यूरिया एवं डीएपी की खपत कम करने की ज़रूरत

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू) द्वारा की गई सिफारिशों के अनुसार मध्यम उपजाऊ भूमि पर यदि गेहूं की बताई मात्रा में डाइअमोनियम फास्फेट (डीएपी) 55 किलो या सुपरफास्फेट 155 किलो प्रति एकड़ खाद डाला हो तो धान को फासफोर्स खाद डालने की ज़रूरत नहीं परन्तु कुछ किसान जिन्होंने गेहूं में पूरी फासफोर्स  खाद डाली थी, वह अब धान को डीएपी भी डाले जा रहे हैं जिसमें 46 प्रतिशत फासफोर्स होता है। यही नहीं पीएयू द्वारा धान में 90+4.86 किलो प्रति एकड़ नीम लिप्त यूरिया (तत्वों में 42 किलो नाइट्रोजन) डालने का सुझाव दिया गया है, परन्तु अधिकतर किसान इससे दोगुणा खुराक 180200 किलो तक यूरिया धान को डालते हैं। 
किसानों का विश्वास है कि उनके द्वारा डाली जा रही खादों की खुराक से उन्हें प्रति एकड़ उत्पादन की अधिक प्राप्ति होती है। वह सिफारिश की गई खुराक की मात्रा से नाइट्रोजन भी अधिक डाल रहे हैं और फासफोर्स भी। हरी खाद (यदि इसमें 75 किलो प्रति एकड़ सुपरफासफेट डाली हो) के बाद लगाई जाने वाली धान की फसल को भी फासफोर्स वाली खाद डालने की ज़रूरत नहीं रहती परन्तु कुछ किसान ऐसी स्थिति में भी डीएपी डाले जा रहे हैं। पीएयू के अनुसार जहां धान की पराली या धान एवं गेहूं दोनों की पराली खेत में ही जोत दी गई हो तो उन खेतों की मिट्टी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा हो जाता है। ऐसे खेतों की मिट्टी की परख करवा कर यदि जैविक मादा ‘अधिक’ श्रेणी में आ जाए तो 8 वर्ष के बाद धान में 20 किलो प्रति एकड़ यूरिया की बचत की जा सकती है। गेहूं में भी किसान 180 से 200 किलो प्रति एकड़ यूरिया डाले जा रहे हैं, जबकि पीएयू को ओर से 110 किलो यूरिया गेहूं में डालने की सिफारिश की गई है। वह डीएपी के भी 2 थैले तक (100 किलो) प्रति एकड़ डाल देते हैं हालांकि पीएयू द्वारा अधिक से अधिक 55 किलो डीएपी डालने का सुझाव दिया गया है। बासमती में तो बहुत ही कम यूरिया डालने की ज़रूरत है। बासमती को अधिक यूरिया डालने से पौधे का फुलाट एवं ऊंचाई बढ़ जाती है, जिससे फसल गिर जाती है और उत्पादन कम हो जाता है। यूरिया खड़े पानी में तो डालना ही नहीं चाहिए। यूरिया डालने के 3 दिन बाद फसल को पानी देना चाहिए। पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-1718 तथा पंजाब बासमती-7 को प्रति एकड़ 36 किलो यूरिया, पूसा बासमती-1509 तथा पूसा बासमती-1692 को 54 किलो यूरिया (डेढ़ थैले कर डाला जा सकता है) और सीएसआर-30 किस्म की बासमती को 18 किलो यूरिया प्रति एकड़ ही दिये जाने की आवश्यकता है। नाइट्रोजन वाली खाद (यूरिया) का अधिक उपयोग करने से कीड़े-मकौड़े तथा बीमारियों का हमला भी अधिक होता है। सब्ज़ खाद (ढैंचा, जंतर या सण) या मूंगी की फलिया तोड़ने के बाद यदि उसे खेत में दबाया जाए तो भी यूरिया की खपत  कम हो जाती है। 
