स्थानीय फलों की काश्त बढ़ाकर विदेशी फलों की खपत कम करने की आवश्यकता

पंजाब में 93000 हैक्टेयर रकबा बागवानी के अधीन है जिसमें लगभग 18 लाख मीट्रिक टन फलों का उत्पादन होता है। इसके बावजूद गर्मियों के मौसम में और आजकल बरसात में उपभोक्ताओं को यहां पैदा किये जा रहे फल बड़ी थोड़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। इस मौसम में उपभोक्ता अधिकतर विदेशी फल इस्तेमाल कर रहे हैं। इन फलों की कीमतें इतनी अधिक हैं कि इन्हें खरीदने का आम आदमी के पास शक्ति ही नहीं। न्यूज़ीलैंड का सेब 250 रुपये प्रति किलो, किन्नौर हिमाचल का 200 रुपये प्रति किलो और कश्मीर का 150 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। कैलिफार्निया का अंगूर 400 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। चैरी 500 रुपये प्रति किलो, माल्टा 120 रुपये प्रति किलो, अनार (नासिक) 150 रुपये प्रति किलो, आड़ू 100 रुपये प्रति किलो, पपीता डिस्को 80 रुपये किलो, तरबूज (महाराष्ट्र) 60 रुपये किलो, आलू बुखारा (न्यूज़ीलैंड) 250 रुपये किलो, श्रद्धा 100 रुपये किलो, अमरूद (थाईलैंड) 200 रुपये किलो, कीवी गोल्डन 65 से 70 प्रति पीस, कीवी ग्रीन 50 रुपये का पीस बिक रहे हैं। स्थानीय पैदा किये जा रहे फलों की कीमतें भी कमी के कारण आसमान चढ़ी हुई हैं। अंजीर 400 रुपये किलो, आलू बुखारा 150 रुपये किलो, पपीता 50 रुपये किलो, केला 40 रुपये किलो, बेल 100 किलो, जामुन 250 रुपये किलो, आम 60 रुपये से 100 रुपये किलो तक बिक रहे हैं। पुष्टिकर शक्तिदायक, फाल्सा, शहतूत, लुकाठ, पर्लट अंगूर तो गायब ही हो गए हैं।  नींबू भी 60 रुपये किलो बिक रहा है। कुछ दिन पहले यह 100 रुपये किलो मिल रहा था। चाहे अब बारामासी नींबू भी मंडी में बिक रहा है, परन्तु इसका उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है। नींबू संबंधी अनुसंधान और मज़बूत किये जाने की ज़रूरत है। 
बागवानी विभाग के प्रमुख डायरैक्टर शैलिन्द्र कौर कहती हैं कि स्थानीय फलों का उत्पादन बढ़ाने और बागवानों एवं किसानों को स्थानीय फल लगाने के लिए उत्साहित करने संबंधी हम आम, जामुन, अमरूद, शहतूत, फाल्सा, करौंदा, लसूड़ा, बेर, बेल, कथल आदि फलों के 2.5 लाख ‘सीड बाल’ बागबानों और किसानों को मुफ्त देने जा रहे हैं। गैर-सरकारी संस्थाओं को भी यह ‘सीड बाल’ उपलब्ध किये जाएंगे। इन सीड बालों में उगने की शक्ति पूरी होगी और इन फलों के मरने की कोई आशंका नहीं। इन पेड़ों के लगने से स्थानीय फलों का उत्पादन बढ़ेगा और आम आदमी इन्हें खरीद कर खा सकेगा। डायरैक्टर शैलिन्द्र कौर के अनुसार राज्य में 350 कैंप इन फलों की जानकारी देने हेतु विभाग द्वारा लगाए गये हैं। पंजाब की भू एवं पर्यावरण फलों का उत्पादन करने के अनुकूल हैं। इन ‘सीड बाल’ फलों की काश्त अब से 15 अगस्त तक की जा सकती है। 
बागवानी विभाग द्वारा राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अधीन नये बाग लगाने के लिए 40 से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है। विभाग के डायरैक्टर पटियाला डा. स्वर्ण सिंह मान कहते हैं कि अमरूद का उत्पादन बढ़ाने के लिए पटियाला जिले के वजीदपुर में अमरूद एस्टेट को मज़बूत किया जा रहा है। यहां से बागवानों को तकनीकी जनकारी के अतिरिक्त मशीनरी, खाद और दवाईयां भी कम कीमत पर उपलब्ध होंगी। पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना के क्षेत्रीय और फल अनुसंधान केन्द्र बहादुरगढ़ में अमरूद की प्रोसैसिंग करने वाली किस्में विकसित की जा रही हैं। इनके नये बाग लगने से प्रोसैसिंग उद्योग का विकास होगा। नाशपाती की काश्त के अधीन लगभग 3200 हैक्टेयर रकबा है और उत्पादन 73000 टन है। इसे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। नाशपाती में प्रोटीन, विटामिन ए, विटामिन बी और कैल्शियम, फासफोर्स, लोहा आदि सभी गुण होते हैं। इसकी काश्त के लिए पंजाब नाख, पत्थर नाख, अर्ध-नर्म नाशपाती, पंजाब गोल्ड, पंजाब ब्यूटी, बब्गू गोशा और पंजाब सॉफ्ट जैसी किस्में उपलब्ध हैं।  अंगूर की किस्में सुपीरियर सीडलैस, ब्यूटी सीडलैस, पूसा सीडलैस, पूसा नवरंग और परलट्ट उपलब्ध हैं।