स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मतदान ज़रूरी

भारत के चुनाव आयोग ने सभी उम्मीदवारों के लिए और सभी राजनीतिक दलों के लिए यह आवश्यक कर दिया है कि चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के कोई आपराधिक रिकार्ड हैं तो उन्हें सार्वजनिक किया जाए। पंजाब में भी डा. करुणा राजू जो राज्य के चुनाव आयुक्त हैं, ने एक बार फिर सभी दलों और प्रत्याशियों से कहा है कि जहां तक हो सके शीघ्र से शीघ्र प्रत्याशियों के आपराधिक विवरण की जानकारी समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाएं। उन्होंने कहा है कि नियमानुसार भारतीय चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन करें और आयोग द्वारा निर्धारित समाचार पत्रों तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया में समय से पहले हर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी की सारी जानकारी जनता को दी जाए। आठ फरवरी से पहले इस संबंध में पहला इश्तेहार प्रकाशित हो जाना चाहिए थाए जो अधिकतर उम्मीदवारों ने नहीं किया। उनका यह कहना है कि चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार हर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों और उसकी पार्टी को तीन बार समाचार पत्रों और टेलीविजन में उम्मीदवार की आपराधिक पृष्ठभूमि, कितने केस बने हैं और दंड संहिता की किस किस धारा में ये केस दर्ज हैं उसका प्रकाशित होना बहुत ज़रूरी है। श्री राजू के अनुसार दूसरा इश्तिहार नामांकन वापस लेने की तिथि के पांचवें दिन और तीसरा इश्तिहार नवम दिन से लेकर प्रचार के आखिरी दिन अर्थात चुनाव से एक दिन पहले तक अवश्य ही अखबारों में छपना चाहिए और अखबार भी वे होने चाहिएं जिनका राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव आयोग ने तय किया है।चुनाव आयोग इस बात से चिंतित दिखाई दे रहा है कि देश में लगभग सभी राजनीतिक दल आपराधिक छवि वाले व्यक्तियों को चुनावी रण में उतार रहे हैं और उनमें से बहुत से जीत भी जाते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में आपराधिक छवि के लोगों को टिकट देने की होड़ लगी है। दूसरी ओर आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि देश भर में वर्तमान और पूर्व सांसदों के खिलाफ  आपराधिक मुकदमों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। सांसदों, विधायकों के खिलाफ  लंबित आपराधिक मुकद्दमों के शीघ्र निपटारे के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमित्र ने देश भर के हाईकोर्टों से एकत्रित आंकड़ों के अनुसार जो ताज़ा रिपोर्ट दाखिल की है उसमें कहा गया है कि आपराधिक मुकद्दमे सांसदों, विधायकों के खिलाफ  पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। अब प्रश्न यह है कि मतदाता क्या करेघ् सभी नागरिक किसी न किसी राजनेता या राजनीतिक दल के प्रभाव में होते ही हैं और उसी अनुसार मतदान करते हैं। यद्यपि चुनाव आयोग ने नोटा का एक बटन तो बना दिया अर्थात जिसे कोई भी राजनीतिक दल या प्रत्याशी पसंद नहीं वह नोटा का बटन दबा दे, पर नोटा की किस्मत क्या होगी, बटन दबाने वाला भी नहीं जानता। पिछली बार पंजाब में ही हज़ारों लोगों ने नोटा का उपयोग किया, पर परिणाम तो शून्य था। सच्चाई यह है कि अगर जीतने वाले प्रत्याशी से भी अधिक नोटा के पक्ष में बटन दबा दिए जाएं तो भी वही जीतेगा जिसके पक्ष में मतदान ज्यादा हुआ है। देश को, संसद को, चुनाव आयोग और बुद्धिजीवियों को इस पर मंथन कर कोई निर्णय लेना होगा कि जिनमतदाताओं को किसी भी कारण प्रत्याशी स्वीकार नहीं वे क्या करें। नोटा का कोई न कोई तो उपयोग तय करना ही होगा। अब प्रश्न मतदाताओं का है। सभी राजनीतिक दलों के लोग चुनावी घोषणाओं के साथ बड़े-बड़े उपहार और मुफ्तखोरी की घोषणा करते हैं। जो अति वंचित लोग हैं, जिनके लिए चुनाव से पूर्व ही चार दिन की चांदनी होती है अन्यथा ये चुनावी वीर चांद पूरे पांच साल दिखाई नहीं देते। वे तो ‘नौ नकद न तेरह उधार’ की नीति पर चलते हुए चार दिन दीवाली मना लेते हैं, पर राज्य का, देश का क्या बनेगा? अब भी पंजाब सहित जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं कहीं से यह आवाज नहीं आई कि पीने का शुद्ध पानी मिलेगा। मोटी कीमत खर्च कर बोतलबंद पानी नहीं लेना पड़ेगा। हवा शुद्ध हो जाएगी, प्रदूषण से रोगी नहीं होना पड़ेगा। रोटी सस्ती मिलेगी और रोज़गार में हर हाथ को काम और काम के पूरे दाम यह नीति अपनाई जाएगी। ठेके की नौकरी पर, आउटसोर्सिंग की चक्की में जवानी को नहीं पिसना पड़ेगा और निराश-हताश देश की जवानी विदेशों में रोटी-रोजी की तलाश में नहीं जाएगी ऐसी सरकारें पंजाब में या देश में ये राजनेता बनाएंगे। यह तो वे घोषणाएं हैं जो सरेआम हो रही हैं। चुनाव से पहले पंजाब के और देश के सभी मतदाताओं से यह विनम्र निवेदन है, अपील है कि कुर्सी के लिए, पार्टी की टिकट के लिए दल बदलने वालों को वोट मत दें, क्योंकि वे तो फसली बटेरे हैं, स्वार्थी हैं। किसी वस्तु या सुविधा के लालच में वोट देना भी अपने देश, राज्य और लोकतंत्र के साथ धोखा है। अगर वही लोग जीत गए जो धन बल या डंडे के बल से वोट खरीद लेते हैं तो फिर देश में लोकतंत्र नहीं, डंडा तंत्र होगा, भ्रष्टाचार तंत्र होगा तथा भूख-बेकारी और नशों का राज्य होगा। चाहिए तो यह कि जो राजनीतिक दल आपराधिक छवि वाले लोगों को टिकट देते हैं उनका सार्वजनिक रूप से बहिष्कार करना चाहिए। प्रत्याशियों का भी और उस पार्टी का भी। हालात तो यह है कि जिस व्यक्ति पर तीन दर्जन से ज़्यादा केस भारतीय दंड संहिता की अनेक धाराओं के अनुसार चल रहे हैं उसका परिवार भी टिकट लेकर गले में फूल मालाएं डलवाकर बड़ी शान से वोट मांग रहा है। भय और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता न तो उसके राजनीतिक संरक्षकों से सवाल कर रही है और न ही ऐसे उम्मीदवार से। जनता को सही सरकार के लिए मतदान करना चाहिए। अपने लिए न सही, अपने बच्चों के लिए, पंजाब और देश के भविष्य के लिए, अपराधियों को, बहू बेटियों का अपमान करने वाले और नशे के जाल में पंजाब को फंसाने वालों को वोट देना आत्महत्या के समान है। अपने बच्चों क भविष्य के साथ शत्रुता है।  इसलिए आवश्यक है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मतदान किया जाए। भाई-भतीजावाद या धन के प्रभाव में वोट का सौदा न किया जाए।