कृषि उत्पादन बढ़ाने हेतु सही योजनाबंदी की ज़रूरत

कृषि को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जैसे भूमिगत जल के स्तर का कम होना, मशीनरी की बहुतायात तथा इस पर अधिक लागत होना, खेत मज़दूरों की मज़दूरी में वृद्धि, कृषि सामग्री का महंगा होना तथा मौसम में परिवर्तन। नये फसली चक्र अपनाने के लिए योजनाबंदी की बहुत आवश्यकता है। कृषि अब जीवन यापन करने का साधन ही नहीं रही। इसकी रूप-रेखा बदल रही है और व्यापारिक रूप धारण कर रही है। किसानों का पूरा ज़ोर इस बात पर लगा हुआ है कि कृषि से अधिक से अधिक आय कैसे प्राप्त की जाए। अधिक आय प्राप्त करने के लिए सही योजनाबंदी की आवश्यकता है। कृषि सामग्री, पानी, बढ़िया बीज, प्रभावशाली कीटनाशक एवं योग्य मशीनरी का इस्तेमाल तथा फसलों का उचित मंडीकरण ही कृषि की सफलता की कुंजी है। कृषि का उचित प्रबंध करने के लिए कृषि प्रबंध का सही ज्ञान होना आवश्यक है, जिसके लिए कृषि विशेषज्ञों, कृषि अनुसंधान संस्थाओं तथा कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों से सम्पर्क स्थापित करने की आवश्यकता है। योजना बनाने के बाद इसमें समय-समय पर संशोधन करना भी ज़रूरी है। अंत में यह चिन्तन करना भी ज़रूरी है कि क्या साधनों का सही उपयोग भी कर पाये हैं? कृषि में पूरे विवरण के साथ हिसाब-किताब रखने की भी बड़ी आवश्यकता है। इससे अधिक आय देने वाली नीति को मुख्य रख कर तथा कम आय वाले कार्यों को तिलांजलि देकर किसान कृषि को लाभदायक बना सकते हैं। हिसाब-किताब से यह पता चलता है कि कृषि में अधिक लागत करने से आय में वृद्धि हुई भी है कि नहीं। फसली विभिन्नता लाकर आय बढ़ाने में मंडीकरण की अहम भूमिका है। इसलिए बड़ी सूझबूझ बरतने का आवश्यकता है। 
पंजाब में कुल कृषि योग्य 41.3 लाख हैक्टेयर रकबा है जिसमें 35 लाख हैक्टेयर से अधिक रकबे पर रबी के मौसम में गेहूं बोई जाती है तथा लगभग 31 लाख हैक्येयर से अधिक रकबे पर खरीफ में धान (बासमती) रोपा जाता है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा लगाए गये अनुमानों के अनुसार 21 क्ंिवटल प्रति एकड़ गेहूं तथा 30 क्ंिवटल प्रति एकड़ धान का औसत उत्पादन होता है। इन दोनों फसलों के अस्थायी खर्च निकाल कर पीएयू के अनुसार लगभग 67 हज़ार रुपये प्रति एकड़ की बचत होती है। प्राकृतिक आपदा, कीड़े-मकौड़े तथा बीमारियों के हमले या फसलों की संभाल में हुई लापरवाही से यह बचत कम भी हो जाती है।  मंडीकरण संबंधी आय बढ़ाने के लिए यह फैसला करने की आवश्यकता है कि क्या फसल भंडार करने में लाभ रहेगा या तुरंत मंडीकरण में।
पंजाब में खेत बहुत छोटे होते जा रहे हैं। लगभग 65 प्रतिशत किसानों के पास 10 एकड़ से भी कम भूमि रह गई है। फिर 25 एकड़ से अधिक कृषि करने वाले तो 6-7 प्रतिशत ज़मींदार ही हैं। इस प्रकार कम हो रही भूमि, बढ़ रहे कृषि खर्चे तथा नष्ट हो रहे प्राकृतिक संसाधनों के कारण पड़ रहे घाटे को पूरा करने के लिए किसान अच्छी कृषि तथा मंडीकरण करके ही अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। आय बढ़ाने के लिए कीमियाई खादों, कीटनाशकों तथा संशोधित बीजों का सही इस्तेमाल सिफारिश की गई मात्रा में करना बहुत ज़रूरी है। देखा गया है कि अधिकतर किसान गेहूं में यूरिया के 4-4 थैले प्रति एकड़ डाल रहे हैं जबकि पीएयू द्वारा अढ़ाई थैले डालने की सिफारिश की गई है। इसी प्रकार ऐसे कुछ किसान हैं, जिन्होंने गेहूं में पूरा फास्फोरस डाला है, वह धान में 2-2 थैले प्रति एकड़  डीएपी का उपयोग कर जा रहे हैं, जबकि पीएयू की सिफारिश के अनुसार यदि गेहूं में पूरा फास्फोरस डाला हो तो धान में यह खाद डालने का आवश्यकता नहीं। 
पंजाब में इस समय लगभग 4.90 लाख ट्रैक्टर हैं। ट्रैक्टरों का पूरा इस्तेमाल नहीं हो रहा। इस अतिरिक्त मशीनरी का बोझ किसानों की आय पर पड़ रहा है। खेतों का छोटा हो जाना भी महंगी मशीनरी तथा औज़ार खरीदने के लिए लाभदायक नहीं। महंगे भाव खरीदी हुईं मशीनें खेत में पूरे घंटे चलती भी नहीं। इसलिए किसानों के लिए वे घाटे का सौदा सिद्ध होती हैं। 
किसानों के सिर पर कज़र्े का बोझ बहुत बढ़ा हुआ है। किसानों को अपनी घर तथा कृषि की ज़रूरतों को ध्यान में  रख कर ही कज़र् लेने का फैसला करना चाहिए। कितना कज़र् लेना है, कौन-सी एजेंसी से कज़र् लिया जाए, कहां ब्याज तथा परेशानी के बिना कज़र् मिल सकता है आदि संबंधी किसानों को पूर्ण जानकारी होनी चाहिए। किसानों के अपने ज्ञान तथा सोचने की शक्ति में वृद्धि करने के लिए किसान मेलों तथा किसान प्रशिक्षण कैम्पों में जाकर वैज्ञानिकों के साथ तालमेल बना कर कृषि संबंधी संस्थानों (बैंकों, मशीनरी की कम्पनियों तथा कृषि सामग्री निर्माताओं) का पूरा मुताअला कर लेना चाहिए।