आसमान छूते खाद्य तेल मूल्य

खाद्य तेलों की निरंतर बढ़ती ़कीमतें चिंता का विषय बनी हुई हैं। न केवल आम आदमी के बजट पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा बल्कि सरकार, रिजर्व बैंक व शेयर बाज़ार भी इससे ़खासे प्नभावित हुए हैं। बात रिफांइड ऑयल की हो या सरसों तेल की, पिछले एक वर्ष के दौरान कीमतों में 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी दज़र् की गई। केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय की वैबसाइट से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले एक वर्ष के दौरान 6 प्रकार के खाद्य तेल मूल्यों में 20 प्रतिशत से 56 प्रतिशत तक वृद्घि हुई। सरसों तेल की कीमत इस वर्ष 28 मई को 44 प्रतिशत बढ़कर 171 रुपए प्रति लीटर हो गई जोकि गत वर्ष 28 मई को 118 रुपए प्नति लीटर थी। इस अवधि के दौरान सोया तेल की ़कीमतें 50 प्रतिशत  बढ़ीं। खाद्य तेल कीमतों की प्रतिमाह महंगाई की बात करें तो इनकी औसत वृद्घि दर 11 साल के दौरान अपने उच्चतम शिखर तक जा पहुंची है। 
देश में मौजूदा ़खपत की बात करें तो ग्नामीण क्षेत्रों में सरसों तेल को प्राथमिकता प्नाप्त है, जबकि शहरी क्षेत्रों में सूरजमुखी, पाम व सोया तेल की मांग प्नमुख है। हालांकि मार्च-अप्रैल तक खाद्य तेल कीमतें घटने की उम्मीद थी, किंतु पाम ऑयल पुन: महंगा होने के पश्चात सरसों तथा रिफांइड तेल की कीमतों में भी उछाल देखा गया। न केवल पिछले वर्ष का सरसों तेल भंडारण समाप्त हो चुका है बल्कि नए साल के अनुमानित वार्षिक उत्पादन 90 लाख टन में से, 35 प्रतिशत माल की खपत भी हो चुकी है।  कृषि मंत्रालय के अनुसार पिछले पांच वर्षों में खाद्य तेल की प्नति व्यक्ति  उपलब्धता प्नति वर्ष 19.10 किलोग्नाम से 19.80 किलोग्राम रही। 2019-20 में सरसों तथा मूंगफली के प्राथमिक स्नोतों और नारियल, राइस ब्रॉन, कॉटन व पाम ऑयल जैसे दूसरे स्रोतों को मिलाकर उपलब्धता 10.65 मिलियन टन रही जबकि इस दौरान देश में तेल की मांग 24 मिलियन टन रही। मांग तथा आपूर्ति के मध्य 13 मिलियन टन के अंतर की पूर्ति हेतु 2019-20 में भारत द्वारा 61,559 करोड़ रुपये की कीमत का 13.35 मिलियन टन खाद्य तेल आयात किया गया। 
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर के अनुसार बढ़ते दामों पर अंकुश लगाने हेतु, संगठन द्वारा, सरकार से खाद्य तेल पर लगने वाली 5 प्रतिशत जीएसटी हटाने की मांग रखी गई, किंतु सरकार ने ऐसा करने की अपेक्षा उपभोक्ताओं पर बोझ डाल दिया, जिससे कीमतें और बढ़ गईं। 
 सॉल्वैंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बी.वी. मेहता के अनुसार इसका एक बड़ा कारण अमरीका, ब्राज़ील जैसे कई देशों द्वारा वैजिटेबल ऑयल से बॉयो फ्यूल बनाना है। चीन द्वारा बड़े पैमाने पर की जा रही खरीद, मलेशिया में लेबर संबंधी विवाद, पाम व सोया की बिजाई वाले क्षेत्रों में आने वाले समुद्नी तूफान ला निफिया का प्रभाव तथा मलेशिया तथा इंडोनेशिया में पाम ऑयल का निर्यात शुल्क अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ने के कारण हैं।
ऐसे में बाज़ारी संतुलन व ग्राहक-हित को मुख्य रखते हुए, सरकार द्वारा अपेक्षित कदम उठाने की उम्मीद है। संभावित है सरकार तेल भंडारण की सीमा निश्चित करते हुए संबंधित आयातकों एवं भंडारकों को पूरा ब्यौरा देने को कहे, जैसा कि दालों की कमी के समय देखा गया। हालांकि विशेषज्ञों के मतानुसार आपूर्ति बाधित होने से कीमतें और बढ़ सकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार शुद्ध सरसों के प्रयोग सहित, कुछ राज्यों द्वारा सरसों का रिफांइड तेल बनाए जाने के कारण इसकी खपत तेज़ी से बढ़ी है, जिस पर फिलहाल अंकुश लगाना अनिवार्य है।