राष्ट्रपति चुनाव के लिए हलचल

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई, 2022 को समाप्त हो रहा है। इससे पूर्व नये राष्ट्रपति का चुनाव किया जाना है। कम समय रहने के कारण इसके लिए गतिविधियां तेज़ हो गई हैं। चाहे संविधान के अनुसार राष्ट्रपति  की कार्यकारी शक्तियां कम होती हैं। ये शक्तियां प्रधानमंत्री तथा उनकी कैबिनेट के पास रहती हैं। परन्तु देश का प्रतिनिधित्व राष्ट्रपति ही करता है तथा उसे देश का प्रमुख माना जाता है। एक तरफ सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा द्वारा राष्ट्रपति के चुनाव हेतु अपने उम्मीदवार संबंधी विचार-विमर्श किया जा रहा है तथा उसके द्वारा कुछ विपक्षी नेताओं तक भी सम्पर्क किया गया है। इसी संबंध में गत दिवस पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी द्वारा भी देश की अन्य विपक्षी पार्टियों को राष्ट्रपति पद के लिए किसी संयुक्त उम्मीदवार के नाम पर सहमति बनाने हेतु विचार-चर्चा के लिए निमंत्रण दिया गया था।
राष्ट्रपति का चुनाव, चुनाव मंडल द्वारा होता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के साथ-साथ राज्य विधानसभाओं के चुने हुये सदस्य भाग लेते हैं। जनसंख्या के अनुपात से एक विशेष फार्मूले द्वारा सदस्यों के वोट की कीमत निर्धारित की जाती है। इसे अनुपातक प्रतिनिधित्व भी कहा जाता है। इस तरह यह चुनाव प्रत्यक्ष रूप से न होकर देश के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। ममता बैनर्जी गत लम्बी अवधि से इस चुनाव हेतु सक्रियता दिखा रही हैं। गत बुधवार को उन्होंने देश की 22 पार्टियों को बैठक के लिए निमंत्रण भेजा था, जिनमें 17 विपक्षी पार्टियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इस बैठक में ‘आप’, तेलंगाना राष्ट्र समिति, शिरोमणि अकाली दल तथा ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल ने भाग नहीं लिया था। चाहे इस बैठक में राष्ट्रपति पद के लिए कुछ नामों की चर्चा ज़रूर हुई थी परन्तु इनमें  से किसी के नाम पर भी अभी सर्वसम्मति नहीं बन सकी। दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जिसका नेतृत्व भाजपा कर  रही है, के साथ चाहे अन्य पार्टियां तो कम हैं परन्तु समूचे आकलन के अनुसार इस बार भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का समर्थन करने वाले व्यक्ति के ही राष्ट्रपति चुने जाने की सम्भावना प्रतीत होती है। गत महीनों में हुये 5 राज्यों के चुनावों में चाहे भाजपा तथा उसके भागीदारों की विधानसभाओं में संख्या पहले से कम है परन्तु इसे इतना कम भी नहीं कहा जा सकता कि इस उच्च पद के लिए चुनाव में उन्हें कोई बहुत बड़ी समस्या का सामना करना पड़े। इस गठबंधन को यह चुनाव जीतने के लिए सिर्फ 1.2 प्रतिशत और वोटों की ज़रूरत है। उनकी यह ज़रूरत ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक तथा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगमोहन रैड्डी पूरी कर सकते हैं। तेलंगाना राष्ट्रीय समिति ने भी विपक्षी पार्टियों की बैठक में भाग नहीं लिया था। वह इस चुनाव के लिए केन्द्र सरकार के पक्ष में मतदान कर सकती है परन्तु इन आकलनों के बावजूद एकत्रित हुए विपक्षी दलों द्वारा एकजुट होकर यह चुनाव लड़ने के लिए प्रयासरत होना ज़रूरी है ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती के साथ बनाये रखा जाए तथा भविष्य में केन्द्र सरकार विपक्षी दल को नज़र अंदाज़ न कर सके।
यदि समूची विपक्षी पार्टियां एकजुट हो कर इसके लिए प्रयासरत होती हैं तो वह राष्ट्रपति के इस चुनाव में सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती ज़रूर बन सकती हैं। लोकतंत्र में यदि सरकार के समक्ष मजबूत विपक्षी दल होगा तो सरकार को भी अपनी कार्यशैली के प्रति सुचेत रहना पड़ेगा। आज केन्द्र में मोदी सरकार जिस तरह की कार्यशैली पर चलने को अधिमान दे रही है, उसके लिए विपक्षी दल का मज़बूत होना और भी आवश्यक लगने लगा है, तभी वह वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में अपना कोई मज़बूत आधार बनाने में सफल हो सकेगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द