े ऋणों पर सबसिडी का किसानों को वास्तविक रूप में कोई लाभ मिल रहा है या नहीं? गत एक दशक में रियायती कृषि ऋण में 500 फीसदी वृद्धि होने के बावजूद इसका लाभ 12.56 करोड़ छोटे और हाशिये के (मार्जिनल) किसानों में से 20 फीसदी किसानों को भी नहीं मिल सका है। रियायती संस्थागत कृषि में बिना अनुमानित वृद्धि के बावजूद देश में बिकने वाले ट्रैक्टर तथा कृषि औज़ारों में 95 फीसदी औज़ारों के लिए 18 फीसदी ब्याज दर पर ऋण एनबीएफसी ( गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियां) से लेना पड़ रहा है, जबकि इसके लिए बैंकों की लम्बे समय के लिए बजाय दरें 11 फीसदी निर्धारित हुई हैं। इसी तरह जो ट्रैक्टर या कृषि औज़ार 11  फीसदी ब्याज दर पर लिया जा सकता है, उसके लिए किसान को 18 फीसदी ब्याज देना पड़ रहा है। आरबीआई ने भी सवाल किया है कि दो हैक्टेयर तक ज़मीन वाले छोटे किसानों को सहकारिता सोसायटियों जैसे संस्थागत स्रोतों से 15 फीसदी रियायती ऋण मिल रहा है। रियायती ब्याज दरों पर ऋण लेने वाले 79 फीसदी किसान वे हैं जिनके पास दो हैक्टेयर से अधिक भूमि है। 2015-16 की कृषि जनसंख्या के अनुसार देश के 12.56 करोड़ छोटे और हाशिये के (दो हैक्टेयर तक भूमि वाले) किसानों के हिस्से जो भूमि आती है, वह कुल भूमि का 86.8 फीसदी है। एनएसएसओ (नैशनल सैंपल सर्वे आफिस) की ओर से जारी किये गए कृषि पर आधारित परिवारों की स्थिति के मूल्यांकन सर्वेक्षण के अनुसार रियायती दरों के ऋणों पर बड़े किसानों और कृषि आधारित कारोबार (एग्री बिज़नेस) करने वाली कम्पनियों का कब्जा है। 
कृषि ऋणों के उदारवादी होने का परिणाम यही निकला है कि रियायती ऋणों का अधिकतर लाभ किसानों की अपेक्षा एग्री-बिजनेस कम्पनियां ले रही हैं। हालांकि आरबीआई ने बैंकों के ऋणों की सीमा निर्धारित की हुई है, जिसके मुताबिक कुल ऋणों में कृषि क्षेत्र को दिये जाने वाले 18 फीसदी ऋण में से 8 फीसदी छोटे और हाशिये पर धकेले किसानों को दिये जाने ज़रूरी है जबकि 4.5 फीसदी अप्रत्क्षय ऋण एग्री बिजनेस करने वाली कम्पनियों को देने का प्रबंध है लेकिन बैंक इस सीमा को तोड़ देते हैं। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नार्बाड) की ओर से महाराष्ट्र को जारी किए गए रियायती कृषि ऋण में 53 फीसदी मुम्बई और इसके साथ लगते उपनगरों को जारी कह दिये गए जबकि वहां कोई किसान है ही नहीं, वहां सिर्फ एग्री बिजनेस कम्पनियां ही हैं। यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि किसानों के नाम पर रियायती दरों के कृषि ऋण खाद, कीट नाशकों, बीज और कृषि उपकरण निर्माताओं को जारी किये जा रहे हैं। आरबीआई के आंतरिक कार्यकारी समूह की ओर से 2019 में की गई एक समीक्षा में देखा गया है कि कुछ राज्य में ज़रूरत से अधिक जारी किए गए कृषि ऋण उन राज्यों के कुल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) के अनुपात के मुकाबले कहीं अधिक थे। केरल में यह 326 फीसदी, आंध्रप्रदेश में 254, तमिलनाडु में 245, पंजाब में 231 और तेलंगाना की कृषि की जीडीपी के मुकाबले 210 फीसदी अधिक कृषि ऋण जारी किये गए। ज़रूरत से अधिक कृषि ऋण से स्पष्ट संकेत मिलता है कि कृषि ऋणों को गैर कृषि कार्यों के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है कृषि ऋणों का सस्ता होना जिसका ब्याज दर 4 से 7 फीसदी होती है जबकि यह ऋण किसानों को बाजार में स्वतंत्र रूप में 36 फीसदी ब्याज दर पर दिया जा रहा है। कृषि को लाभकारी बनाने के लिए सरकार की ओर से रियायती दरों पर ऋण देने का प्रबंध तो किया गया है लेकिन दुर्भाग्यवश कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन रियायती ऋणों के अनुसार नहीं है। केन्द्र के तीन विवादपूर्ण कृषि कानूनों में भी कृषि ऋण व्यवस्था में सुधार की कोई बात नहीं की गई है। उपाय : छोटे और हाशिये के किसानों को अधिक ताकतवर बनाने के लिए और अतिरिक्त रियायती ऋण देने की अपेक्षा सरकार  को चाहिए कि वह किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रति हैक्टेयर आर्थिक सहायता दे। कृषि ऋणों को सही ढंग से चलाने के लिए और कृषि के विकास के लिए छोटे किसानों की एफपीओ को फसलों के भंडारण के आधार पर अधिक कृषि ऋण देने चाहिएं। किसान परिवारों में से 89.1 फीसदी के पास मोबाइल फोन हैं, जिन्हें ध्यान में रखते हुए तकनीक पर आधारित कृषि ऋणों की प्रक्रिया पर ज़ोर देने की आवश्यकता है ताकि किसान मोबाइल फोन एप्प के माध्यम से स्वयं बैंकों से रियायती कृषि ऋण ले सकें। जिन राज्यों में भूमि का रिकार्ड डिजीटल हो गया है। वहां मोबाइल नैटवर्क में किसानों की ज़मीन का सैटेलाइट डाटा और फसल का पूरा विवरण मौजूद होता है, जिसका उपयोग करके किसान को क्रेडिट कार्ड द्वारा और डिजीटल प्रक्रिया द्वारा ऋण जारी किये जा सकते हैं। भूमि को पटे पर देने की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। अधिक से अधिक छोटे और हाशिये के किसानों को रियायती कृषि ऋणों का लाभ मिल सके। इसके लिए कृषि ऋणों में सुधारों के लिए एक राष्ट्र स्तरीय एजैंसी कायम की जानी चाहिए, जो केन्द्र और राज्यों के बीच सही तालमेल और आम सहमति बना सके। (लेखक कैबिनेट मंत्री पद में पंजाब योजना बोर्ड के वाइस-चेयरमैन, एसोचैम नार्दर्न कौंसिल के चेयरमैन और सोनालीका ग्रुप के वाइस-चेयरमैन हैं)