सरकारी आर्थिक सहायता के बाद भी किसानों का रुझान धान की ओर 

गेंहूं की सम्भाल तथा मंडीकरण के सभी कार्यों से निपट कर किसान अब धान की रोपाई की योजना बना रहे हैं। इस वर्ष मार्च-अप्रैल के दौरान तापमान बढ़ने के कारण गेहूं जल्द पक गई तथा कटाई भी कुछ दिनों में ही गत वर्षों के मुकाबले जल्द हो गई। मंडियों में गेहूं की आवक लगभग बंद हो चुकी है। सभी मंडियों में मौसम के दौरान गेहूं की कुल आवक लगभग 101102 लाख टन रही। पंजाब सरकार  ने धान की रोपाई इस वर्ष चरणबद्ध ढंग से करने की स्वीकृति दी है ताकि बिजली की खपत तथा भूमिगत पानी का इस्तेमाल कम किया जाए। संगरूर, बरनाला, मालेरकोटला, लुधियाना, पटियाला तथा फतेहगढ़ साहिब जिलों में धान की रोपाई 18 जून से शुरू की जा सकेगी। 
बठिंडा, मानसा, मोगा, फरीदकोट, फिरोज़पुर था फाज़िल्का जिलों में रोपाई शुरू करने का समय 22 जून तय किया गया है। मोहाली, एसबीएस नगर, कपूरथला, मुक्तसर जिलों में रोपाई 24 जून से किये जाने की स्वीकृति दी गई है तथा गुरदासपुर, पठानकोट, होशियारपुर, अमृतसर तथा तरनतारन जिलों में रोपाई 26 जून से शुरू हो सकेगी। 
पंजाब प्रीज़रवेशन आफ सब सॉइल वाटर एक्ट-2009 के तहत गत वर्षों में धान की रोपाई लगभग 10 जून से शुरू की जाती रही है। किसानों के संगठन जिसमें 16 किसान यूनियनें शामिल हैं, ने पंजाब राज्य बिजली निगम के चेयरमैन तथा मैनेजिंग डायरैक्टर से मिल कर पंजाब सरकार के इस चरणबद्ध तरीके से धान लगाने की सूची जिसके अधीन रोपाई 18 जून से 26 जून तक आरंभ करनी तय की गई है, को अस्वीकार करते हुए धान 10 जून से ही लगाने की घोषणा की है।  
पंजाब में लगभग 30 लाख हैक्टेयर रकबे पर धान की काश्त की जाती है। जिसमें से लगभग 40 प्रतिशत रकबे पर लम्बे समय में पकने वाली किस्मों की काश्त की जाती है। गत वर्ष 32 प्रतिशत रकबे में सिर्फ पूसा-44 किस्म की बिजाई की गई थी। इसका झाड़ दूसरी सभी किस्मों से अधिक रहा है। यह पकने को 150-155 दिन लेती है। किसानों द्वारा रोपाई का शैड्यूल 18 से 26 जून से शुरू किये जाने का इस लिए भी विरोध किया जा रहा है कि रोपाई में देरी होने से धान की कटाई तथा गेहूं की बिजाई हेतु कम समय रह जाएगा जिस के बाद किसान आग लगाने के लिए मजबूर होंगे और वातावरण प्रदूषित होने की समस्या आएगी। जहां तक पूसा-44 किस्म या अन्य लम्बे समय में पकने वाली किस्मों के पानी की आवश्यकता का संबंध है, यह किस्में पानी अधिक लेती हैं क्योंकि कम समय में पकने वाली पीआर-126 किस्म के मुकाबले यह पकने में अधिक समय लेती हैं। संयुक्त किसान मोर्चा सदस्य तथा कन्सोटियम आफ फार्मर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सतनाम सिंह बहिरू ने पंजाब सरकार से मांग की है कि वह 18 से 25 जून के धान लगाने के फैसले के शैड्यूल को तुरंत रद्द करे क्योंकि प्रवासी खेल मज़दूरों के प्रतिनिधियों ने अपने प्रदेशों के खेत मज़दूरों को देर से आने के लिए पत्र भेजने शुरू कर दिये हैं जिससे किसानों को लेबर की कमी की समस्या भी दरपेश आने की सम्भावना है। 
पानी तथा लेबर के खर्चे की बचत के लिए पंजाब सरकार द्वारा इस बार सीधी बिजाई पर बल दिया जा रहा है। कृषि तथा किसान भलाई विभाग के निदेशक डा. गुरविन्दर सिंह के अनुसार इस वर्ष 10 लाख हैक्टेयर रकबे पर सीधी बिजाई की जाएगी। गत वर्ष इस तकनीक का इस्तेमाल कर 6 लाख हैक्टेयर रकबे पर बिजाई की गई थी। पंजाब सरकार ने सीधी बिजाई तकनीक से धान लगाने वाले किसानों को कुछ शर्तों से 1500 रुपये प्रति एकड़ की आर्थिक सहायता दिये जाने की घोषणा की है। किसानों का कहना है कि यह आर्थिक सहायता बहुत कम है क्योंकि सीधी बिजाई तकनीक से धान लगाने का बाद नदीनों की गम्भीर समस्या आती है जिस पर काबू पाने के लिए किसानों को काफी खर्च करना पड़ता है। इस तकनीक से धान की बिजाई 20 मई से किये जाने की स्वीकृति दे दी गई है। 
इस वर्ष किसानों का रुझान बासमती किस्म लगाने की ओर अधिक है क्योंकि बासमती का दाम मंडी में किसान पक्षीय तथा लाभदायक रहा तथा बासमती की पानी की ज़रूरर कम है। बासमती की कुछ ऐसी किस्में विकसित की जा चुकी हैं जो मॉनसून में बारिश के पानी से ही पक जाती हैं। 
इस वर्ष कम समय में पकने वाली धान की किस्म पीआर-126 के बीज की कमी हो गई है। पकने में थोड़ा समय लेने वाली बासमती की पूसा बासमती-1509 किस्म का बीज भी किसानों को ज़रुरत के अनुसार उपलब्ध नहीं हो रहा। अधिकतर किसानों की मांग आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा नई विकसित पूसा बासमती-1847 किस्म के बीज की है जो पूसा बासमती-1509 का संशोधित विकल्प है। इसके अतिरिक्त किसान इसी संस्थान द्वारा विकसित इसी वर्ष जारी की गईं पूसा बासमती-1885 तथा पूसा बासमती-1886 के बीजों की तलाश में इधर-उधर घूम रहे हैं। पूसा बासमती-1885 पूसा बासमती-1121 का संशोधित विकल्प  तथा पूसा बासमती-1886 पूसा बासमती-1401 का संशोधित विकल्प है। बीमारी रहित होने के कारण इन किस्मों को कम स्प्रे की आवश्यता है तथा इन का उत्पादन भी अधिक है।