एफ.सी.आई. ने अप्रत्यक्ष तौर पर गेहूं, धान की खरीद से मुंह मोड़ा

फूड कार्पोरेशन आफ इंडिया (एफ.सी.आई.) ने जो खाद्य आपूर्ति विभाग के माध्यम से किसानों से राजस्व रिकार्ड की नकलें तलब की हैं, यह सीधा संकेत करता है कि केन्द्र गेहूं एवं धान की खरीद को घटा कर इसे एम.एस.पी. पर खरीदने से भाग रहा है। किसानों के लिए फर्द जमाबंदी दाखिल करवाने के लिए बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। फर्द जमाबंदी सुविधा सैंटर के माध्यम से फीस जमा करवा कर लेनी पड़ती है जिसके लिए किसानों को बड़ा परेशान होना पड़ता है। एफ.सी.आई. के इस कदम ने किसानों (जो तीन कृषि कानूनों संबंधी केन्द्र के विरुद्ध रोष में हैं) के रोष को बढ़ा दिया है। यदि एफ.सी.आई. ज़मीन की मालकी के आधार पर ही गेहूं की खरीद (जो एक अप्रैल से शुरू होनी है) करेगी तो 25 से 40 प्रतिशत कृषि करने वाले जो ज़मीन ठेके पर लेकर या किराये पर लेकर कृषि करते हैं, अपनी फसल कैसे बेचेंगे? ठेके की ज़मीन पर जो कृषि की जाती है, उस संबंधी आम तौर पर कोई लीज़ डीड रजिस्ट्र नहीं होते। ज़मीन के मालिक गिरदावरी ‘स्वयं कृषि’ करवाते हैं। फिर असंख्य ऐसे केस हैं जिनमें विरासत के इन्तकाल नहीं हुए। चाहे मृतक बुज़ुर्गों के वारिस ज़मीन पर कृषि किये जा रहे हैं। अभी राजस्व रिकार्ड में तकसीम भी नहीं हुई। ऐसे सभी किसान एम.एस.पी. पर अपनी गेहूं बेचने से रह जाएंगे। 
एन.आर. आईज़ जो दूसरे देशों में रह रहे हैं, उनकी ज़मीन पर जो व्यक्ति कृषि कर रहे हैं, वे अपने नाम पर फसल एम.एस.पी. पर नहीं बेच सकेंगे। पंजाब में तो अभी तक राजस्व रिकार्ड का कार्य पूर्ण तौर पर आधुनिक भी नहीं किया गया। जब किसानों को बैंकों के द्वारा आनलाइन गेहूं की कीमत की अदायगी की जाएगी तो बैंक अपने कज़र्े की राशि वसूलने हेतु उतावले हो जाएंगे। अधिकतर किसानों ने अगली फसल की बिजाई करनी होती है और उन्हें पैसों की आवश्यकता होती है, वे पूरा कज़र् तुरंत अदा करना सहन नहीं कर सकते। नयी खरीद और राशि का अदायगी के लिए अपनाई जा रही प्रणाली के तहत अब आढ़ती किसानों को कज़र्ा नहीं देंगे। जहां किसान को बैंक से कज़र्ा लेने के लिए केस मुकम्मल करवाने में बड़ा समय लगता है, वहीं आढ़ती  बिना किसी रजिस्ट्रेशन या कागज़ात के किसान को अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिए कज़र्े के रूप में तुरंत पैसा दे देता है। 
विश्वसनीय सूत्रों का यह कहना है कि एफ.सी.आई. राज्य के औसत प्रति एकड़ उत्पादन के आधार पर ही गेहूं या धान लेगी। पंजाब का औसत उत्पादन 20 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। राज्य सरकार और आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से सम्मानित इनोवेटिल किसान राजमोहन सिंह कालेका और पी.ए.यू. से सम्मानित बलबीर सिंह जड़िया के अनुसार बहुत प्रगतिशील किसान डी.बी. डब्ल्यू-187, डी.बी.डब्ल्यू-303 जैसी किस्मों से 28-30 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक उत्पादन ले रहे हैं और डी.बी. डब्ल्यू-222 और एच.डी.-3086 जैसी किस्मों से 25-26 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक गेहूं उपलब्ध होती है। इस तरह जो राज्य के औसत से ऊपर गेहूं किसान के पास रह जाएगी, किसान उसे एम.एस.पी. पर कहां बेचेगा। 
सूत्रों के अनुसार एफ.सी.आई. गुणवत्ता के पक्ष से भी सख्त रुख अपनाने की तैयारी में है। अब 14 फीसदी तक नमी वाली गेहूं एफ.सी.आई. और दूसरी एजैंसियों द्वारा खरीद की जाती है। एफ.सी.आई. द्वारा अब इसे 12 फीसदी किया जा रहा है। ब्रोकन और सिंकुड़ते हुए दाने जो इस समय 6 प्रतिशत तक लिए जा रहे हैं, उनको 4 प्रतिशत किया जा रहा है। क्षतिग्रस्त दानों वाली गेहूं 4 प्रतिशत से 2 प्रतिशत की जा रही है। इस समय 2 प्रतिशत तक दाने गेहूं में दूसरी फसलों के हो सकते हैं। अब एफ.सी.आई. द्वारा कोई ऐसी गेहूं नहीं खरीदी जाएगी जिसे खपरा, सुसरी, ढोरा आदि लगा हो। गेहूं में किसी किस्म का कोई कीड़ा नहीं होना चाहिए। 
ये फैसले इस बात को ज़ाहिर करते हैं कि एफ.सी.आई. के माध्यम से केन्द्र एम.एस.पी. और धान, गेहूं की खरीद तुरंत कम करना चाहती है और अंत में हो सकता है कि इसे समाप्त करने की ओर कदम बढ़ाया जाए। पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बालिश्टर सिंह मान कहते हैं कि एफ.सी.आई. और केन्द्र को इस समय ऐसे कड़े फैसले नहीं करने चाहिएं क्योंकि इससे किसानों में रोष बढ़ेगा। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह मुख्यमंत्री पंजाब के मुख्य प्रमुख सचिव सुरेश कुमार ने कहा है कि प्रदेश सरकार यह मामला सुलझाने के लिए पूरे प्रयास कर रही है।