संसद के हंगामे

जिस प्रकार की उम्मीद की जा रही थी कि संसद का मानसून अधिवेशन काफी हंगामों से परिपूर्ण होगा, उसी प्रकार हो भी रहा है। पैगासस स्पाईवेयर मामले ने संसद के दोनों सदनों की कार्रवाई को प्रभावित किया है। देश के समक्ष कई ऐसे मामले हैं जिनको विस्तृत रूप में इस अधिवेशन के दौरान विचाराधीन लाया जाना है। संसद ऐसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए माध्यम बनती है। इस बार इस सदन में सरकार की ओर से लगभग 31 विधेयक पारित करवाये जाने हैं। इनमें से 23 नये विधेयक एवं 6 अध्यादेश शामिल हैं। संसद का अधिवेशन शुरू होने के बाद सरकार की ओर से जारी किये गये अध्यादेशों को 42 दिनों में अथवा 6 सप्ताह में पास करवाया जाना आवश्यक होता है अन्यथा उनका कोई अर्थ नहीं रहता। दूसरी ओर विपक्षी दलों ने बेरोज़गारी एवं तेल की बढ़ती हुई कीमतों को अपनी बहस में अधिक उजागर करने की योजना बनाई हुई है।
विगत विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस एवं तमिलनाडू में द्रमुक की विजय ने भी संसद में विपक्ष की आवाज़ को और तीव्र किया है। इसके साथ ही सरकार की ओर से कोरोना की दूसरी लहर से निपट पाने में रह गई त्रुटियों के बारे में भी सरकार को भारी आलोचना सहन करनी पड़ेगी। नये कृषि कानूनों के विरोध में भी अधिकतर विपक्षी दल सरकार के विरुद्ध एकजुट हुये दिखाई दे रहे हैं। राज्यों की आर्थिकता का दुर्बल होना भी संसद में बहस का विषय बन सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय धरातल पर चीन एवं पाकिस्तान से निपटने में सरकार की कारगुज़ारी की भी जांच-पड़ताल की जाएगी। परन्तु अब इन उठाये जाने वाले मामलों में पैगासस स्पाइवेयर के संबंध में अ़खबारों में प्रकाशित जानकारी को लेकर सरकार को निशाने पर लिया जा रहा है। पिछले दो दिनों में विपक्षी दलों ने दोनों सदनों में हंगामा करके इन्हें चलने नहीं दिया। यहां तक कि प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल  में नये शामिल किये गये मंत्रियों का परिचय भी नहीं करवा सके। जहां तक पैगासस स्पाईवेयर का संबंध है, यह इज़रायल की ओर से बनाया गया एक ऐसा साफ्टवेयर है जिसे फोन पर मिस काल करके किसी के भी फोन में दाखिल किया जा सकता है जबकि फोन का इस्तेमाल करने वाले को इसकी कोई जानकारी भी नहीं होती। इसके माध्यम से सभी प्रकार की फोन पर पूरी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। कम्प्यूटरों में भी उपयोगकर्ताओं की जानकारी के बिना ही इसे दाखिल किया जा सकता है। आज विश्व के लगभग 50 देशों की सरकारें इसका उपयोग कर रही हैं। इज़रायल की कम्पनी इस जासूसी साफ्टवेयर को केवल सरकारों को ही बेचती है। इसका उपयोग आतंकवादियों के संगठनों की पूरी जानकारी हासिल करने के लिए किया जाता है परन्तु इसके साथ ही आज बहुत-सी सरकारें इसे अपने देशों में अपने राजनीतिक विरोधियों एवं पत्रकारों की सभी प्रकार की जासूसी करने के लिए भी प्रयुक्त करने लगी हैं। इसे साइबर हथियार के रूप में भी देखा जाता है। बहुत-से लोकतांत्रिक देशों में इस संबंध में मुकद्दमे भी चल रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व भारत में सरकार की ओर से देश-हित में जानकारी हासिल करने के ढंग-तरीकों को लेकर एक कानून बनाने के लिए विचार-विमर्श होता रहा है परन्तु अभी तक यह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका। अब मीडिया के एक वर्ग की ओर से विस्तार में ये खुलासे किये गये हैं कि जिन फोनों में यह साफ्टवेयर दाखिल किया गया है, उनमें 300 भारतीय फोन नम्बर भी शामिल हैं जिनमें राहुल गांधी सहित कुछ बड़े राजनीतिज्ञों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं बुद्धिजीवियों के नाम शामिल हैं। 
इस कारण शुरू हुए अधिवेशन में भारी हंगामे होने शुरू हो गए हैं। विपक्षी दल इस जासूसी के लिए सरकार पर आरोप लगा रहे हैं तथा इसे भारत के लोकतंत्र पर किया जा रहा आघात बता रहे हैं जबकि सरकार इस बात से इन्कार कर रही है। हम समझते हैं कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सरकार की ओर से अपनाये गये ऐसे ढंग-तरीके अत्यधिक आपत्तिजनक हैं तथा सरकार की इस संबंध में जवाबदेही बनती है। आगामी दिनों में भी इस विवाद के और उग्र होने की सम्भावना है। इसलिए बड़े स्तर पर निष्पक्ष जांच कराये जाने की आवश्यकता है। ऐसी जांच के बिना सरकार भारी आलोचना एवं सन्देह के घेरे में घिरी रहेगी। इसलिए उसे अपना पक्ष स्पष्ट रूप में जन-अदालत में रखना पड़ेगा। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द