16वें राष्ट्रपति का चुनाव : क्या ‘खेला कर पायेंगी’ ममता बैनर्जी ?

देश के 16वें राष्ट्रपति के चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। आगामी 18 जुलाई को मतदान होगा और 21 जुलाई को इसके नतीजों की घोषणा होगी। राष्ट्रपति चुनाव की सारी प्रक्रिया कैमरे में कैद होगी यानी चुनावों की वीडियोग्राफी की जायेगी। जैसा कि हम सब जानते हैं, देश के 15वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई, 2020 को समाप्त हो रहा है। उसके पहले 16वें राष्ट्रपति का चुना जाना ज़रूरी है। इसीलिए चुनाव आयोग ने 9 जून, 2022 को इस चुनाव के विस्तृत कार्यक्रम की घोषणा कर दी। इस कार्यक्रम के मुताबिक 29 जून तक नामांकन हो सकेंगे। जिस भी उम्मीदवार को निर्वाचक मंडल के कुल 10,98,803 वोट मूल्य में 50 प्रतिशत से ज्यादा मूल्य के वोट मिलेंगे, वह उम्मीदवार देश का अगला यानी 16वां राष्ट्रपति होगा।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति के चुनाव में 776 सांसद और 4033 विधायक हिस्सा लेते हैं यानी कुल मिलाकर 4,809 मतदाता इस चुनाव में हिस्सा लेते हैं, जिनमें से अलग अलग प्रांतों के विधायकों का वोट मूल्य अलग अलग होता है। राष्ट्रपति के चुनाव में व्हिप लागू नहीं होता और मतदान पूरी तरह से गुप्त होता है यानी किसी भी पार्टी का कोई भी मतदाता अपनी अंतर्रात्मा की आवाज़ पर वोट दे सकता है। लेकिन इस तरह की अंतर्रात्मा की पुकार आजतक के इतिहास में सिर्फ एक ही बार सुनी गई है, जब इसका आह्वान तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया था।
सवाल है, क्या राष्ट्रपति के चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन राजग को कोई दिक्कत आयेगी? आंकड़ों के विश्लेषण से तो ऐसा नहीं लगता कि भाजपा और राजग को राष्ट्रपति चुनाव में किसी तरह की परेशानी का सामना करना पड़ेगा। हालांकि ममता बैनर्जी पिछले कुछ महीनों में कई बार कह चुकी हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में खेला होबे। अगर अंदर ही अंदर किसी बड़ी योजना पर काम हो रहा हो और राजग के ही मतदाता अपने उम्मीदवार से विश्वासघात करें, तब तो अलग बात है वरना महज 1.2 फीसदी वोटों से दूर राजग आसानी से राष्ट्रपति चुनाव का प्रबंधन कर लेगा। दरअसल पिछले दिनों पांच अलग-अलग राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए 0.5 फीसदी वोटों की कमी थी, लेकिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कई राज्यों में कई सीटें गंवा दी हैं, उसके कारण अब वोटों की जरूरत बढ़कर 1.2 फीसदी हो गई है।
साल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल (सोनेलाल पटेल) के साथ मिलकर 312 सीटें जीती थीं, लेकिन साल 2022 में ये सीटें घटकर 273 रह गई हैं यानी 39 सीटें पिछले चुनाव के मुकाबले कम हो गई हैं। इस कारण भाजपा के देश के इस सबसे प्रमुख राज्य से राष्ट्रपति चुनावों के संदर्भ में 0.9 फीसदी वोट कम हो गये हैं। इसी तरह उत्तराखंड में भी भाजपा की सीटें पिछली बार की 56 से घटकर 47 रह गई हैं और मणिपुर में भी भाजपा के नेतृत्व वाले राजग की सीटें 36 से घटकर 32 रह गई हैं। इसी तरह गोवा में 28 से घटकर 20 हुई हैं। पंजाब में भाजपा व अकाली दल का सालों पुराना गठबंधन टूट चुका है।