पंजाब में 31 लाख हैक्टेयर पर धान, बासमती तथा 35 लाख हैक्टेयर पर गेहूं की काश्त की जाती है। खादों की खपत 232 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर है जो दूसरे राज्यों से अधिक है। अधिकतर खपत यूरिया तथा डीएपी की है, चाहे कुछ मात्रा में म्यूरेट आफ पोटाश (एमओपी) भी इस्तेमाल किया जाता है। यूरिया तथा डीएपी की अधिक खपत का कारण धान, गेहूं का फसली चक्कर है। यूरिया तथा डीएपी भारत को बहुत बड़ी मात्रा में आयात करने पड़ते हैं, जिस पर बहुत खर्च आता है। गत वर्ष सन् 2021-22 में भारत ने 10.16 मिलियन टन यूरिया, 5.86 मिलियन टन डाइअमोनियम फास्फेट तथा 2.91 मिलियन टन म्यूरेट आफ पोटाश (एमओपी) आयात किये थे। इनकी कीमत 12.77 बिलियन डालर थी। इसके अतिरिक्त 25.07 मिलियन टन यूरिया, 4.22 मिलियन टन डीएपी तथा 8.33 मिलियन टन कम्पलैक्स मिक्सचज़र् खाद भारत में बनाये गए। चाहे इन खादों को बनाने के लिए कच्चा माल भी काफी मात्रा में आयात किया गया। भारत सरकार को जिस कीमत पर आयात करके यूरिया तथा डीएपी पड़ते हैं, किसानों को तो उस कीमत से बहुत कम कीमत पर यह खाद उपलब्ध है। भारत सरकार इसका अंतर सब्सिडी के रूप में देती है। सब्सिडी भी बड़ी भारी। गत वर्ष 1,53,658 करोड़ रुपये तक यह सब्सिडी दी गई और इस वर्ष 2,50,000 करोड़ रुपये तक यह सब्सिडी दिये जाने का अनुमान है। 
कीमियाई खादें विशेष करके यूरिया एवं डीएपी की खपत कम करने की आवश्यकता है। यूरिया की खपत कम करने के लिए सरकार ने 50 किलो भर्ती का थैला 45 किलो का कर दिया, क्योंकि आम किसान थैलों के हिसाब से ही खाद फसल में डालते हैं। इससे भारत सरकार के अनुसार 10 प्रतिशत यूरिया की बचत होने का अनुमान लगाया गया है। अधिक सब्सिडी सरकार को यूरिया पर देनी पड़ रही है। इस खाद की मांग भी अधिक है। इसकी खपत कम करने के लिए ‘नानौ यूरिया’ जो तरल रूप में आता है और फसल को बहुत जल्द लगता है, को भी इस्तेमाल किया जा सकता है। ‘नानौ यूरिया’ फसल को 85-90 प्रतिशत तक लाभ पहुंचाता है जबकि यूरिया 25 प्रतिशत तक। कई बार यूरिया फसल को सही वैज्ञानिक ढंगों से नहीं दिया जाता। नानौ यूरिया का छिड़काव पत्तों पर होता है जिससे पौधे को सीधी नाइट्रोजन मिल जाती है। इसके अतिरिक्त कम्पलैक्स खाद मिक्सचज़र् भी इस्तेमाल किये जा सकते हैं।
किसानों को इस संबंधी सही जानकारी देने की आवश्यकता है। जब तक उन्हें यह विश्वास नहीं होता कि यूरिया, डीएपी के मुकाबले नानौ यूरिया या कम्पलैक्स मिक्सचज़र् इस्तेमाल करने से कोई उत्पादकता प्रभावित नहीं होती, वह इस विकल्प को नहीं अपनाएंगे। कृषि एवं किसान भलाई विभाग तथा पंजाब कृषि ’वर्सिटी की ओर से दी जा रही प्रसार सेवा इस संबंधी वैज्ञानिक जानकारी एवं किसानों को विश्वास दिलाने के लिए आगे आए।