चलनी चाहिए संसद की कार्रवाई

संसद का मानसून अधिवेशन 19 जुलाई को शुरू हुआ था। उसके बाद अवकाश को छोड़ कर यह निरन्तर चलता रहा है परन्तु इसका किसी भी प्रकार से कोई लाभ हुआ दिखाई नहीं देता। अधिवेशन से पूर्व यह बताया गया था कि इसमें दर्जनों महत्त्वपूर्ण विधेयक पेश किये जाने हैं तथा उन पर विस्तारपूर्वक बहस एवं विचार-विमर्श भी किया जाएगा। अधिवेशन शुरू होने से पूर्व लोकसभा के अध्यक्ष एवं राज्यसभा के चेयरमैन ने भी सभी दलों के प्रतिनिधि सदस्यों के साथ बैठकें भी की थीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी सभी को अपील की थी कि अधिवेशन में महत्त्वपूर्ण विचार-विमर्श किये जाने हैं परन्तु विगत 10 दिनों में दोनों ही सदनों में हंगामा होने के अतिरिक्त कोई कार्य नहीं चल सका। 
विपक्षी दलों ने पहले से ही यह ठान रखी है कि इस बार कोई काम नहीं होने देना। उनके सदस्य जासूसी एवं किसान मुद्दों पर निरन्तर संसद के भीतर और बाहर ज़ोरदार ढंग से आवाज़ उठाते आ रहे हैं। सरकार भी इस हालत में विवश हुई दिखाई देती है। अब राज्यसभा के उप-नेता एवं केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने बयान दिया है कि केन्द्र ने सोमवार  की रात्रि एवं मंगलवार की सुबह को विपक्षी दलों को यह विश्वास दिलाया है कि सरकार विरोधी सदस्यों की ओर से उठाये गये सभी मुद्दों एवं पूछे गये सभी प्रश्नों का जवाब देने के लिए तैयार है तथा दोनों ही सदनों में इन सभी मामलों पर विस्तृत बहस करवाने के लिए भी तैयार है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले दिनों कुछ ऐसे मामले भी उभरे हैं जो एकबारगी सदन का ध्यान आकर्षित करते हैं। इनमें एक कांग्रेस के सांसद रिपुदमन बोहरा द्वारा असम-मिज़ोरम सीमा पर हुये झगड़े का मामला भी शामिल है जिसमें असम पुलिस के पांच कर्मचारी मारे गये हैं। ये दोनों राज्यों में उभरी एक ऐसी समस्या है जो अत्यधिक गम्भीर है परन्तु संसद के सदनों में हो रहे शोरगुल में इस संबंध में भी विचार-विमर्श नहीं हो सका। इस संबंध में राज्यसभा के चेयरमैन एम. वेकैंया नायडू की टिप्पणियां महत्त्वपूर्ण हैं जिनमें उन्होंने कहा है कि सदन के कुछ सदस्य इसे न चलने देने के लिए बज़िद हैं जबकि देश की संसद कानून बनाने एवं जन-समस्याओं पर विस्तारपूर्वक बहस एवं विचार-विमर्श करने के लिए होती है। उन्होंने यह भी कहा कि सदन में होने वाले शोरगुल के चलते वे सदस्य भी अपने मामले उठाने से वंचित रह गये हैं जो उनके लिए महत्त्वपूर्ण हैं। 
नायडू ने यह भी कहा कि कोरोना संबंधी टीकाकरण, प्रैस की आज़ादी पर हमलों का आरोप लगाने एवं यहां तक कि पैगासस मामले में सरकार से स्पष्टीकरण लेने का भी अवसर खो दिया गया है। उन्होंने कहा कि विगत सप्ताह 63 सदस्यों की ओर से उठाये गये 57 मामलों पर बहस करने की इजाज़त दी गई थी परन्तु इनमें से किसी पर भी विचार नहीं किया जा सका। 26 जुलाई को हुये हंगामों के दौरान लोकसभा में दो विधेयक बड़ी कठिनाई से किसी न किसी प्रकार पारित करवा लिये गये थे। हम अनुभव करते हैं कि विपक्षी दलों को संसद न चलने देने का हठ छोड़ कर महत्त्वपूर्ण मामलों पर विस्तारपूर्वक बहस हेतु ज़ोर देना चाहिए ताकि उनके विचार मीडिया के माध्यम से लोगों के सामने आ सकें। इसके साथ ही महत्त्वपूर्ण विधेयकों के संबंध में भी आपसी सहमति बना कर आगे बढ़ने का यत्न किया जाना चाहिए जो समय की बड़ी आवश्यकता कहा जा सकता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द