फसली विभिन्नता—बासमती की काश्त के माध्यम से

धान की पौध लगभग लग चुकी है। बासमती किस्मों की पौध लगाने का यह उचित समय है। इस वर्ष धान की काश्त 25 लाख हैक्टेयर रकबे पर किये जाने की सम्भावना है। गत वर्ष 25.81 लाख हैक्टेयर पर धान की रोपाई की गई थी और 4.85 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती किस्मों की काश्त हुई थी। अब बासमती किस्मों की पौध लग रही है। इस वर्ष बासमती की काश्त अधीन रकबा कुछ बढ़ने की संभावना है क्योंकि मुख्यमंत्री भगवंत मान ने संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्यों को आश्वासन दिलाया था कि बासमती का न्यूनतम समर्थन मूल्य होगा। दूसरी ओर बासमती की काश्त से 15-20 प्रतिशत पानी की बचत होती है। 
गत वर्ष बासमती किस्मों का किसानों को मंडी में दाम भी अच्छा मिला था। पूसा बासमती-1121 का दाम औसतन 4000 रुपये प्रति क्ंिवटल, पूसा बासमती-1718 का औसतन 3800 रुपये प्रति क्ंिवटल, पूसा 1401 (पूसा बासमती-6) का औसतन 3500-3600 रुपये क्ंिवटल तथा पूसा बासमती-1509 किस्म का 3200 क्ंिवटल के लगभग रहा था। बासमती का दाम किसानों को 3000 रुपये प्रति क्ंिवटल से अधिक मिल जाए तो वह धान के मुकाबले इसकी बिजाई को प्राथमिकता देंगे। बासमती  की काश्त से प्रदूषण भी कम होता है। फसली विभिन्नता के लिए यह उचित फसल है। 
पंजाब बासमती के जीआई ज़ोन में है तथा यहां पैदा की गई बासमती क्वालिटी के पक्ष से भी बढ़िया मानी जाती है। वर्ष 2020-21 के दौरान 40.32 लाख मीट्रिक टन बासमती का निर्यात हुआ और देश को 29850 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई। इसमें पंजाब का 40 प्रतिशत तक योगदान था। पंजाब सरकार इस वर्ष भी बासमती की इस गुणवत्ता को कायम रखने के लिए यत्नशील है। आल इंडिया बासमती राइस एक्सपोर्टर्ज एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष तथा बासमती के प्रसिद्ध एक्सपोर्टर विजय सेतिया के अनुसार चाहे इस वर्ष अभी तक पिछले वर्ष के मुकाबले बासमती का निर्यात कम हुआ है परन्तु इसकी मांग बढ़ने की उम्मीद है। बासमती महंगी होने के कारण निर्यात की मांग में कुछ कमी आई है। 
आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक एवं उप कुलपति डा. अशोक कुमार सिंह (जो बासमती किस्मों के प्रसिद्ध ब्रीडर हैं और कई पुरस्कारों से सम्मानित हैं) कहते हैं कि किसानों को अच्छे दाम पर अपनी फसल बेचने के लिए कुल रकबे में से लगभग 20 प्रतिशत रकबे पर ही बासमती लगानी चाहिए। बासमती की अच्छी काश्त के लिए निम्ननिखित किस्में सिफारिश की जाती हैं :
पूसा बासमती-1121 : यह सब किस्मों से अधिक प्रचलित किस्म है तथा विदेशों में उपभोक्ताओं की मन-पसंद किस्म है। इसके चावल की लम्बाई सब किस्मों के चावल से अधिक है। चावल खुशबूदार एवं खाने के लिए स्वादिष्ट होते हैं। पके हुए चावल आपस में जुड़ते नहीं। भारत से निर्यात की रही बासमती का बहुत बड़ा हिस्सा पूसा बासमती-1121 के लेबल अधीन ही विदेशों को भेजा जाता है। प्रगतिशील किसान इसका औसतन उत्पादन 15-16 क्ंिवटल प्रति एकड़ ले रहे हैं।
पूसा बासमती-1718 : यह किस्म पूसा बासमती-1121 से तैयार की गई है और झुलस रोग के जीवाणु की इस समय पंजाब में पाई जाती सभी किस्मों के हमले का मुकाबला करने में सक्षम है। यह पकने को पूसा बासमती-1121 से 5-5 दिन अधिक लेती है। इसके चावल लम्बे एवं पतले हैं तथा पकाने के बाद खाने में स्वादिष्ट होते हैं। प्रगतिशील किसान इसका उत्पादन 22-24 क्ंिवटल तक ले रहे हैं चाहे औसतन उत्पादन 20 क्ंिवटल से कुछ नीचे है। 
पूसा-1401 (पूसा बासमती-6) : इस किस्म का चावल बहुत बढ़िया है। यू.के. तथा अन्य कई देशों में पसंद किया गया है। पूसा बासमती-1121 के मुकाबले चावल की क्वालिटी के पक्ष से यही किस्म खड़ी होती है, परन्तु इस पर कई स्प्रे करने पड़ते हैं। यह पकने को लम्बा समय लेती है। प्रगतिशील किसान इसका औसतन उत्पादन 28-30 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक प्राप्त कर रहे हैं। 
पूसा बासमती-1509 : यह कम समय में पकने वाली किस्म है, जो पकने को 115-120 दिन लेती है। रोपाई के बाद यह 95 दिनों में पक जाती है। इसके पौधे की औसतन लम्बाई 90-92 सैं.मी. है। इस किस्म के चावल अधिक लम्बे तथा पतले होते हैं जो पकने के बाद लगभग दोगुणा लम्बे हो जाते हैं और खुशबू भी छोड़ते हैं। प्रगतिशील किसान इससे 24-25 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक का उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं। 
वैज्ञानिकों द्वारा इसकी रोपाई जुलाई में सिफारिश की गई है ताकि यह कम पानी से मॉनसून की बारिश से ही पक कर तैयार हो जाए, परन्तु किसान इसे अगेती ही लगा लेते हैं। किसानों का कहना है कि अगेती लगा कर यह किस्म उत्पादकता अधिक देती है और उन्हें मंडी में भी ज़्यादा दाम मिल जाता है। इसका विकल्प पूसा बासमती-1692 के रूप में निकाला गया है जिसका किसानों के अनुसार उत्पादन पीबी-1509 के मुकाबले कुछ अधिक है। 
इसके अतिरिक्त डा. अशोक कुमार के नेतृत्व में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने 3 और नई किस्मे विकसित की हैं। पीबी-1847 किस्म पूसा बासमती-1509 का संशोधित रूप है। पीबी-1885 किस्म पूसा बासमती-1121 का संशोधित रूप है तथा पीबी-1886 किस्म पूसा बासमती-6 (पूसा-1401) का संशोधित रूप है। ये तीनों किस्में झुलस एवं भुरड़ (बीएलबी तथा बलास्ट) रोग का मुकाबला करने में सक्षम हैं। इन किस्मों के अतिरिक्त सीएसआर 30 तथा पीबी-7 किस्में हैं। पीबी-7 किस्म पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की गई है। 
सीधी बिजाई से इस वर्ष बहुत कम रकबे पर धान लगाया गया है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग बासमती किस्मों को सीधी बिजाई से लगाने के लिए प्रयासरत है।