योग की युक्ति, कब्ज़ से मुक्ति

यह कथन अक्षरश: सत्य है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है। स्वस्थ शरीर के लिए जहाँ भोजन जरूरी होता है, वहीं इससे भी जरूरी उसका पचना होता है। सभी शारीरिक व्याधियों का केन्द्र इसे ही माना जाता है। पाचन-तंत्र से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बीमारी कब्ज की शिकायत है। यह पेट से जुड़ी अनेक बीमारियों का कारक है। इस बीमारी से पीड़ित लोगों का न तो शरीर ही स्वस्थ रहता है और न ही मन। स्वभाव से आदमी चिड़चिड़ा हो जाता है। कब्ज मनुष्य के पाचन संस्थान के निचले हिस्से में होने वाली एक बीमारी है। इसमें शरीर से मल का निष्कासन पर्याप्त मात्र में नहीं होता। मल की कुछ मात्र बड़ी आंत में जमा रहती है। जब यह स्थिति लम्बे समय तक बनी रहती है तो बीमारी का रूप धारण कर लेती है। ऐसी स्थिति में शरीर के सारे ऊतकों और कोशिकाओं में इस मल से उत्पन्न विषैले तत्व एकत्र होने लगते हैं। यह पूरी पाचन प्रक्रि या को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।कब्ज की बीमारी की भयावहता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक तीन में से एक व्यक्ति इससे पीड़ित होता है। यह बीमारी इतनी सामान्य हो गयी है कि लोगों का इसके प्रति अब अधिक ध्यान ही नहीं जाता। फलस्वरूप कालांतर में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। यह बीमारी सार्वकालिक एवं सार्वदेशिक मानी जाती है। कब्ज के प्रमुख कारणों में से कुछ कारण निम्नांकित हैं : 
जीवनशैली : कब्ज की बीमारी आमतौर पर ऐसे लोगों को अधिक होती है जिनकी जीवनशैली अल्प क्रि याशील होती है अर्थात् जो दिनभर कुर्सियों या गद्दों पर ही बैठ कर काम करते हैं, उनके शरीर में कड़ापन आ जाता है और रक्त-प्रवाह में बाधा उत्पन्न होकर कब्ज की शिकायत बनती है। 
आहार संबंधी आदतें : आहार में पर्याप्त मात्रा में हरी सब्जियां, रेशेयुक्त खाद्य पदार्थ, फल, दूध आदि नहीं लेने पर कब्ज की शिकायत होती रहती है। मल कम मात्रा में तथा कड़ा निकलता है। फलस्वरूप इसका निष्कासन उचित ढं़ग से नहीं हो पाता इसलिए भोजन में उचित खाद्य पदार्थ खाने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
पाश्चात्य शौच व्यवस्था :  कमोड जैसी शौच व्यवस्था मल-त्याग के लिए उचित नहीं मानी जाती। इसमें बड़ी आंत और मल मार्ग शिथिल नहीं हो पाते तथा निष्कासन मार्ग भी एक सीध में नहीं हो पाता। मल त्याग की पुरानी पद्धति ही उचित है। इसमें बड़ी आंत भी ठीक तरह से साफ हो जाती है और कब्ज की शिकायत भी नहीं होती।
उपचार :  योग द्वारा कब्ज का उपचार:- ऐसा नहीं है कि कब्ज लाइलाज है। इससे मुक्ति के लिए योगाभ्यास, उचित आहार और आदतों में सुधार की आवश्यकता होती है। कुछ यौगिक क्रि याओं के सहारे भी गंभीर कब्ज से छुटकारा पाया जा सकता है।
सूर्य नमस्कार :  प्रत्येक दिन दिनचर्या स्वरूप बारह आवृत्तियों में सूर्य नमस्कार का अभ्यास करते रहने से कब्ज से मुक्ति मिल सकती है। 
आसन प्रक्रिया : विभिन्न प्रकार की आसन प्रक्रि याओं से भी कब्ज से छुटकारा पाया जा सकता है। कौआचाल, त्रिकोणासन, आगे और पीछे मुड़ने वाले सभी आसन, पवनमुक्तासन, हलासन, ताड़ासन, मयूरासन, भुजंगासन आदि अनेक ऐसे आसन हैं जिनका नियमित रूप से दस से पन्द्रह मिनट तक अभ्यास करके कब्ज से छुटकारा पाया जा सकता है। वज्रासन में बैठना भी कब्ज में लाभदायक होता है।
 प्राणायाम : नियमित रूप से प्राणायाम करना चाहिए।
 षट्क्रि या : योग विद्या में निपुण किसी व्यक्ति के निर्देशन में षट्क्रि या का अभ्यास करके कब्ज को भगाया जा सकता है। अग्निसार, बस्ति, नौली, मूलबंध आदि षट्क्रि याओं का अंश है। लघुशंख प्रक्षालन भी किया जा सकता है। पूर्ण लघुशंख प्रलाक्षन भी अत्यन्त महत्वपूर्ण यौगिक क्रि या है। 
एहतियाती उपाय भी आवश्यक :  कब्ज का प्रकोप न हो, इसके लिए निम्नांकित उपायों को करते रहना आवश्यक है-
* निश्चित समय पर शौच की आदत डालें। = भोजन करने के बाद लेटें या सोएं नहीं बल्कि वज्रासन करें या थोड़ी देर टहलें। = शारीरिक संवेग को बनाए रखने के लिए सुबह-शाम अवश्य टहलें। = भोजन के तुरन्त बाद सम्भोगरत न हों तथा सम्भोग के तुरंत बाद मूत्रत्याग अवश्य कर लें। * ठंडे जल से ही स्नान करने की आदत डालें। = सप्ताह में कम से कम एक-दो बार चना का भूजा या सत्तू का प्रयोग अवश्य करें। मोटी रोटी अर्थात् जौ, मक्का आदि की रोटी खाने की आदत डालें। = किसी भी प्रकार की औषधि जो पेट को साफ रखती हो, का प्रयोग बिना चिकित्सक की सलाह से न करें।  (स्वास्थ्य दर्पण)