लाचारी और मजबूरी को हावी नहीं होने दिया झाझड़िया ने 

टोक्यो पैरालम्पिक में भारत के देवेंद्र झाझड़िया ने पुरुषों के जैवलिन थ्रो-एफ 46 में रजत जीत कर भारत का नाम रोशन किया है। पैरालम्पिक में उन्होंने 64.35 मीटर भाला फेंककर रजत पदक अपने नाम किया। इसी के साथ ही देवेंद्र झाझड़िया के पास अब पैरालम्पिक में पदकों की संख्या तीन हो गई है। राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के चूरू जिले के देवेन्द्र झाझड़िया अब तक दर्जनों पदक अपने नाम कर चुके हैं। 2004 में एथेंस पैरालम्पिक में देवेन्द्र ने 62.15 मीटर भाला फेंककर विश्व रिकार्ड बनाया था। इस बाद देवेन्द्र ने रियो पैरालम्पिक-2016 में अपना ही बनाया विश्व रिकार्ड तोड़ते हुए 63.97 मीटर भाला फेंककर नया विश्व रिकार्ड बनाया था। कतर की राजधानी दोहा में सम्पन्न हुये आईपीसी 2015 विश्व पैरा एथलेटिक्स चौम्पियनशिप के जैवलिन थ्रो (भाला फेंक) में भारत की और से  देवेन्द्र झाझड़िया ने रजत पदक जीत कर भारत का मान बढ़ाया था। यह स्पर्धा पैरालम्पिक के बाद विश्व की सबसे बड़ी प्रतियोगिता मानी जाती है। इससे पूर्व झाझड़िया ने 2013 में फ्रांस के लियोन शहर में आईपीसी विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था। उन्होंने फ्रांस के लियोन में सम्पन्न हुयी विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जैवलिन थ्रो में 57.04 मीटर दूरी तक थ्रो कर स्वर्ण पदक जीता था। विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में लगातार भारत की तरफ से पदक जीतने वाले देवेन्द्र एकमात्र खिलाड़ी हैं। आठ साल की उम्र में बिजली के करंट का शिकार होकर अपना एक हाथ गंवा देने वाले देवेंद्र झाझडिया के लिए यह हादसा कोई कम नहीं था। हादसे के बाद एक लम्बा वक्त बिस्तर पर गुजारने के बाद जब देवेंद्र उठा तो उसके मन में एक और ही संकल्प था और उसके बचे हुए दूसरे हाथ में उस संकल्प की शक्ति देखने लायक थी। देवेंद्र ने अपनी लाचारी और मजबूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। कुदरत के इस अन्याय को ही अपना सम्बल मानकर हाथ में भाला थाम लिया और एथेंस पैरालम्पिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर वो करिश्मा कर दिखाया जिसका ख्वाब हर कोई देखता है। राजस्थान में चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के छोटे से गांव जयपुरिया की ढाणी में एक साधारण किसान रामसिंह के घर 10 जून, 1981 को जन्मे देवेंद्र किसी परिचय के मोहताज नहीं। गांव के जोहड़ में देवेंद्र ने लकड़ी का भाला बनाकर खुद ही अभ्यास शुरू कर दिया। कालेज में पढ़ते वक्त बंगलौर में राष्ट्रीय खेलों में जैवलिन थ्रो और शाट पुट में पदक जीतने के बाद तो देवेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1999 में राष्ट्रीय स्तर पर जैवलिन थ्रो में सामान्य वर्ग के साथ कड़े मुकाबले के बावजूद स्वर्ण पदक जीतना देवेंद्र के लिए बड़ी उपलब्धि थी। देवेंद्र के ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत हुई 2002 के बुसान (दक्षिण कोरिया) एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने के साथ। इसके बाद 2003 के ब्रिटिश ओपन खेलों में देवेंद्र ने जैवलिन थ्रो, शाट पुट और ट्रिपल जम्प तीनों स्पर्धाओं में सोने के पदक अपनी झोली में डाले। देश के खेल इतिहास में देवेंद्र का नाम उस दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया जब उन्होंने 2004 के एथेंस ग्रीस पैरालम्पिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। 2006 में मलेशिया के कुआलालमपुर में आयोजित फेसपिक गेम्स में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। 2007 के विश्व खेलों में रजत पदक व 2009 के विश्व में स्वर्ण पदक जीता था। देवेंद्र झाझड़िया ने दुबई में सम्पन्न छठी फैजा इंटरनेशनल चैंपियनशिप में जैवेलियन थ्रो स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता।देवेंद्र की कामयाबियों पर उन्हें 3 दिसम्बर 2004 को राष्ट्रपति ने प्रशस्ति पत्र प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया था। 2004 में महाराणा प्रताप राज्य खेल पुरस्कार मिला। 29 अगस्त 2005 में अर्जुन अवार्ड से नवाजे गए। 2005 में पीसीआई उत्कृष्ट खिलाड़ी पुरस्कार मिला। 2014 में पद्मश्री और पैरा स्पोर्ट्स पर्सन आफ द ईयर अवार्ड मिला। 2016 में जीक्यू मैगजीन ने बेस्ट प्लेयर के अवार्ड से नवाजे गए। 29 अगस्त, 2017 को खेलों में देश का सबसे बड़ा मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड मिला। देवेन्द्र झाझड़िया का मानना है कि ग्रामीण इलाकों में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं हैं मगर वे प्रतिभायें सुविधाओं के अभाव में आगे नहीं आ पाती हैं। (अदिति)