सफेद सोना : लाभदायक एवं फसली विभिन्नता के लिए अहम

पंजाब में भू-जल का स्तर प्रत्येक वर्ष नीचे जा रहा है। इसलिए 30 लाख हैक्टेयर से अधिक जमीन पर धान की काश्त को दोषी ठहराया गया है। धान की काश्त के अधीन कम से कम 10 लाख हैक्टेयर रकबा कम करना ज़रूरी है। नरमा-कपास की काश्त बढ़ा कर कुछ रकबा धान की काश्त अधीन कम किया जा सकता है। नरमे की फसल की बिजाई अधिकतर कपास पट्टी के बठिंडा, फाज़िल्का, मानसा, मोड़, रामपुरा फूल, कोटकपूरा आदि क्षेत्रों में की जाती है। पंजाब सरकार ने नरमे की काश्त के अधीन इस वर्ष 4 लाख हैक्टेयर रकबा लाने का लक्ष्य रखा है। गत वर्ष 3.35 लाख हैक्टेयर रकबे पर नरमे की काश्त की गई थी। जबकि सं. 2020 में इस फसल के अधीन 2.50 लाख हैक्टेयर रकबा था। विशेषज्ञों के अनुसार 5 लाख हैक्टेयर रकबा राज्य में नरमा-कपास का काश्त के अधीन लाया जा सकता है। 
इस वर्ष किसानों में नरमे की काश्त के लिए इस पक्ष से उत्साह है कि इसका मंडी में मूल्य 13000 रुपये प्रति क्ंिवटल तक हो गया है। सरकार द्वारा एमएसपी 5925 रुपये क्ंिवटल तय की गई थी। इस प्रकार मंडी में अखिर में उत्पादकों को दोगुणा से भी अधिक मूल्य मिला। चाहे औसतन 8200-8300 रुपये प्रति क्ंिवटल तक की बट्टत हुई। इस प्रकार गत वर्ष के मुकाबले 25-30 प्रतिशत मूल्य उत्पादकों को अधिक मिला परन्तु उत्पादन बीमारियों तथा गुलाबी सुंडी के हमले के कारण अवश्य कम हुआ है। इस लिए पंजाब सरकार ने किसानों को मुआवज़ा भी दिया। नरमा जो सफेद सोने के नाम से भी जाना जाता है, एक अहम व्यापारिक फसल है जिसकी आर्थिक, औद्योगिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में भी अहम भूमिका है। किसी समय नरमा पट्टी के किसान राज्य के सबसे खुशहाल किसान माने जाते थे। नरमा किसानों के अतिरिक्त मज़दूरों के लिए रोज़गार का साधन है। नरमे को धान के मुकाबले पानी की बहुत कम ज़रूरत होती है। जितना पानी धान को कद्दू करने के लिए ज़रूरी होता है, नरमे को उतने पानी की फसल पकने तक आवश्यकता है। नरमे से पूरा उत्पादन प्राप्त करने के लिए लगभग 10 छिड़काव करने पड़ते हैं। फिर इसका 8 से 14 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर के बीच उत्पादन किया जा सकता है। 
अब नरमे की बिजाई का अनुसूल समय है। बिजाई 15 मई से पहले-पहले कर देनी चाहिए। फसल की बिजाई के लिए रौणी अधिक पानी से की जानी चाहिए। कपास-पट्टी के कई क्षेत्रों में भू-जल सही नहीं है। भूमि की बहाई जितनी हो सके गहरी करनी चाहिए। पूरा उत्पादन लेने के लिए पौधों की संख्या पूरी होनी चाहिए। जिसके लिए बीज के 2 से 3 पैकेट इस्तेमाल करने चाहिए। मौसम की करोपी के कारण नष्ट पौधों के स्थान पर नये पौधे लगाने के लिए कुछ बीजों की बिजाई प्लास्टिक के लिफाफों में कर देनी चाहिए ताकि नष्ट हुए पौधे के स्थान पर और पौधे लगा कर संख्या पूरी कर दी जाए। बिजाई का ढंग 4 सियाड़ों वाला होना चाहिए। बिजाई सुबह-शाम ही करनी चाहिए। मिट्टी, पानी की जांच के आधार पर ही रासायनिक खादों की समय पर उचित मात्रा डाली जाए। डीएपी, पोटाश, सल्फर, मैगनीशियम, ज़िंक सल्फेट आदि का इस्तेमाल रौणी की बहाई के समय ही करना चाहिए। अधिक उत्पादन लेने के लिए पीएयू द्वारा मैगनीशियम सल्फेट 25 किलो प्रति एकड़ का उपयोग करने की सिफारिश की गई है। बी.