सरकार की ओर से गेहूं के निर्यात पर रोक क्यों ?

मार्च में पड़ी गर्मी तथा जनवरी में बेमौसमी बारिश से गेहूं की उत्पादकता व उत्पादन कम होने के लिए ज़िम्मेदार हैं। मार्च में चली गर्म हवाओं ने विशेष तौर पर उत्पादकता प्रभावित की है। क्राप कटिंग एक्सपैरीमैंट्स के आधार पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने पंजाब में गेहूं उत्पादन 151 लाख टन होने का अनुमान लगाया है। उत्पादकता गत वर्ष की 4868 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के बजाय 4207 किलोग्राम दर्ज की गई है। उत्पादन का लक्ष्य 175 लाख टन का रखा गया था। इस प्रकार 24 लाख टन गेहूं का उत्पादन कम हुआ है और इसमें 13.5 प्रतिशत तक की कमी आई है। सरकारी खरीद भी तय किये गये 135 लाख टन के लक्ष्य से गिर कर 96-98 लाख टन रह जाने का अनुमान है। उत्पादकता पंजाब, हरियाणा के अतिरिक्त दूसरे गेहूं पैदा करने वाले राज्यों से भी कम हुई है। मध्य प्रदेश जहां गेहूं की कटाई मार्च के मध्य में जल्द हो जाती है, वहां उत्पादन दूसरे राज्यों से कुछ कम दर से कम बताया जा रहा है। 
केन्द्र सरकार का भारत में गेहूं उत्पादन का अनुमान शुरू में 111 मिलियन टन होने का लगाया गया था जो अब कम होकर आईसीएआर-भारतीय कृषि खोज संस्थान के डायरैक्टर डा. अशोक कुमार सिंह के अनुसार 105 मिलियन टन पर आ गया। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि देश का गेहूं उत्पादन 98-99 मिलियन टन ही रहेगा। केन्द द्वारा गेहूं भंडार के लिए सिर्फ 20 मिलियन टन तक खरीद होने का अनुमान लगाया गया है। गत वर्ष इस भंडार में 43 मिलियन टन गेहूं खरीदी गई थी। उत्पादन कम होने के अतिरिक्त निजी व्यापारियों द्वारा गेहूं का व्यापक स्तर पर खरीदे जाना तथा कुछ किसानों द्वारा अधिक कीमत पर बेचने की उम्मीद भंडारण में कमी के कारण हैं। गेहूं के कम उत्पादन के दृष्टिगत केन्द्र ने कुछ थोड़ी-बहुत राहत देकर इसके निर्यात पर भी रोक लगा दी है। यह रोक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अप्रैल में अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन को गेहूं निर्यात करके अन्य दूसरे देशों की मदद किये जाने का जो आश्वासन  दिलाया था, उसके विपरीत है। किसानों को इस वर्ष न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक दाम मिल रहा था और गेहूं को निजी व्यापारी निर्यात करने के पक्ष से खरीद रहे थे। चाहे सिकुड़े तथा टूटे दानों की मात्रा तय 6 प्रतिशत से अधिक थी, निजी व्यापारियों ने कई राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से 200 रुपये प्रति क्ंिवटल तक अधिक देकर किसानों से गेहूं खरीदी। केन्द्र ने अब अपनी भेजी गई टीमों की जांच रिपोर्ट के आधार पर देरी से ऐसे दानों के अस्तित्व पर 18 प्रतिशत तक छूट देने की स्वीकृति दे दी है। केन्द्र के इस फैसले से पंजाब सरकार, खरीद एजेंसियों तथा संबंधित स्टाफ की घबराहट भी दूर हो गई है। चाहे यह छूट इस बात को ध्यान में रख कर दी गई है कि इस छूट के कारण होने वाले किसी भी नुक्सान तथा समस्या की पूरी ज़िम्मेदारी राज्य सरकार पर होगी। किसानों को इससे मुक्त कर दिया गया है। 
केन्द्र द्वारा देशवासियों को गेहूं की उपलब्धता उचित कीमत पर सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं। केन्द्र द्वारा गेहूं के भंडारण में वृद्धि करने के लिए मंडियां जो बंद होने के कगार पर थीं, में 31 मई तक गेहूं खरीदने के लिए स्वीकृति दे दी गई है। कई राज्यों में तो जून में भी गेहूं की सरकारी और एफ.सी.आई. की खरीद जारी रहेगी। गत चार वर्ष गेहूं का उत्पादन लगातार बढ़ता रहा है। डा. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि किसानों को अधिक सहायता देने का आवश्यकता है ताकि भविष्य में अधिक से अधिक गेहूं का उत्पादन करके इस कमी को पूरा किया जा सके। वह कहते हैं कि कृषि सकल घरेलू उत्पादन में खोज एवं विकास (आर एडं डी) का हिस्सा बढ़ाने की आवश्यकता है। इस समय कृषि सकल घरेलू उत्पादन का सिर्फ 0.4 प्रतिशत खोज एवं विकास पर खर्च किया जाता है जबकि चीन जैसे देश 1.4 प्रतिशत खर्च कर रहे हैं। ऐसा करने से उत्पादन में वृद्धि होगी। 
किसान नेताओं जिनमें कंसोरटियम आफ फार्मज़र् एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एवं संयुक्त किसान मोर्चे के नेता सतनाम सिंह बहिरू शामिल हैं, द्वारा केन्द्र के गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने के फैसले को किसान विरोधी कहा गया है। जब किसानों को निजी व्यापारियों से मंडी में न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक दाम मिल रहा था तो केन्द्र को यह फैसला लेना नहीं चाहिए था। किसानों का आय दोगुणी करने में अधिक दाम मिलने का योगदान होता है। केन्द्र ने यह फैसला इसलिए किया है कि उपभोक्ताओं को गेहूं एवं आटा अधिक मूल्य पर न मिलें।
 नेताओं ने कहा कि केन्द्र की नीति सदा किसान विरोधी रही है तथा शहरी उपभोक्ता-पक्षीय रही है। इसलिए किसान गरीब हैं और उनके सिर पर ऋण की गठरी है। केन्द्र द्वारा गेहूं के निर्यात पर लगाईर् कई रोक ने परिणामस्वरूप किसान जिन्होंने भविष्य में अधिक कीमत पर बेचने के लिए गेहूं अपने पास भंडार कर रखी थी, वह अब केन्द्र के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने हेतु मजबूर होंगे (चाहे पंजाब में ऐसे किसान बहुत कम संख्या में हैं)। निजी व्यापारी जिन्होंने गेहूं निर्यात करने के लिए खरीदी थी, उनके लिए भी अपने भंडार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने के अतिरिक्त कोई और मार्ग नहीं रह जाता। इस प्रकार किसानों को विशेषकर निर्यात के लिए गेहूं खरीदने वाले व्यापारियों को गेहूं का भंडार करने के कारण नुक्सान उठाना पड़ेगा। चाहे केन्द्र द्वारा कहा जा रहा है कि गेहूं के निर्यात पर रोक लगाना इसलिए आवश्यक था कि भारतवासियों को खाने के लिए ज़रूरत मुताबिक गेहूं उपलब्ध होती रहे।  यह भी चर्चा है कि केन्द्र द्वारा गेहूं पर बोनस दिये जाने पर भी विचार किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक गेहूं किसानों या व्यापारियों से निकल कर केन्द्र के भंडार में आ सके। इस समय केन्द्रीय भंडार में 180 लाख टन गेहूं खरीदी जा चुकी है जिसके 190-200 लाख टन तक  पहुंचने की सम्भावना है।