मेरा भारत महान

आज फिर छक्कन मिल गये। उनके चेहरे पर गुस्से की कोई लकीर नहीं थी। वह परम सन्तुष्ट लग रहे थे, बिल्कुल उस रचनाकार की तरह जो अपने द्वारा आयोजित किसी गोष्ठी में अपना अभिनंदन करवा कर चला आ रहा हो, और खर्चे के भुगतान के समय उसका आयोजकों से झगड़ा भी हुआ न हो, कि ‘आपने इस आयोजन में मेरी उम्मीद से अधिक पैसे खर्च कर दिये।’
या उस गायक की तरह जिसे अपनी आवाज़ में गाया अपना गीत सुन कर लगता हो, न भूतो न भविष्यति। अपने गायन पर सिर झुकने का रिवाज़ तो बहुत पहले से चल निकला था, लेकिन अपनी ही आवाज़ पर इतने भाव-विह्वल हो गये? क्या उन्हें ऊंचा सुनना तो शुरू नहीं हो गया। सोचा, अभी पूछ पड़ताल कर लेते हैं। अन्देशा सही है तो उनके अगले जन्म दिन पर उनके बहरे होते कानों के लिए ऊंचा सुनने वालों की मशीन भेंट कर देंगे, ताकि वह गायन विद्या का कल्याण करना तो बन्द कर दें। 
लेकिन छक्कन मियां का क्या भरोसा? क्या पता कैनवास पर अपनी तूलिका से रंगों की बरसात ही करने लगे हों। सतरंगे इन्द्र धनुष कितने भोंडे हो सकते हैं? एक दिन हमने उनके चित्र देख कर माथा पीटा था। लेकिन हमारे माथा पीटने को वह हमारी प्रशंसा के आदाब का कोई नया तरीका मान बैठे और बस ‘बन्धु-बन्धु’ कह कर हमें गले लगा लिया। 
क्या करें भैय्या। इस देश का हर छक्कन सर्वगुण सम्पन्न है। वह लेखक भी है, चित्रकार भी। और गाता है तो उसकी आवाज़ क्षितिज का सीना फाड़ देती है। 
हमें यह देख कुछ अजीब नहीं लगता। देश की राजनीति की शतरंज में भी ऐसे खिलाड़ी दिन-रात हमसे बगलगीर होते रहते हैं। कल तक वे इसका क.ख.ग. भी नहीं जानते थे, आज अन्धे के हाथ बटेर लग जाने की तरह सत्ता की चाबी क्या हाथ लग गई हर विषय के सर्वज्ञाता हो गये। कठिन से कठिन समस्या के शार्टकट रास्ते हमें बताने लगे। सबसे पहले उन्होंने हमें ‘अहम ब्रह्मास्मि’ का नया अर्थ समझाया। वह यह नहीं था कि हम सब में परमात्मा का दैवी अंश है, इसलिए सदा सकारात्मक सोचें, बल्कि यह था कि हम सोचें कि मैं ही ब्रह्मा हूं। मेरे सामने शीष नवाओ, मेरे चरण पखारो, और जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, तो मेरे नाती-पोते किस लिए हैं। हमारी यह दैवी शक्ति पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। इसलिए दूसरों के परिवारवाद के विरुद्ध नारा लगाओ, और अपनों की महफिल सजाओ। 
कल जो रंक थे, आज वे राजा होते ही कृपा निधान हो गये। सातवें आसमान से बोलने लगे, क्या समस्या है तुम्हारी? बेकारी है। मांगने पर भी काम नहीं मिलता, तो काम मांगने ही क्यों जाते हो? जानते नहीं इस देश की बरसों से बेकार पीढ़ी ने अब काम मांगना बन्द कर दिया है। पुरानी बात नये कलेवर में आ गई है। ‘अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गये सबके दाता राम।’ 
और अब दाता भी हम हैं, और भिक्षा पात्र भी हमारे हाथ में ही है, तो भला चिन्ता किस बात की? जी नहीं हम उन आयोजित, नियोजित और प्रायोजित भिखारी ब्रिगेडों की बात नहीं कर रहे, जो आपको समाज, अर्थतंत्र और राजनीति के हर चौराहे पर हाथ फैलाये दिखाई देते हैं, और फिर इसे अपनी नीति, दृष्टि और समझ की अभूतपूर्व सफलता मान कर हम अपनी पीठ खुद ही थपथपा लेते हैं। यह अपनी पीठ खुद थपथपा लेना तो एक ऐसा संस्कार बन गया है हुज़ूर, जिससे लगता है आज हर छोटे-बड़े, धनी-गरीब, कलाकार और उनके जैसे मखौटों ने, सब का मन मोह लिया है।
पहले कहते थे, ‘डर लगे तो गाना गा।’ उसके बाद कहने लगे, ‘भूख लगे तो ऊंची हवेली का प्रशस्ति गायन कर।’ अब तो देखो इस महान देश में सब हवेलियां भाव-विह्वल हो गयी हैं। अस्सी करोड़ जनता है न, उसे रियायती अनाज बांटा जा रहा है। जो बाकी हैं उनके लिए साझी रसोइयों का इंतज़ाम किया जा रहा है, ताकि इस देश में न कोई काम मांगने की वाचालता करे, और न कोई भूख से मरे। बस हमें इतना आश्वस्त अवश्य कर दो कि देश के दस प्रतिशत नब्बे प्रतिशत सम्पदा पर सदा शासन करेंगे, और बाकी नब्बे प्रतिशत गीत गायेंगे, ‘ऐ मालिक तेरे बन्दे हम।’ यूं गाना गाते अपनी गायन कला पर मुग्ध हो जायेंगे और अपने देश को दुनिया का सबसे बड़ा प्रगतिशील, आधुनिक और तेज़ी से आगे बढ़ने वाला देश घोषित कर देंगे। 
सुनो, अभी हमारे बड़े भैय्या अमरीका ने भी तो घोषित कर दिया कि बहुत आपदा सही महामारी के प्रतिबन्धों में हमने। कल कारखाने ही क्या, किसानों के भी भूखे मरने की नौबत आ गई। बेकारी बढ़ी, महंगाई बढ़ी, भ्रष्टाचार बढ़ा, लेकिन भई वल्लाह, कैसा धीर गम्भीर देश है? इनके चेहरों पर तनिक भी शिकन नहीं आयी। पिछड़ेपन की सब बेड़ियां तोड़ कर किस तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं हम लोग। इतनी गरीबी, हायतौबा के बावजूद भैया ने कहा, इनकी विकास दर, इनकी निवेश दर का बढ़ना काबिले तारीफ है। रिकार्ड संख्या में देश के अरबपतियों का खरबपति हो जाना काबिले तारीफ है। अपने देश को हथियारों और पैट्रोल-डीज़ल की खरीद की मंडी बना देना काबिले तारीफ है।
इस तारीफ को सुनिये। देखो महाप्रभु अपने आर्थिक निवेश के मृग जाल लेकर आपके देश में पधार रहे हैं। शेष आपको तो पौन सदी से अपनी अक्षमता की बैसाखियों के सहारे चलते हुए अपनी महानता का बखान करने की आदत हो ही गई है। इसे एक बार फिर बखानिये और कह दीजिए, ‘मेरा भारत महान्।’ छक्कन ने समझाया और परम संतोष से गद्गद् हो गये।