बासमती निर्यात में आई तेज़ी से व्यापारियों ने हाथ रंगे

भारत से बासमती आयात करने वाले देशों द्वारा गुणवत्ता की कड़ी जांच और ज़हरों के प्रभाव संबंधी कड़े कदम उठाए जाने के बावजूद भारत ने गत वर्ष (2020-21) में बासमती का रिकार्ड निर्यात किया। लगभग 46.5 लाख टन बासमती विदेशों को भेजी गई। सन् 2019-20 में 44.55 लाख टन बासनती 31000 करोड़ रुपये की निर्यात की गई थी। सन् 2018-19 में 44.14 लाख टन बासमती 33000 करोड़ रुपये की निर्यात हुई थी। बासमती के निर्यात की बड़ी संभावना है। भविष्य में निर्यात और बढ़ जाने की संभावना है यदि 22 वर्जित ज़हरों का इस्तेमाल न किया जाए।  यूरोपियन यूनियन द्वारा चावलों में ज़हरों की सीमा संबंधी ट्राईसाइकिलाज़ोल के रैज़िड्यू की मात्रा 1.00 पी.पी. एम. कम करके 0.01 पी.पी.एम. कर दिये जाने के बाद यूरोपियन यूनियन के देशों को बासमती के निर्यात में काफी कमी आई है। गत वर्षों में कटार, बैल्जियम, जर्मनी, इटली, ब्राज़ील, फ्रांस, यूनान, पुर्तगाल, स्पेन और स्विट्ज़लैंड आदि देशों को बासमती का निर्यात कम हुआ। 
ईरान भारत की बासमती का सबसे बड़ा खरीदार है। लगभग 15 लाख टन बासमती ईरान को निर्यात की जा सकती है। जो गत वर्ष 7 लाख टन ही निर्यात की गई। लगभग 8 लाख टन बासमती चावल कम गये। इस संबंधी निर्यातकों को राशि की वसूली संबंधी भी काफी समस्यायों का सामना करना पड़ा। आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और बासमती के निर्यातक विजय सेतिया का कहना है कि यदि अब ईरान का अमरीका से समझौता हो जाता है और अमरीका द्वारा लगाई गई सभी रुकावटें हटा ली जाती हैं तो बासमती की कीमतों में 10 प्रतिशत तक वृद्धि होने की संभावना है। इस वर्ष निर्यात में अढ़ाई-तीन प्रतिशत वृद्धि होने की संभावना है। एक अनुमान के अनुसार 46-47 लाख टन बासमती चावल विदेशों को भेजे जाएंगे। यदि ट्राईसाइकिलाज़ोल के प्रयोग पर काबू पा लिया जाए तो सेतिया के अनुसार निर्यात में 4 से 5 प्रतिशत की वृद्धि यकीनन होने का अनुमान है। यूरोपियन यूनियन के देशों को 5 लाख टन बासमती निर्यात की जाती है। यह ट्राईसाइकिलाज़ोल ज़हरों से मुक्त होनी चाहिए। यूरोपियन यूनियन के देश पूसा बासमती 1401 के अधिक खरीदार हैं। यूरोपियन यूनियन को निर्यात बढ़ाने संबंधी आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक और बासमती चावलों के ब्रीडर डा. अशोक कुमार सिंह बासमती पैदा करने वाले राज्यों में गांवों के ग्रुप बनाने के पक्ष में हैं जिनमें पूसा बासमती 1401 किस्म की काश्त की जाए और यह ट्राईसाइकिलाज़ोल  के उपयोग से मुक्त हो। निर्यातक इन गांवों के उत्पादकों को 200 रुपये क्ंिवटल तक का प्रीमियम देकर उन्हे प्रोत्साहित करें। एग्रीकल्चर एंड प्रोसैसड फूड प्रोडक्शन एक्सपोर्ट डिवैल्पमैंट अथारिटी (अपीडा) इसे सफल करने में योग्य नेतृत्व करके सहायक हो सकती है। यूरोपियन यूनियन के  देशों की मांग इन गांवों में पैदा की गई बासमती से पूरी की जा सकती है। ऐसी योजना अस्तित्व में लाना डा. सिंह के विचाराधीन है। इस वर्ष निर्यात में वृद्धि होने की संभावना है। पंजाब सरकार ने बासमती पैदा करने का लक्ष्य 8 से 9 लाख हैक्टेयर काश्त करने का रखा है। 
पंजाब बासमती के जी.आई. ज़ोन में है और 50 प्रतिशत तक निर्यात में योगदान डालता है। धान की सरकारी खरीद संबंधी संभावित समस्याओं के दृष्टिगत किसान बासमती की काश्त हेतु रकबा बढ़ाने का सुझाव रखते हैं। मानसा जिला के गांव सद्दा सिंह वाला मूसा के पूर्व सरपंच प्रदीप सिंह 20 एकड़ पर बासमती किस्में ले रहा है। गत वर्ष उसने 5 एकड़ पर बासमती किसमें ली थीं। बासमती उत्पादक ज़हर इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं। बासमती को कई बीमारियों जैसे शीथ ब्लाइट, बैक्टिरियल लीफ ब्लाइट, बलास्ट, फाल्स समट्ट, करनाल बंट और सटैंमबोरर का मुकाबला करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त ‘बकाने’ बीमारी आती है। इन बीमारियों से होने वाले नुक्सान पर काबू पाने के लिए ज़हरों का उपयोग करना पड़ता है। 
बीमारियों पर काबू पाने के लिए किसानों को कनटैक्ट और सिस्टैमिक पैस्टीसाइड्ज़ का इस्तेमाल करना पड़ता है। यदि चावलों में 22 वर्जित ज़हरों का अंश निकल आए तो निर्यात के लिए अस्वीकार कर दिए जाते हैं। बासमती की बिजाई जुलाई में होगी। किसानों ने अधिक उत्पादन देने वाली पी.बी. 1121, पी.बी. 1509, पूसा 1401 (पी.बी. 6) पी.बी. 1718 में से किसमों का चयन करना है। पी.बी. 1718 किस्म पी.बी. 1121 का विकल्प है जिसकी उत्पादकता पी.बी. 1121 से अधिक है और चावल बढ़िया हैं। पी.बी. 1509 किस्म पकने को कम समय लेती है और 115 से 120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इससे भी कम समय में तैयार होने वाली किस्म पूसा बासमती 1692 है परन्तु पंजाब में काश्त करने हेतु अभी यह किस्म रिलीज़ नहीं की गई।