टी. किस्मों के लिए यूरिया की मात्रा लगभग अढ़ाई थैले प्रति एकड़ डालनी चाहिए। इसे हलकी तथा भारी ज़मीनों के अनुसार कम या अधिक किया जा सकता है। फूलों की शुरूआत से टिंडे बनने तक 4 छिड़काव पोटाशियम नाइट्रेट के 2 किलोग्राम प्रति एकड़ करने चाहिए। अधिक कैल्शियम वाली ज़मीनों में बोरोन तत्व की कमी भी पूरी करनी आवश्यक है। 
पूरे उत्पादन की प्राप्ति के लिए नदीनों की रोकथान बहुत ही आवश्यक है। कई कीड़ों की वृद्धि सिर्फ नदीनों के कारण ही होती है। यह पौष्टिक तत्वों के अतिरिक्त सूर्य की रौशनी का प्रभाव भी कम करते हैं। नरमे की फसल को मौसम के अनुसार 4 से 6 सिंचाइयों की आवश्यकता है। आखिरी पानी सितम्बर के अंत में लगा देना चाहिए। फूल निकलने से फूल खिलने तक फसल को औड़ से बचाने की ज़रूरत है। फसल को कीड़े तथा बीमारियां ब़डा नुक्सान पहुंचाती हैं। कीड़ों की 162 किस्में नरमे-कपास की फसल पर हमला करती हैं जिनमें 9 अधिक नुकसान करने के कारण प्रसिद्ध हैं। गत वर्ष फसल पर गुलाबी सुंडी का भयानक हमला हुआ था जिस कारण उत्पादन कम हुआ। फसल पर इस हमले को रोकने के लिए खेत तथा घरों में पड़ी छटियों को हर हाल में खत्म कर देना चाहिए। सही दवाइयों का छिड़काव, उचित समय पर सही छिड़काव विधि इस्तेमाल करने की आवश्यकता है। 
पंजाब में बी.टी. किस्मों की काश्त अधिक की जाती है। बी.टी. नरमे के आस-पास 20 प्रतिशत रकबा बी.टी. रहित नरमे अधीन लगाना चाहिए। बी.टी. रहित किस्म वही होनी चाहिए जो बी.टी. नरमे की हो। पीएयू से सम्मानित प्रगतिशील किसान बलबीर सिंह जड़िया कहते हैं कि बीमारियों, कीड़ों आदि के हमलों की रोकथाम के लिए स्प्रे तकनीक जो विशेषज्ञों द्वारा सिफारिश की गई है, वही इस्तेमाल करनी चाहिए। यदि स्प्रे विधि में कोई कमी रह जाए तो नदीन नाशक तथा फफूंद नाशन प्रवान नहीं डालेगा। छिड़काव सुबह या शाम को ही करने चाहिएं। कीटनाशक दवाइयों की सही मात्रा, सही समय पर कृषि विशेषज्ञों की सिफारिश के अनुसार ही करनी चाहिए। अपनी मज़र्ी से दवाइयों की अंडरडोज़ एवं ओवरडोज़ नहीं बरतनी चाहिए। भारी ज़मीनों में गैर-ज़रूरी बारिश के कारण नरमा ज़रूरत से अधिक बढ़ जाता है जिसे रोकने के लिए स्प्रे करके कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता है। जड़िया कहते हैं कि भिन्डी, मूंगी, अरहर, बैंगन, गुआरा तथा अचिंड को नरमे-कपास के खेतों में या उनके आस-पास के खेतों में नहीं बीजना चाहिए ताकि फसल कीड़ों-मकौड़ों तथा बीमारियों से सुरक्षित रहे। 
चिट्टी मक्खी भी नरमे की फसल को काफी नुकसान पहुंचाती है। कुछ वर्ष पहले इसके हमले ने नरमे का उत्पादन बहुत कम कर दिया था। विशेषज्ञ कहते हैं कि चिट्टी मक्खी की वृद्धि को रोकने के लिए संथैटिक परिथ्राइड कीटनाशकों का इस्तेमाल बिल्कुल न किया जाए तथा इसके हमले की रोकथाम के लिए उलाला 50 डब्ल्यू जी (फ्लोनिकामिड) जैसे कीटनाशक का छिड़काव उस समय किया जाए जब पत्ते के ऊपरी हिस्से में सुबह को इसकी संख्या प्रति पत्ता 6 हो जाए या जब मघ्य की छतरी के 50 प्रतिशत पौधों के पत्तों पर शहद जैसी बूंदें हों।