एलबीडब्ल्यू के नये नियम से कितना बदलेगा क्रिकेट ?

डीआरएस (निर्णय समीक्षा व्यवस्था) के तहत जो एलबीडब्ल्यू (पगबाधा) के निर्णय लिए जाते हैं, उनके नियमों में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) ने कुछ परिवर्तन किये हैं, लेकिन विवादित अंपायर्स कॉल को बरकरार रखा है, जिसका अर्थ यह है कि अगर मैदानी अंपायर के निर्णय को बदलने के लिए निर्णायक साक्ष्य मौजूद नहीं है तो मैदानी अंपायर का फैसला बरकरार रहेगा। थर्ड अंपायर उसे बदल नहीं सकता। पगबाधा कॉल को रिव्यू करने की मांग करने से पहले खिलाड़ी अंपायर से यह भी मालूम कर सकेगा कि क्या गेंद को खेलने का प्रयास किया गया था। अब देखना यह है कि इन बदले हुए नियमों से क्रिकेट का खेल किस तरह से प्रभावित होगा। गौरतलब है कि आउटफील्ड कैचों के लिए सॉफ्ट सिग्नल प्रोटोकॉल, जिस पर हाल की भारत बनाम इंग्लैंड शृंखला के दौरान काफी चर्चा हुई थी, पर आईसीसी ने कोई निर्णय नहीं लिया है।नये नियमों के तहत पगबाधा के संदर्भ में ‘विकेट जोन’ को बदल दिया गया है। ‘विकेट ज़ोन’ स्टंप्स का वह क्षेत्र है जिस पर गेंद लगनी चाहिए ताकि मैदानी अंपायर के पगबाधा निर्णय को बदला जा सके। पहले यह था कि अगर गेंद का आधा हिस्सा गिल्लियों के निचले सिरे को मिस कर रहा होता तो अंपायर्स कॉल को माना जाता। अब अगर आधी गेंद गिल्लियों के ऊपरी हिस्से को मिस करेगी तब अंपायर्स कॉल होगी। सवाल यह है कि यह परिवर्तन किस लिए किया गया है? डीआरएस के तहत 50 प्रतिशत गेंद को अनुमानित तौर पर ‘विकेट जोन’ को हिट करना चाहिए, ताकि मैदानी अंपायर के पगबाधा निर्णय को बदला जा सके। पहले, अगर बॉल-ट्रैकिंग सिमुलेशन यह दिखाता कि गेंद गिल्लियों को क्लिप कर रही है, तो मैदानी निर्णय, भले ही नॉट आउट हो, बरकरार रहता था क्योंकि ‘विकेट ज़ोन’ गिल्लियों के नीचे खत्म हो जाता था। इससे दोनों खिलाड़ी व खेल प्रेमी अचंभित रह जाते थे क्योंकि दो गेंदें, दोनों अनुमानित तौरपर स्टंप्स को हिट कर रही हों, दोनों आउट और नॉट आउट हो सकती थीं, मैदानी अंपायर की कॉल पर निर्भर करते हुए। पचास प्रतिशत का टैस्ट उन गेंदों पर भी लागू होता था जिनके बारे में ऑफ-स्टंप या लेग-स्टंप के बाहर हिट करने का अनुमान होता। इस पर भारत के कप्तान विराट कोहली ने हाल में कहा था कि ‘बुनियादी क्रिकेट समझ की दृष्टि से इस बात पर कोई बहस नहीं होनी चाहिए कि गेंद अनुमानित तौर पर स्टंप्स को कितने प्रतिशत हिट कर रही है। अगर अंदाज़ा यह है कि गेंद स्टंप्स को हिट कर रही है, भले ही एक प्रतिशत, तो वह आउट होना चाहिए। कोहली से पहले यही विचार सचिन तेंदुलकर व शेन वार्न भी व्यक्त कर चुके हैं, खासकर भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया सीरीज़ के दौरान जब पैट कम्मिंस व मुहम्मद सिराज की लगभग समान गेंदों पर अंपायर्स कॉल के कारण कम्मिंस को अपने पक्ष में और सिराज को अपने विपक्ष में निर्णय मिले थे। दरअसल, इसी विवाद व उलझन को संबोधित करने के लिए आईसीसी ने ‘विकेट ज़ोन’ में वृद्धि की है। इस परिवर्तन के बावजूद भी नॉट-आउट निर्णय होंगे, भले ही हॉक-ऑई के अनुमान में गेंद स्टंप्स को हिट कर रही हो। लेकिन ऐसा बहुत कमी के साथ होगा। अब एक अन्य सवाल यह भी है कि क्या इस संदर्भ में क्रिकेटरों की समझ सही है? कोहली ने जो नज़रिया अपनाया है, उससे तो यही लगता है कि वह टेक्नोलॉजी को फूल-प्रूफ  मानते हैं, लेकिन आईसीसी द्वारा अंपायर्स कॉल को बरकरार रखने से इसी तथ्य को बल मिलता है कि डीआरएस अचूक विज्ञान नहीं है। 2016 से मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) डीआरएस टेक्नोलॉजी की निरंतर समीक्षा कर रहा है, जिस पर आईसीसी नियमों को बेहतर बनाने के लिए भरोसा करती है। एमआईटी का कहना है कि अनुमान लगाने के संदर्भ में 23 एमएम की ऊंचाई और 8 एमएम की चौड़ाई की चूक हो सकती है। अब एक क्रिकेट गेंद के रेडियस की रेंज 35.6 एमएम से 36.4 एमएम तक हो सकती है, इसलिए ‘विकेट ज़ोन’ को आधी गेंद द्वारा हिट करने की जो शर्त है वह इसी संभावित चूक को कवर करने के लिए है।एमआईटी समीक्षा स्पष्टता कहती है कि गेंद को बाऊंस करने और बल्लेबाज को स्ट्राइक करने के बीच पर्याप्त समय होना चाहिए—चार अबाधित फ्रेम-अर्द्धगोलाई को प्लाट करने के लिए ताकि ऊपर बतायी गई चूक का अनुमान लगाया जा सके। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य बातें भी हैं, जैसे गेंद का साइज सटीक नहीं होता, मैच के दौरान गेंद का साइज बदल जाता है आदि।  

 -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर