हिमाचल प्रदेश का गौरव है नेत्रहीन खिलाड़ी बुद्ध राम 

राम कौशल एक ऐसा नौजवान है, जो नेत्रहीन है परन्तु उसने अपनी उम्मीदों को अवश्य रौशन किया है और कहता है कि ‘रौशन हूं रौशनी की तरह।’ बुद्ध राम का जन्म हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के एक गांव बनोगी में पिता गुड्डू राम और माता मान दास के घर हुआ। जब उससे जन्म लिया तो यह पता चला कि उसे बहुत ही कम दिखाई देता है और आंखों के डाक्टरों के पास भी ले जाया गया परन्तु डाक्टरों ने इस बात की पुष्टि कर दी कि इस बच्चे की रौशनी वापस नहीं आएगी, क्योंकि उसकी रौशनी जन्म से ही कम है। माता-पिता के लिए यह बात एक बड़े सदमे वाली थी परन्तु कुछ नहीं किया जा सकता था। बुद्ध राम ने बचपन की दहलीज़ पार की तो उसने महसूस किया कि वह इस रंगीन संसार में अकेला नहीं, जिसे कम दिखाई देता है। उसने अपने-आप में एक ऐसा हौसला पैदा किया कि आज वह सबके लिए ज़िन्दादिल मिसाल है। पढ़ाई के साथ-साथ उसने खेलों में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी और वह कम दिखाई देने वाले बच्चों के साथ पैरा खेलें खेलने लगा और जीत दर्ज करने लगा। उसने वर्ष 2009 में खेलना शुरू किया था और आज तक खेल रहा है। खेलों में एथलैटिक्स, फुटबाल, शतरंज उसका पसंदीदा खेल है परन्तु वह वर्तमान में हिमाचल प्रदेश की नेत्रहीन क्रिकेट टीम का कप्तान है और उसने अपने 13 वर्षीय क्रिकेट करियर के दौरान अन्तर्राज्यीय नार्थ ज़ोन राष्ट्रीय स्तर के 20 टूर्नामैंट खेले हैं। वर्ष 2017 में  शकुंतला मिश्रा के नेतृत्व में बुद्ध राम की बदौलत उनकी टीम चैम्पियन बनी। यहां ही बस नहीं एथलैटिक्स खेलते हुए राष्ट्रीय स्तर के मुकाबलों में दो बार स्वर्ण पदक ही जीते हैं परन्तु उसका पूरा ध्यान क्रिकेट पर है, क्योंकि उसका वास्तविक लक्ष्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए खेलने का है। इसके साथ इसी वर्ष होने वाली राष्ट्र स्तरीय क्रिकेट नागेस ट्राफी भी अपनी टीम के नाम करने की है। बुद्ध राम कहते हैं, ‘हिम्मत हारनी नहीं हिम्मत बनानी है, क्योंकि यदि जज़्बा कमाल हो, हिम्मत बेमिसाल हो तो आप दूसरों से लाजवाब होंगें।’

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