पंजाब की स्वायत्तता संबंधी उठ रहे हैं सवाल 

सुनो ऐ हाकम-ए-दौरां
मोअऱख वक्त है ऐसा,
वो जो कुछ देखता है
बस, वही तहरीर करता है।
वक्त के शासक सुन, इससे बड़ा ऐतिहासिक समय कोई नहीं। वक्त के सीने पर इतिहास की हर सच्चाई लिखी ही जाती है। आज पंजाब की स्वायत्तता पूरी तरह खतरे में दिखाई दे रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान चक्की के दो पाटों में पिसते नज़र आ रहे हैं। एक ओर आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल उन्हें मिट्टी का बुत्त बना कर स्वयं सुपर मुख्यमंत्री होने का प्रभाव दे रहे हैं, और दूसरी ओर पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित जिस प्रकार उनकी उपस्थिति में राज्य की अमन-कानून की स्थिति बारे बैठकें कर रहे हैं, वह भी इतिहास की नज़रों में पहले कभी नज़र नहीं आया। हां, राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हो तो शक्ति सीधे राज्यपाल के पास होती है परन्तु इस समय तो राष्ट्रपति शासन नहीं, पंजाब में एक चयनित सरकार है, जिसके पास लामिसाल बहुमत भी है। इस प्रकार प्रतीत होता है कि फैडरलइज़्म (संघवाद) की कीमत न तो केजरीवाल की नज़रों में कुछ है और न ही राज्यपाल की नज़रों में। 
अरविंद केजरीवाल पंजाब में सत्तारूढ़ पार्टी के सर्वोच्च नेता हैं। उन्हें पूरा-पूरा अधिकार है कि वह अपनी पार्टी के नेताओं, विधायकों, मंत्रियों तथा यहां तक कि मुख्यमंत्री को बुलाएं, उनसे बैठकें करें तथा उन्हें पार्टी का नीति कार्यक्रम दें। उन्हें निर्देश दें कि सरकार कैसे चलनी चाहिए या कैसे चलानी चाहिए, परन्तु यह बहुत गंभीर बात है कि मुख्यमंत्री को एक तरफ करके स्वयं ही पंजाब के अधिकारियों के साथ बैठक करें तथा यह प्रभाव देने की कोशिश करें कि वास्तविक फैसले लेने की ताकत उनके पास है तथा अधिकारी सीधे उन्हें ही जवाबदेह हैं। फिर ऐसी चर्चा भी है कि पंजाब के कुछ अधिकारी आनलाइन भी उन्हें सीधी रिपोर्ट करते हैं तथा कुछ विशेष पदों पर अधिकारी भी केजरीवाल के विश्वासपात्र ही लगाए जा रहे हैं तो स्वाभाविक है कि ऐसे अधिकारी मुख्यमंत्री की परवाह कैसे करेंगे?
सभी को पता है कि  पंजाब केजरीवाल के लिए राष्ट्रीय राजनीति के लिए एक सीढ़ी है तथा वह पंजाब में शासन का एक ऐसा सत्ता माडल तैयार करना चाहते हैं, जिसे वह मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गुजरात माडल की तरह ही 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रचार कर सकें, परन्तु इसके लिए उन्हें पंजाब के मुख्यमंत्री की संवैधानिक ताकतों को दृष्टिविगत नहीं करना चाहिए और न ही यह प्रभाव बनने देना चाहिए कि मुख्यमंत्री कुछ नहीं है। जो है, सब केजरीवाल ही हैं।  वास्तविकता यह है कि जिस तरह पंजाब में पार्टी के आधे सांसद तथा फिर आधे विधायक पार्टी छोड़ गए थे, यदि भगवंत मान न होते तो पंजाब में आम आदमी पार्टी का भोग ही पड़ गया होता। 2019 में वह अकेले जीते और अब भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार उन्हें घोषित करने के बाद ही आम आदमी पार्टी इतना हैरानीजनक बहुमत लेने में सफल हो सकी है। 
आज जब मुख्यमंत्री भगवंत मान जालन्धर में बाबा साहिब अम्बेडकर को याद करते हुए एक कहानी सुना रहे थे कि एक बार सोने ने लोहे से पूछा कि हथौड़े तो मेरे उपर भी बड़े पड़ते हैं पर मेरी आवाज़ सुनार की दुकान से बाहर नहीं जाती परन्तु जब वह हथौड़ा तुझे लगता है तो तू इतनी ऊंची-ऊंची चीखता क्यों है? शोर क्यों मचाता है? तब लोहे ने कहा, ‘सोना जी, अंतर यह है कि आपको बेगाना अर्थात् लोहे का हथौड़ा मारता है। बेगानों ने तो मारना ही होता है, परन्तु जब अपने पीटते हैं तो बर्दाश्त करना मुश्किल होता है। मुझे तो मेरा अपना लोहे का हथौड़ा ही पीट रहा होता है।’ उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री मान अपनों द्वारा संविधान से छेड़छाड़ की बात कर रहे थे और मुझे पता नहीं क्यों ऐसे महसूस हो रहा था कि जैसे मान साहिब एक ओर केजरीवाल द्वारा सुपर मुख्यमंत्री होने के प्रभाव देने संबंधी तथा दूसरी ओर राज्यपाल द्वारा लोगों की चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री की उपस्थिति में सीधी बैठकें करने संबंधी नाराज़गी व्यक्त कर रहे थे। 
