कहीं आप भय रोगी तो नहीं

भय एक ऐसा मानसिक रोग है जो मनुष्य को अंदर से कमजोर बना देता है। इस तरह के रोगी सदैव भयभीत रहते हैं। इससे इनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। आज कल के साइबर युग में तीव्र गति से चलने वाला मानव जीवन ही मनुष्य के मानसिक और शारीरिक स्वभाव में परिवर्तन का जिम्मेदार है। मनुष्य के पास साधन सीमित होने से बेचैनी घबराहट, गलत ढंग से इच्छाओं की पूर्ति करना, चिंता, क्रोध तथा, भय इत्यादि अनायास ही आकार जीवन को दुखी बनाते रहते हैं। भय और क्रोध यह दोनों ही ऐसी मानसिक अवस्थाएं हैं जो मनुष्य को दिन-प्रतिदिन कमजोर बनाती चलती हैं। जो व्यक्ति अधिक भयतीत रहते हैं, वे कभी भी शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ नहीं रह सकते। साधारण सी बात पर भी भय का अनुभव करने वाला व्यक्ति कभी स्वस्थ नहीं रह सकता। उसकी पाचन शक्ति और यकृत कमजोर हो जाते हैं। समाज में वह अपने आपको अकेला तथा मित्रविहीन पाता है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनको भय के साथ जीवन के प्रति अत्यधिक निराशा घेरे रहती है। ऐसे रोगी आत्मविश्वास की कमी के कारण आत्महत्या करने की सोचने लगते हैं। इस प्रकार के रोगी शोर सहन नहीं कर पाते। उनके मस्तिष्क का संतुलन बिगड़ जाता है। वे अंधेरे में जाने से डरते हैं। मृत्यु भय के कारण जुबान सूखने लगती है। कभी वे स्वप्न में डरावने चेहरे देखते हैं तो कभी नींद में बड़बड़ाने लगते हैं। भय अनेक प्रकार के होते हैं जैसे मृत्यु से भय, अंधेरे से भय, असामाजिक तत्वों का भय, चोरी का भय इत्यादि। अपराध करके भयभीत होना स्वाभाविक है किंतु सामान्य स्थिति में मानव का भयभीत रहना रोग का लक्षण माना जाता है।

 (स्वास्थ्य दर्पण)