इस तरह देखा जाए तो हाल के महीनों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद के समग्रता में भाजपा वोट कम हुए हैं। इसलिए ममता बैनर्जी या दूसरे विपक्षी दल भले कुछ कहने के लिए कह दें वरना लगता नहीं है कि भाजपा को अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनने में कोई परेशानी होगी। दरअसल भाजपा को अपनी पसंद का राष्ट्रपति चुनवाने के लिए जिस 1.2 वोट फीसदी की ज़रूरत है, उसे आसानी से उड़ीसा के नवीन पटनायक और आंध्र प्रदेश के जगनमोहन रेड्डी पूरी कर देंगे। हालांकि रणनीति के तौरपर नवीन पटनायक ने साफ  शब्दों में कहा है कि जब तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं होती, तब तक यह कहना बहुत मुश्किल है कि हम किसको वोट देंगे, लेकिन पिछले कई सालों के अनुभव से अगर देखा जाए तो नवीन पटनायक हमेशा अंत में भाजपा के साथ जाते हैं और जगनमोहन रेड्डी तो वैसे भी भाजपा के साथ ज्यादा सहज रहते हैं। गौरतलब है कि एनआरसी के मुद्दे पर भी और कश्मीर में अनुच्छेद 370 के मामले में भी इन दोनों ने भाजपा का साथ दिया था। इसलिए लगता नहीं है कि भाजपा को किसी तरह की दिक्कत आयेगी।
साल 2017 में जब 15वें राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद चुने गये थे, तब राजग को अपने 5.27 लाख वोटों के साथ साथ तेलंगाना राष्ट्र समिति, बीजू जनतादल और वाईएसआर कांग्रेस के अलावा अन्य दलों की मदद से 1.33 लाख वोट और हासिल हुए थे। इस तरह उन्होंने अपनी प्रतिद्वंद्वी मीरा कुमार को करारी मात दी थी। राष्ट्रपति के चुनाव में विजयी उम्मीदवार को 50.1 फीसदी वोटों की ज़रूरत होती है और 2017 में रामनाथ कोविंद को 65.35 फीसदी वोट मिले थे। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उनकी कितनी शानदार जीत हुई थी। इस बार भी लगता है कि राजग अगर ऐसी नहीं तो लगभग इसी तरह की जीत के आसपास जाकर टिकेगा। 
जहां तक यह सवाल है कि अगला राष्ट्रपति कौन होगा तो जब तक वास्तव में अगले राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की सार्वजनिक रूप से घोषणा नहीं हो जाती, तब तक कोई भी राजनीतिक विश्लेषक दावे से अनुमान नहीं लगा सकता कि कौन शख्स अगला राष्ट्रपति बनने जा रहा है? हालांकि जिन नामों की चर्चा है, उनमें उत्तर प्रदेश की मौजूदा राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, आरिफ  मोहम्मद खान, वेंकैया नायडू और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार का भी नाम लिया जा रहा है, लेकिन लगता नहीं है कि इनमें से आरिफ  मोहम्मद खान के अलावा किसी और नाम का कोई मजबूत आधार बनता है। वैसे अमित शाह और खुद प्रधानमंत्री मोदी में चौंकाने की इतनी सहज आदत है कि हो सकता है, जब राष्ट्रपति के उम्मीदवार की घोषणा हो, तब बिल्कुल ऐसा नाम निकले, जिसकी दूर-दूर तक लोग कल्पना तक न कर रहे हों, तो यह आश्चर्य नहीं होगा। हो सकता है कि चौंकाने में माहिर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी कोई ऐसा शख्स ले आए जिसका नाता देश के शेड्यूल ट्राइब समुदाय से हो जिसका अभी तक कोई राष्ट्रपति नहीं बना, या वे किसी अल्पसंख्यक को लाकर देश से ज्यादा विदेश को चौंका दें कि भारत में अल्पसंख्यकों का कितना महत्व है। वैसे देश में आज़ादी के बाद से मुस्लिम समुदाय के कई राष्ट्रपति हो चुके हैं। फिर भी अगर भाजपा आरिफ  मोहम्मद खान को राष्ट्रपति का उम्मीदवार घोषित कर दे तो आश्चर्य नहीं होगा। वैसे आरिफ  सत्तारूढ़ भाजपा के लिए बेहद सूटेबल हैं। वह विद्वान हैं। कट्टर इस्लामपंथियों से तर्कों, विवरणाें और तथ्यों के साथ ज़ोरदार बहस कर सकते हैं। भाजपा और आरएसएस के समर्थक हैं तथा पढ़े लिखे और आम से लेकर बौद्धिक समाज तक में प्रिय हैं। लेकिन जब तक घोषणा न हो जाए, तब तक हर अनुमान महज अनुमान ही है।
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