सृजित किया जा रहा है भय का माहौल

गुजरात में 20 वर्ष पूर्व दंगे हुये थे जिनमें हज़ार से अधिक लोग मारे गये थे तथा सैकड़ों ऐसे लोग थे जिनके संबंध में कुछ पता ही नहीं चल सका था। इन दंगों में व्यापक स्तर पर लोग घर से बेघर हो गये थे। घटना 2002 की है जब गोधरा में रेलगाड़ी के एक डिब्बे को कुछ साम्प्रदायिक तत्वों की ओर से आग लगा दी गई थी जिसमें 69 लोग मारे गये थे। इस घटना के बाद पूरे प्रदेश में हिंसा भड़क उठी थी। उस समय नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे जिन पर यह आरोप लगता रहा है कि उन्होंने भड़के हुये इन दंगों के संबंध में तुरंत कोई कार्रवाई नहीं होने दी थी जिसके कारण बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु हो गई थी।
अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री होने के समय गुजरात में जाकर नरेन्द्र मोदी के समक्ष यह कहा था कि वह विदेश जा रहे हैं परन्तु इन दंगों को लेकर वहां वह क्या मुंह दिखाएंगे। मुख्यमंत्री ने इतने भयावह घटनाक्रम के बाद भी अपनी ओर से कोई ऐसा बयान नहीं दिया था जो दंगा पीड़ितों को ढाढस देने वाला हो परन्तु इस संबंध में जितने भी सामाजिक कार्यकर्ता सक्रिय हुये थे, उन्हें निरुत्साहित करने के लिए प्रदेश सरकार पूरी तरह सक्रिय रही थी। इन दंगों में अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी के इलाके में पूर्व सांसद अहसान ज़ाफरी मारे गये थे जबकि उनकी पत्नी ज़़िकया ज़ाफरी ने बार-बार उच्च अधिकारियों को घटित हो रहे इन भयानक दंगों के संबंध में निरन्तर जानकारी दी थी परन्तु प्रशासन अहसान ज़ाफरी सहित अन्य लोगों को बचाने में विफल रहा था जिसके बाद प्रदेश सरकार पर किये जाते सन्देह का घेरा और भी विशाल हो गया था। इसके बाद यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा था जिसके निर्देशों पर विशेष जांच दल का गठन किया गया था। इस जांच दल ने 2012 को अपनी रिपोर्ट में मुख्यमंत्री सहित 63 अन्य व्यक्तियों के निर्दोष होने की रिपोर्ट दी थी। इस संबंध में ज़िकया ज़ाफरी निरन्तर न्याय प्राप्त करने के लिए अदालतों के चक्कर लगाती रहीं जिनके फैसलों से उसे निराशा का मुंह देखना पड़ा। अब सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया है कि ये दंगे नियोजित साज़िश का हिस्सा नहीं थे इसलिए उन्होंने विशेष जांच दल की ओर से दी गई रिपोर्ट को उचित ठहराया है परन्तु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि उस समय उच्च प्रशासनिक अधिकारियों ने दंगों की गम्भीरता के प्रति लापरवाही एवं बेरुखी वाला रवैया धारण किया हुआ था। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को आधार बना कर मुम्बई की सामाजिक कार्यकर्ता तीसता सीतलवाड़ पर प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज की गई है तथा उनके साथ दो अन्य कार्यकर्ताओं को भी शामिल किया गया है। प्राथमिक रिपोर्ट के अनुसार कार्यकर्ताओं ने झूठी जानकारी देकर ज़िकया ज़ाफरी के माध्यम से दंगों के मामले में अदालतों में याचिकाएं डालीं तथा यह भी कि इन व्यक्तियों की ओर से विशेष जांच दल को गलत जानकारियां दी गईं। तीसता सीतलवाड़ गुजरात के दंगों के दौरान अत्याधिक सक्रिय रही थीं। उन्होंने स्थान-स्थान पर जाकर प्रभावित लोगों के साथ सम्पर्क किया तथा अपने दल को साथ लेकर उनकी प्रत्येक सम्भव सहायता करने का बीड़ा उठाया हुआ था। अब सीतलवाड़ को गुजरात के दंगों के प्रति झूठी जानकारी देने के आरोप लगा कर उनके विरुद्ध जो कार्रवाई शुरू की गई है, उस संबंध में देश के एक बड़े वर्ग में अतीव रोष उत्पन्न हुआ है।
उन्होंने केन्द्र सरकार के विरुद्ध साम्प्रदायिक, जातिवादी एवं जन-विरोधी नीतियां धारन करने का आरोप लगाया है तथा यह भी कि सरकार सामाजिक कार्यकर्ताओं को चुप करवाने एवं डराने की नीति पर चलते हुये दिखाई दे रही है। विगत समय में सरकार के संबंध में यह प्रभाव पुष्ट होता गया है कि वह अपनी केन्द्रीय जांच एजेंसियों सी.बी.आई. एवं इन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट (ई.डी.) के माध्यम से अपने विरोधियों पर निरन्तर दबाव बनाते आ रही है जिससे लोकतांत्रिक भावनाओं का हृस होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस समय विदेश दौरे पर हैं। वहां उन्होंने बार-बार भारत के विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने की बात कही है तथा इस पर गर्व भी व्यक्त किया है परन्तु इसके साथ-साथ देश में सरकार की निरन्तर विरोधियों को भय एवं डर के माहौल में रखने की नीति की भी उच्च स्वर में कटु आलोचना होना शुरू हो गई है जिसके कारण सरकार आज अनेक प्रश्न-चिन्हों के घेरे में घिरी हुई दिखाई दे रही है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द