ओलम्पिक खेलों में भारतीय महिला खिलाड़ी

नीलिमा घोष मात्र 17 वर्ष की थीं, जब वह ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाली आज़ाद भारत की पहली महिला एथलीट बनीं। उन्होंने हेलसिंकी 1952 में 100 मी दौड़ व 80 मी बाधा दौड़ में हिस्सा लिया था। नीलिमा घोष के अतिरिक्त उस ओलंपिक में तीन अन्य महिलाएं भी थीं यानी 64 खिलाड़ियों के दल में 4 महिलाएं थीं। नीलिमा घोष के अलावा दो दिन बाद 20-वर्षीय मैरी डीसूजा सिक्वेरा (जो कुछ वर्ष बाद एशिया की सबसे तेज धावकों में से एक बनी और जिन्हें 2013 में ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया) ने 100 मी. व 200 मी. में भाग लिया। इन दो धाविकाओं के अतिरिक्त दो महिला तैराकों- डॉली नजीर व आरती साहा- ने भी हेलसिंकी 1952 में हिस्सा लिया था। हालांकि ये चारों महिलाएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की नहीं थीं, हीटस से आगे नहीं बढ़ सकीं, लेकिन फि र भी भारत के लिए यह ऐतिहासिक पल था, जिसने बाद की महिला खिलाड़ियों के लिए मजबूत नींव रखी, जिसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि रिओ 2016 में भारत ने केवल दो पदक जीते और वे दोनों ही महिलाओं के जरिये आये- पीवी सिंधु (रजत, बैडमिंटन) व साक्षी मलिक (कांस्य, कुश्ती)।
वैसे अगर इतिहास की दृष्टि से देखा जाये तो ओलंपिक में भारतीय महिलाओं ने सबसे पहले पेरिस 1924 में लिया था। बंगाल में जन्मीं नोरा पोली व बेंगलूर की लेडी मेहरबाई टाटा पहली भारतीय महिला ओलम्पियन हैं। इन दोनों ने टेनिस में हिस्सा लिया था। नोरा तो मिश्रित युगल के सेमी-फ ाइनल में भी पहुंचीं थीं,अगर आज की तरह टेनिस के सेमी-फाइनल में हारने वाले खिलाड़ियों को भी पदक देने की परम्परा उस समय होती तो उन्हें कांस्य पदक मिल जाता। लेडी टाटा ने अपने मिश्रित क्वार्टर फ ाइनल मैच में वाक-ओवर दे दिया था, जिसके दो कारण बताये जाते हैं, यकीन से नहीं कहा जा सकता कि कौन-सा कारण सही है- बहरहाल कारण यह हैं- एक, लेडी टाटा चाहती थीं कि उनका मिश्रित युगल पार्टनर मुहम्मद सलीम अपने एकल मैचों पर फ ोकस करे। दूसरा यह कि वह स्वयं बीमार हो गई थीं और खेलने की स्थिति में नहीं थीं। 
यह आश्चर्य की बात है कि 1952 में चार महिला एथलीट को ओलंपिक में भेजने के बाद भारत ने मेलबोर्न 1956 में सिर्फ  एक महिला (मैरी राव, एथलेटिक्स) को भेजा। हालांकि मैरी डीसूजा सिक्वेरा ने 100 मी व 200 मी में 1956 में एशियन रिकॉर्ड स्थापित किया था, उन्होंने मेलबोर्न के लिए क्वालीफाई भी कर लिया था, लेकिन भारत सरकार ने उन्हें ओलंपिक में यह कहते हुए नहीं भेजा कि उसके पास महिला टीम के लिए फंड्स नहीं हैं। मैरी डीसूजा सिक्वेरा भारत की पहली डबल इंटरनेशनल हैं। उन्होंने हॉकी में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया है। रोम 1960 में 45 प्रतिस्पर्धियों के भारतीय दल में एक भी महिला नहीं थी। टोक्यो 1964 में 53 प्रतिस्पर्धियों के भारतीय दल में मात्र एक महिला (स्टेफी डीसूजा, एथलेटिक्स) थी। मेक्सिको 1968 में भारत ने मात्र 25 खिलाड़ी भेजे, जिनमें एक भी महिला नहीं थी। म्यूनिख 1972 में एक बार फि र 41 प्रतिस्पर्धियों के भारतीय दल में सिर्फ  एक महिला (कमलजीत संधू, एथलेटिक्स) थी। मोंट्रियल 1976 में भारत ने सिर्फ 16 सदस्यों की पुरुष हॉकी टीम भेजी थी, यानी किसी महिला एथलिट को नहीं भेजा गया। मास्को 1980 में भारतीय दल 76 सदस्यों का था, जिसमें 18 महिलाएं थीं, यानी पहली बार भारत ने दो अंकों में महिला खिलाड़ी ओलंपिक में भेजी थीं। यह पहला अवसर था जब महिला हॉकी टीम ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था, इसके 36 वर्ष बाद महिला हॉकी टीम ने रिओ 2016 में क्वालीफाई किया।
हालांकि लॉस एंजेल्स 1984 में भारत ने कोई पदक नहीं जीता, लेकिन यह दो मुख्य कारणों से याद रखा जायेगा। एक, पीटी उषा सेकंड के सौवें हिस्से से 400 मी बाधा दौड़ में पदक से चूक गईं। दो, शाइनी अब्राहम पहली भारतीय महिला बनीं ओलंपिक की किसी भी व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा (800 मी) के सेमी-फाइनल में पहुंचने वाली। इन दोनों महिलाओं की कोशिशों से भारतीय महिला एथलीट्स सेंटर स्टेज पर आयीं। सीओल 1988 में भारत ने 18 महिलाओं को हिस्सेदारी के लिए भेजा, कोई भी कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन न कर सकी, टेबल टेनिस में नियति रॉय अपने ग्रुप में छठे स्थान पर रहीं। बार्सिलोना 1992 में भारत ने कुल 52 खिलाड़ी भेजे थे, जिनमें से 6 महिलाएं थीं। यह पहला अवसर था जब ओलंपिक में बैडमिंटन को शामिल किया गया, जिसमें मधुमिता बिष्ट भारत की महिला प्रतिनिधि थीं।  इस बार भारत के 49 के दल में 9 महिलाएं थीं, जिनमें से किसी ने भी कोई कारनामा नहीं किया। बहरहाल, सिडनी 2000 में भारत ने 21 महिलाओं को भेजा और वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला बनीं। उन्होंने 69 किलो वर्ग में कांस्य पदक जीता। एथेंस 2004 में 73 सदस्यों के भारतीय दल में 28 महिलाएं थीं। लंदन 2012 में भारतीय दल (83) में 23 महिलाएं थीं, जिनमें से साइना नेहवाल (कांस्य, बैडमिंटन) और मैरी कोम (कांस्य, बॉक्सिंग)। हालांकि रिओ 2016 में भारत ने पुरुष खिलाड़ियों (63) के साथ 54 महिलाओं को मुकाबले के लिए भेजा, लेकिन उसे सिर्फ  दो ही पदक प्राप्त हुए और वह भी महिलाओं के द्वारा- पीवी सिंधु (रजत, बैडमिंटन) और साक्षी मलिक (कांस्य, कुश्ती)। अब 32वें ओलम्पियाड जोकि टोक्यो 2020 हैं व स्थगन के कारण 2021 में हो रहे हैं, में भारत अपने 119 के दल में 52 एथलीट्स भेजे हैं। अभी हाल ही में मीराबाई चानू ने महिला भारोत्तोलन में भारत की झोली में रजत पदक डाला है। अभी अन्य सभी से भी अनेकों आशाएं हैं।