संकीर्ण मानसिकता

एक बार फिर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव आगे पड़ गया है। एक बार फिर कांग्रेस कतारों में निराशा उत्पन्न हुई है। सोनिया गांधी विगत लगभग 2 वर्ष से कार्यकारी अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी निभा रही हैं। उनसे पूर्व राहुल गांधी लगभग दो वर्ष तक पार्टी अध्यक्ष बने थे, परन्तु मई 2019 में लोकसभा चुनावों में भारी पराजय के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से त्याग-पत्र दे दिया था तथा यह भी कहा था कि अब वह तथा उनके परिवार का कोई भी सदस्य पार्टी अध्यक्ष नहीं बनेगा परन्तु सोनिया गांधी को यह बात स्वीकार नहीं थी। राहुल गांधी के त्याग-पत्र के बाद उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। इसके बाद यह भी घोषणा की गई थी कि इस पद के लिए चुनाव अगस्त 2020 में होगा, परन्तु पार्टी बैठकों में एक खास योजना के तहत इसे टाला जाता रहा। सोनिया गांधी का स्वास्थ्य ठीक न होना भी इसका एक कारण था। 
बाद में यह घोषणा भी की गई कि इस वर्ष फरवरी महीने में अध्यक्ष पद का चुनाव करवा दिया जाएगा, परन्तु फरवरी में फिर ऊपरी आदेशों के अनुसार यह फैसला किया गया कि अध्यक्ष पद का चुनाव 5 राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों के बाद करवाया जाएगा। इसी काल के दौरान पार्टी के लगभग दो दर्जन बड़े नेताओं ने एक पत्र लिखा था जिसकी व्यापक स्तर पर चर्चा होती रही है। इन 23 नेताओं ने पार्टी के भीतर सुधार करने, इसकी कतारों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने, कार्यकारिणी समिति के चुनाव करवाने के साथ-साथ शीघ्र ही पार्टी अध्यक्ष का चुनाव करवाने की मांग की थी। इस पत्र के बाद पार्टी के भीतर भारी हलचल देखने को मिली थी। विद्रोही नेताओं ने अपनी गतिविधियां भी तेज़ कर दी थीं तथा अपने ढंग-तरीके के साथ बयान भी द़ागने शुरू कर दिये थे परन्तु इसका प्रभाव स्थापित नेताओं पर विपरीत ही पड़ते नज़र आया था तथा उन्होंने पार्टी के भीतर कतारबंदी करना शुरू कर दिया था। इन विद्रोही नेताओं को पार्टी में ही हाशिये पर धकेलने की प्रक्रिया आरम्भ कर दी गई। अब पश्चिम बंगाल, केरल, असम एवं पुडुचेरी विधानसभा चुनावों में पार्टी की निराशाजनक पराजय होने के साथ-साथ तमिलनाडू में भी द्रमुक की छोटी भागीदार पार्टी बनने से एक बार फिर भीतरी आवाज़ें उठना स्वाभाविक था जिन्हें भांपते हुये अब कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक आयोजित की गई। 
इस बैठक से पहले 23 जून को आंतरिक चुनाव करवाने की तिथि तक तय कर दी गई थी परन्तु राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी के व़फादार सदस्य कोरोना महामारी के नाम पर आवाज़ें उठा कर एक बार फिर इन चुनावों को टालने में सफल हो गये। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के.सी. वेणुगोपाल ने कहा है कि कमेटी सदस्यों की यह राय है कि यह चुनाव करवाने का उचित समय नहीं है। इसका सीधा अर्थ यह लिया जा सकता है कि सोनिया गांधी राहुल गांधी को पुन: अध्यक्ष बनाये बिना किसी अन्य नाम पर सहमत नहीं हैं। ऐसी संकीर्ण मानसिकता एक विशाल राष्ट्रीय पार्टी को आगामी समय में और भी बड़ा आघात पहुंचाने वाली सिद्ध हो सकती है जिसका प्रभाव देश की राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ेगा तथा कांग्रेसी कतारों के भीतर और भी अविश्वास एवं निराशा उत्पन्न होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द