परिवार की धड़कन होती है बेटियां

माता-पिता के जीवन में जादुई रचना का भरना, 
माता-पिता के रोज़मर्रा जीवन में ताज़ी हवा की तरह चलना।
सारे परिवार को एक ऊर्जा के साथ भरन्ना।

इन पंक्तियों को पढ़ कर ही आभास हो जाता है कि हम उस व्यक्ति की बात कर रहे हैं, जो अपने परिवार के लिए बिना शर्त प्यार लेकर जन्म लेती है-एक बेटी, एक पुत्री। सदियों से अब तक समाज की महान शख्सियतों और सकारात्मक तत्वों की ओर से लड़की, बेटी के अधिकार के लिए, उसके सहारे के लिए समर्थन का नारा  लगाया जाता रहा है। दुनिया के बहुत-से भागों में बेटे अर्थात् नर का महत्त्व मादा अर्थात् बेटी से अधिक रहा है। यहां तक कि हमारे देश, हमारे राज्य के कई भागों में एक बेटी को जन्म देने से एक नकारात्मक भावना जुड़ी हुई है। ऐसी भावना को दूर करने के लिए तथा बेटी की माता-पिता के जीवन में विशेषता पर रोशनी डालने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय बेटी दिवस मनाया जाना शुरू हुआ। जब एक परिवार में बेटी जन्म लेती है तो उस परिवार के बुजुर्गों का भविष्य मानो सुरक्षित हो जाता है, क्योंकि एक बेटी अपने माता-पिता के लिए सबसे बड़ी ताकत और सहारा होती है। पूरा जीवन एक बेटी ही है जो हर समय अपने परिवार के सुख के लिए कुर्बानी देने के लिए तत्पर रहती है। बेटी ऐसा अनमोल हीरा है, जिसकी कीमत अर्थात् प्रतिभा का उसके युवा होने के एक-एक बीते दिन से पता चलता है। बेटी एक खूबसूरत गुलदस्ते की तरह होती है, जो प्यार, दया और चिन्तनशीलता के गुणों का सुमेल है।  बेटी एक परिवार को जोड़ने वाली शक्ति की तरह होती है जो पूरे परिवार को प्यार से एकजुट बनाए रखती है। बेटी का रिश्ता बचपन से ही मां के साथ सबसे नज़दीक का होता है, लेकिन जैसे-जैसे वह युवा होती जाती है, पिता के साथ उसका एक अलग ही रिश्ता बन जाता है। यह रिश्ता बहुत ही गहरा और भावुक होता है। एक व्यक्ति की शख्सियत, सोच में बहुत अंतर आता है, जब उसके घर बेटी जन्म लेती है। लड़कियों का सम्मान करना, उन्हें बेटों के समान समझना, सब उसके व्यक्तित्व का भाग बन जाते हैं।  बेटी चाहे छोटी हो चाहे बड़ी, वह बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ हर काम में हाथ बंटाने में पीछे नहीं रहती। घर के बुजुर्गों के साथ प्यार भरी बातें करती, उनका दिल लगाये रखती है। बाल्यवस्था से ही बेटी की कोमल और मासूम बातों से सभी घर के सदस्यों का मन खिल उठता है। बेटी एक चुम्बक की भांति होती है, जिस पर घर के बड़े से लेकर छोटे सब निर्भर करने लग जाते हैं। चाहे दादी को इंटरनेट चलाना सीखाना हो, मां के साथ रसोई में हाथ बंटाना हो। पिता की चीज़ें ढूंढनी हों, या छोटे भाई-बहनों को पढ़ाना हो, एक बेटी ही है, जो एक सर्वपक्षीय शख्सियत की भांति यह भूमिका निभाती है। जब कभी बेटी पर कोई आंच आती है तो माता-पिता की दुनिया हिल जाती है। समाज के वे लोग जो लड़कियों का सम्मान नहीं करते, लड़कियों के साथ नकारात्मक व्यवहार करने से पहले यह नहीं सोचते कि वह किसी की बेटी है, वह किसी के घर का चिराग है। एक माता-पिता के लिए सबसे मुश्किल काम होता है बेटी को विदा करना। अपने दिल के टुकड़े को किसी अन्य को सौंपना। लेकिन बहुत दुख होता प्रतिदिन समाचार सुनकर-पढ़ कर जब किसी की बेटी को दहेज के लिए या झूठे अहंकार के लिए बलि चढ़ना पड़ता है और कई बार इस काम में महिलाएं भी साथ देती हैं, यह भूल कर कि वह भी किसी की बेटियां हैं। बेटी का शिक्षित होना समाज के लिए एक वरदान है। बेटी शिक्षित होगी तो वह अपने परिवार को जागरूक करेगी, जिससे समाज सद्मार्ग पर चलेगा। जब हमारा समाज, सही अर्थों में शिक्षित और प्रगतिशील विचारों वाला बन कर बेटियों को सम्मान की दृष्टि से देखेगा, तब हमारा समाज सचमुच एक आधुनिक समाज बन जाएगा। अपनी बेटियों को शुरू से ही आत्म-विश्वासी, आत्म-निर्भर, मानसिक तौर पर मजबूत बनाना चाहिए ताकि वे हर पग जीवन में आगे बढ़ें। असमाजिक तत्वों का मुकाबला बहुत हिम्मत और निडरता से करें तथा समझदारी से जीयेें और कभी भी स्वयं को किसी से कम न समझें। बेटियां प्रकृति की बहुत सुंदर और महत्त्वपूर्ण सृजना है। वे किसी भी तरह बेटों से कम नहीं होतीं। आओ, इनका सम्मान करें और दूसरों को भी यह सिखाएं। अपनी बेटियों से एक वायदा लें-वह हमेशा याद रखें कि वह अपनी सोच से अधिक दिलेर हैं, जितना दिखाई देता है, उससे अधिक शक्तिशाली हैं, और जितना सोचती हैं, उससे अधिक होशियार हैं।