बासमती की लाभदायक काश्त

अब बासमती की किस्मों की पौध लगाने का समय है। बासमती का निर्यात मुख्य तौर पर पूसा बासमती-1121 या पूसा-1401 (पूसा बासमती-6) के लेबल की अधीन ही की जाती है। चाहे आल इंडिया राइस एक्सपोर्टज़र् एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और बासमती के इक्सपोर्टर विजय सेतिया के अनुसार पूसा बासमती-1718 (जो पूसा बासमती-1121 किस्म से तैयार की गई है) और पूसा बासमती-1509 किस्में जिनके चावल की गुणवत्ता पूसा बासमती-1121 जैसी है, भी अपनी गुणवत्ता के निर्धारित मूल्य में कट लगने के बाद निर्यात की जाती हैं। 
अब इन निर्यात की जाने वाली किस्मों की पौध की बिजाई की जानी है। पूसा बासमती-1121 और पूसा बासमती-1718 किस्मों की पौध जून के पहले पखवाड़े में बिजाई की जाती है। पूसा-1401 (पूसा बासमती-6) किस्म की पौध की बिजाई लगभग की जा चुकी है। पूसा बासमती-1509 और पूसा बासमती-1692 किस्मों की पौध की बिजाई का समय जून का अंतिम सप्ताह है। ये किस्म पकने को कम समय लेती हैं। क्रमवार 115-120 दिन और 110 दिन में तैयार हो जाती हैं। इन किस्मों की पौध की आयु लगाते समय 25 दिन की होनी चाहिए। जबकि दूसरी किस्मों को लिए 30 से 32 दिन की आयु सिफारिश की गई है। बासमती की काश्त   7 से लेकर 8 लाख हैक्टेयर तक रकबे में करने की योजना है।
निर्यातकों द्वारा उचित मूल्य पर खरीदे जाने के पक्ष से किसानों को यह किस्में लगानी आवश्यक हैं :
पूसा बासमती-1121 : यह किस्म 137 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। यह विश्व में सबसे लम्बे चावलों की किस्म है, जिसकी ‘किचन ईल्ड’ सभी किस्मों से अधिक है। इसके चावल की लम्बाई अधिक होने के अतिरिक्त इस किस्म के चावल खुश्बूदार हैं। बने हुए चावल आपस में जुड़ते नहीं। किसानों के पास यह किस्म 35 क्ंिवटल से 45 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन देती है। 
पूसा बासमती-1718 : यह किस्म 140 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसके चावल काफी लम्बे और पतले होते हैं। पकाने और खाने को स्वादिष्ट होते हैं। यह किस्म झुलस रोग का मुकाबला करने में समर्थ है और पंजाब में पाई जाती इस रोग का सभी दस किस्मों से मुक्त है। किसान 17 से 25-26 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक इसका उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं। 
पूसा 1401 (पूसा बासमती-6) : यह किस्म पकने को लम्बा समय लेती है। आईसीएआर-आईएआरआई और पीएयू से सम्मानित बलबीर सिंह जड़िया, धर्मगढ़ (फतेहगढ़ साहिब) कहते हैं कि इस किस्म को बीमारियां तो अधिक लगती हैं, जिन पर काबू पाने के लिए छिड़काव करने पड़ते हैं परन्तु इसका उत्पादन दूसरी सभी बासमती की किस्मों से अधिक है और मंडी में मूल्य भी दूसरी किस्मों से अधिक मिलता है। इसका चावल यूरोपियन यूनियन को निर्यात किया जाता है। 
पूसा बासमती-1509 : यह कम समय में पकने वाली किस्म है। औसतन कद 92 सैं.मी., चावल लम्बे और पतले हैं। पकाने के बाद चावल लगभग दोगुणा लम्बे हो जाते हैं और खुश्बूदार बनते हैं। किसानों को इस किस्म ने 26 से 27 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक उत्पादन दिया है चाहे औसत उत्पादन 17 से 20 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। 
पूसा बासमती-1692 : कम समय (105-110 दिन) में पकने वाली पूसा बासमती-1509 के मुकाबले अधिक उत्पादन देने वाली यह नई किस्म आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान नई दिल्ली ने विकसित की है परन्तु यह किस्म अभी पंजाब के लिए सिफारिश नहीं की गई। 
पंजाब बासमती 7 : यह किस्म पीएयू ने विकसित की है जिसकी ऊंचाई 111 सैं.मी. है। इस किस्म का औसत उत्पादन 19 क्ंिवटल प्रति एकड़ है और यह किस्म पकने को 101 दिन लेती है। यह किस्म झुल्स रोग का मुकाबला करने के समर्थ है। 
बासमती किस्मों को झंडा रोग (पैरां का गलना), भुरड़ रोग, और ‘बकाने’ की बीमारियां आम लगती हैं। इन किस्मों की रोकथाम विशेषज्ञों की सलाह से योग्य दवाइयों का इस्तेमाल कर करनी चाहिए।