सत्य, न्याय एवं सदाचार के प्रतीक है श्री राम

भगवान श्री राम के जन्मोत्सव के रूप में प्रतिवर्ष चैत्र मास की शुक्ल पक्ष नवमी को रामनवमी का त्यौहार समूचे भारतवर्ष में अपार श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या में उत्सवों का विशेष आयोजन होता है, जिनमें भाग लेने के लिए देशभर से हज़ारों भक्तगण अयोध्या पहुंचते हैं तथा अयोध्या स्थित सरयू नदी में पवित्र स्नान कर पंचकोसी की परिक्रमा करते हैं। समूची अयोध्या नगरी इस दिन पूरी तरह राममय नज़र आती है और हर तरफ  भजन-कीर्तनों तथा अखण्ड रामायण के पाठ की गूंज सुनाई पड़ती है। देशभर में अन्य स्थानों पर भी जगह-जगह इस दिन श्रद्धापूर्वक हवन, व्रत, उपवास, यज्ञ, दान-पुण्य आदि विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। हालांकि इस वर्ष फिर से बढ़ते कोरोना संक्रमण के चलते ऐसे आयोजन ज्यादा धूमधाम से मनाए जाने की संभावना कम ही रहेगी लेकिन भीड़-भाड़ से बचकर लोग अपने घरों में भी अपने आराध्य देव के जन्मोत्सव को श्रद्धापूर्वक मना सकते हैं।
    विभिन्न हिन्दू धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि श्री राम का जन्म नवरात्र के अवसर पर नवदुर्गा के पाठ के समापन के पश्चात् हुआ था और उनके शरीर में मां दुर्गा की नवीं शक्ति जागृत थी। मान्यता है कि त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या के महाराजा दशरथ की पटरानी महारानी कौशल्या ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को जन्म दिया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, ‘भगवान श्री राम चन्द्रमा के समान अति सुंदर, समुद्र के समान गंभीर और पृथ्वी के समान अत्यंत धैर्यवान थे तथा इतने शील सम्पन्न थे कि दुखों के आवेश में जीने के बावजूद कभी किसी को कटु वचन नहीं बोलते थे। वह अपने माता-पिता, गुरुजनों, भाइयों, सेवकों, प्रजाजनों अर्थात् हर किसी के प्रति अपने स्नेहपूर्ण दायित्वों का निर्वाह किया करते। माता-पिता के प्रति कर्त्तव्य पालन एवं आज्ञा पालन की भावना तो उनमें कूट-कूटकर भरी थी। उनकी कठोर से कठोर आज्ञा के पालन के लिए भी वह हर समय तत्पर रहते थे।’ श्री राम का चरित्र बेहद उदार प्रवृत्ति का था। उन्होंने उस अहिल्या का भी उद्धार किया जिसे उसके पति उसे श्राप स्वरूप पत्थर की मूर्त्त बना दिया था। 
महारानी केकैयी ने महाराजा दशरथ से जब राम को 14 वर्ष का वनवास दिए जाने और अपने लाडले पुत्र भरत को राम की जगह राजगद्दी सौंपने का वचन मांगा तो दशरथ गंभीर धर्मसंकट में फंस गए थे।  जब श्री राम को पता चला तो उन्होंने खुशी-खुशी उनकी यह आज्ञा भी सहज भाव से शिरोधार्य की और उसी समय 14 वर्ष का वनवास भोगने तथा छोटे भाई भरत को राजगद्दी सौंपने की तैयारी कर ली। श्री राम द्वारा लाख मना किए जाने पर भी उनकी पत्नी सीता जी और अनुज लक्ष्मण भी उनके साथ वनों में निकल पड़े।
वनवास की यात्रा की शुरुआत श्रृंगवेरपुर नामक स्थान से प्रारंभ कर वहां से वह भारद्वाज मुनि के आश्रम में चित्रकूट पहुंचे। उसके बाद विभिन्न स्थानों की यात्रा के दौरान पंचवटी में उन्होंने अपनी कुटिया बनाने का निश्चय किया। यहीं पर रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काटे जाने की घटना हुई। यहीं से श्री राम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति में लंका का राजा रावण माता सीता का अपहरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया।श्री राम व लक्ष्मण सीता जी की खोज में निकल पड़े। इसी दौरान उनकी भेंट श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान से हुई, जिन्होंने श्री राम व लक्ष्मण को वानरराज बाली के छोटे भाई सुग्रीव से मिलाया, जो उस समय बाली के भय से यहां-वहां छिपता फिर रहा था। श्रीराम ने बाली का वध करके सुग्रीव तथा बाली के पुत्र अंगद को किष्किंधा का शासन सौंपा और उसके बाद सुग्रीव की वानर सेना के नेतृत्व में लंका पर आक्रमण कर लंका नरेश राक्षसराज रावण का वध कर सीता जी को उसके बंधन से मुक्त कराया लंका पर खुद अपना अधिकार न जमाकर लंका का शासन रावण के छोटे भाई विभीषण को सौंप दिया।  वनवास की अवधि समाप्त होने पर श्री राम भाई लक्ष्मण, सीता जी व हनुमान सहित अयोध्या लौट आए। वास्तव में विधि के विधान के अनुसार राम को दुष्ट राक्षसों का विनाश करने के लिए ही वनवास मिला था। 
    मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम में सभी के प्रति प्रेम की अगाध भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनकी प्रजा वात्सल्यता, न्यायप्रियता और सत्यता के कारण ही उनके शासन को आज भी ‘आदर्श’ शासन की संज्ञा दी जाती है और आज भी अच्छे शासन को ‘रामराज्य’ कह कर परिभाषित किया जाता है। ‘रामराज्य’ यानी सुख, शांति एवं न्याय का राज्य। रामनवमी पर्व वास्तव में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की गुरु सेवा, माता-पिता की सेवा व आज्ञापालन, जाति-पात के भेदभाव को मिटाने, क्षमाशीलता, भ्रातृप्रेम, पत्नीव्रता, न्यायप्रियता आदि विभिन्न महान् आदर्शों एवं गुणों को अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है।
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