आज के खेलों की कल की दुनिया...!    

हमारे जीवन के हर क्षेत्र में तकनीका का जबरदस्त हस्तक्षेप बढ़ रहा है। खेल की दुनिया भी इससे अछूती नहीं है। आज हम जिन खेलों को जिस तरीके से खेल और देख रहे हैं, अगले पांच सालों में उसमें आमूलचूल बदलाव हो जायेगा। आज की पीढ़ी के खिलाड़ी इस बात की कल्पना भी नहीं कर पाते कि एक ज़माना था, जब उनके खेलों का सारा प्रबंधन मैनुअल तरीके से होता था। न खिलाड़ियों को अपने प्रदर्शन की बारीकियां समझने के लिए कंप्यूटर थे और न ही हर समय अपने सहयोगियों से सम्पर्क में रहने के लिए मोबाइल फोन। लेकिन तब भी स्पोर्ट्स की दुनिया में एक से बढ़कर एक रिकॉर्ड बनते, बिगड़ते थे। लेकिन आज हमारे खेलों की ही नहीं जीवन के हर पल की सारी गतिविधियां आधुनिक तकनीक के नियंत्रण में हैं। खास तौर पर लैपटॉप के बिना तो अब किसी भी प्रोफेशनल्स का काम ही नहीं चलता, चाहे वह कोई खिलाड़ी पेशेवर हो या गैर पेशेवर।इसी सबको देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि अगले पांच सालों में ये पांच विभिन्न तकनीकें हमारी खेल की दुनिया को आमूलचूल ढंग से बदल डालेंगी। इनमें पहली है वर्चुअल रियल्टी यानी आभासी वास्तविकता। दरअसल वर्चुअल रियल्टी हमें एक ऐसे कृत्रिम मगर वास्तविक लगने वाले वातावरण में रखती है जिससे हम अपने खेल के प्रदर्शन के रेशे-रेशे को देख व समझ सकते हैं। वर्चुअल रियल्टी वह पहली ऐसी तकनीकी है जो हमारे खेलों की दुनिया को पूरी तरह से बदलने के लिए तैयार है। इसके चलते अब किसी को खेल का जीवंत लुत्फ  लेने के लिए स्टेडियम जाने की ही जरूरत नहीं होगी। अब स्टेडियम से ऐसे प्रसारण शुरु होने वाले हैं, जो वर्चुअल रियल्टी तकनीक के जरिये स्टेडियम को आपके ड्राइंग रूम में ले आयेगी। खेल देखने का यह ऐसा अनुभव होगा कि जब कोई क्रिकेटर तेजतर्रार शॉट मारेगा तो उस शॉट की आवाज़ तो कान में पड़ेगी, एकबारगी आंखें कौंध जायेंगी कि गेंद ऊपर तो नहीं आ रहीं। दुनिया के कई देशों में ट्रायल के तौर पर वीआर प्रसारण शुरु हो चुका है, जल्द ही ऑस्ट्रेलिया और अमरीका में यह दर्शकों का अनुभव बनेगा। शुरुआत गोल्फ, स्विमिंग और बास्केट बॉल से होने जा रही है। दूसरी तकनीक का नाम है—एआर यानी ऑगमेंटेंड रियल्टी यानी ऐसी वास्तविकता जिसको कई और चीजों से जोड़कर समृद्ध किया गया हो। कहने का मतलब आप खिलाड़ियों के जादुई प्रदर्शन को बिल्कुल साक्षात अपने पांच फुट आगे होते हुए तो देखेंगे ही, इसको और बेहतर करने के लिए इस वास्तविकता को संवर्धित भी किया जायेगा यानी उसे और बेहतर लगभग चमत्कारिक बनाया जायेगा। खेलों की दुनिया को बदलने वाले अगले महत्वपूर्ण कारक होंगे सेंसर और वियरेबल्स। सेंसर और वियरेबल्स आज हर जगह हैं और पहले से ही हमारे जीवन को जबरदस्त ढंग से प्रभावित कर रहे हैं। खिलाड़ियों विशेषकर पेशेवर एथलीटों ने हाल के सालों में अपने खेल प्रदर्शन की एक-एक क्षण का रियल टाइम डाटा लेकर यह जानने की कोशिश की है कि उन्हें किसी समय कितनी एनर्जी की ज़रूरत होती है। क्या करते हुए वह कितना थकते हैं। किन गतिविधियों और एंगल्स में उनके शरीर का कौन भाग कहां होता है? थकान कैसे बढ़ती है और उसे कैसे मैनेज किया जा सकता है और मानसिक स्थिति को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है। ये तमाम चीजें और बातें सेंसर और वियरेबल्स बहुत सूक्ष्म तरीके से पूरे ब्योरे के साथ हमें बताते हैं।क्या खेलों की दुनिया को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी और रोबोट पहले जैसी रहने देंगे? उत्तर है नहीं। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का असर तो आज भी सभी खेलों में साफ तौर पर दिख रहा है। प्रसारण में कैमरे का सही कोण और खिलाड़ी के स्वास्थ्य की देखभाल, उसके पोषण तथा प्रशिक्षण के दौरान निगरानी, स्काउटिंग, कोचिंग, प्रदर्शन का विश्लेषण। इन सब चीजों में आज भी आर्टिफिशियल इंटलीजेंस अपने ढंग से योगदान दे रही है। भविष्य में यह और ज्यादा तथा सटीक होगा। यही हाल खेलों की दुनिया में रोबोटिक तकनीक का हो रहा है और आने वाले दिनों में और बेहतर ढंग से होने वाला है। हो सकता है भविष्य में आपको मैदान में रेफरी न दिखें, रोबोट दिखें। क्योंकि उनकी ईमानदारी और उनका चौकसपन असंदिग्ध होगा। रोबोट मानव आंख की तुलना में चीजों को ज्यादा सटीक और कई कोणों से देख सकता है। अभी पूरी दुनिया में खिलाड़ियों को, टीमों को अपने खिलाफ  रेफरी या अंपायर के होने की शिकायत रहती है। रोबोट अंपायर से ये सारी शिकायतें अपने आप दूर हो जायेंगी। इस तरह अगले पांच सालों में तकनीक हमारे खेलों की दुनिया को पूरी तरह से बदल देगी।        

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