़खैर, भगवंत मान को मैं जितना जानता हूं एवं जितना मैं उन्हें समझता हूं, उसके अनुसार मान एक बहुत खुद्दार किस्म के व्यक्ति हैं। नि:संदेह राजनीतिक विवशताओं के चलते वह वक्त संभालते नज़र आ रहे हैं परन्तु हम समझते हैं कि यदि यह दबाव तथा उन्हें छोटा दिखाने का खेल अधिक देर चलता रहा तो शायद वह लम्बे समय तक झुकने की ‘अदाकारी’ करने में असमर्थ हो जाएंगे। इस संबंधी विपक्षी पार्टियों द्वारा की जा रही कड़ी आलोचना भी उन्हें सोचने के लिए मजबूर कर देगी। इसलिए हम ‘आप’ प्रमुख अरविंद केजरीवाल के लिए शायर ‘कौकब ज़की’ का यह शेअर पेश किये बिना नहीं रह सकते—
अपने जलवों को यूं न आम करो।
कुछ तो पर्दे का एहतराम करो।
विधायकों एवं मंत्रियों पर नज़र 
एक बहुत अच्छी बात है कि आम आदमी पार्टी द्वारा अपने सभी विधायकों तथा मंत्रियों के कार्यों पर नज़र रखे जाने की चर्चा है। चर्चा है कि उनकी फाइलें बन रही हैं कि कौन-सा मंत्री या विधायक क्या कर रहा है, क्या वह तबादलों आदि में कोई भ्रष्टाचार तो नहीं कर रहा। चर्चा तो यह भी है कि उनके द्वारा खरीदी जाने वाली सम्पत्तियों पर भी नज़र है तथा उनके सम्पर्क में कौन-कौन से व्यक्ति हैं, यह भी देखा जा रहा है। यह साफ-सुथरा प्रशासन देने के लिए अच्छी बात है। इस की प्रशंसा करनी बनती है, परन्तु अंतर सिर्फ इतना है कि इस संबंधी चर्चा यह भी है कि ऐसा मुख्यमंत्री को हाशिये पर रख कर किया जा रहा है तथा ये फाइलें सीधी ‘आप’ प्रमुख के पास पहुंच रही हैं, जिसका अर्थ यह भी समझा जा रहा है कि ऐसा विधायकों को सीधा केजरीवाल के नियंत्रण में रखने के लिए तथा मुख्यमंत्री को ताकतवर न बनने देने के लिए भी किया जा रहा है परन्तु यह सब कुछ अभी चर्चा में ही है। वास्तविकता सामने आते-आते कुछ समय तो लगेगा ही। 
पंजाब जो बड़ा भाई था, अब गरीब भाई है?
बात हक है तो फिर कबूल करो,
यह न देखो कि कौन कहता है। 
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने चाहे यह कह कर पंजाब का उपहास किया है कि पंजाब पहले हमारा बड़ा भाई था परन्तु अब गरीब चचेरा भाई है। हैरानी की बात है कि गरीब होने पर सगा भाई चचेरा भी बन जाता है? खैर यह हरियाणा के मुख्यमंत्री की मानसिकता है, परन्तु यह बात सच है तथा पंजाबियों को, विशेषकर हमारे मुख्यमंत्री भगवंत मान को इस हालत में से निकलने के लिए अवश्य कुछ सोचना चाहिए। गारंटियों तथा ग्रांटों में मुफ्त सामान लुटाने की नीतियों की अपेक्षा पंजाब में रोज़गार देकर उत्पादन बढ़ा कर लोगों की क्रय शक्ति में वृद्धि करके पंजाब को पुन: खुशहाल बनाने के प्रयास करने चाहिएं, ताकि कोई ऐसे उपहास करने की सोच भी न सके। कुछ तथ्य तो अवश्य देखने चाहिएं कि हम सचमुच ही कितने पिछड़ चुके हैं। वर्ष 2020-21 में पंजाब का अपना टैक्स राजस्व 35824 करोड़ तथा हरियाणा का 52096 करोड़ रुपये है। पंजाब की जी.एस.टी. की वसूली जो वर्ष 2020-21 में 1573 करोड़ रुपये थी, वर्ष 2022-23 में 1480 करोड़ रुपये है, परन्तु हरियाणा की जी.एस.टी. की वसूली 2020-21 में 5873 करोड़ थी, 2022-23 में 5928 करोड़ रुपये है। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति सेल टैक्स की वसूली पंजाब में 2018-19 में 2206 रुपये 34 पैसे थी परन्तु 2020-21 में यह 1839 रुपये 93 पैसे रह गई, जबकि हरियाणा में प्रति व्यक्ति सेल टैक्स वसूली 2018-19 में 3190 रुपये 78 पैसे तथा 2020-21 में 3703 रुपये 17 पैसे हो गई। यही हाल जी.एस.टी. की प्रति व्यक्ति की वसूली का है। हरियाणा के कुल स्रोत 67523.81 करोड़ रुपये के 2020-21 में थे, जबकि 2020-21 में ही पंजाब के राजस्व के कुल स्रोत 43870.44 करोड़ रुपये ही थे। फिर हम अपनी कमाई का सिर्फ 51.28 फीसदी ही विकास के लिए खर्च कर रहे हैं, जबकि अधिक कमाई होने के कारण हरियाणा 67.93 फीसदी विकास पर खर्च करता है। कज़र् के मामले में तो हम हरियाणा से आगे हैं। 
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