देवदार के घने जंगलों में स्थित  हिडिम्बा देवी मंदिर

हिडिम्बा देवी मंदिर पर्यटन नगरी मनाली की शान है। यहां आने वाला हर व्यक्ति माता के दरबार में हाज़िरी लगाता है। देवी के दर्शन के लिए प्रांगण में घंटों लम्बी लाइन में खड़े होकर श्रद्धालु माता के आगे अपना शीश झुकाते हैं। मनाली मॉल से एक किलोमीटर दूर देवदार के घने जंगलों के बीच स्थित लगभग 82 फुट ऊंचे पगौड़ा शैली के मंदिर का निर्माण कुल्लू के राजा बहादुर सिंह ने सन 1553 में करवाया था। मंदिर के अंदर माता हिडिम्बा की चरण पादुका हैं।पगौड़ा शैली इस मंदिर की खासियत है। लकड़ी से निर्मित इस मंदिर की चार छतें हैं। नीचे की तीन छतों का निर्माण देवदार की लकड़ी के तख्तों से हुआ है जबकि उपर की चौथी छत तांबे एवं पीतल से बनी है। नीचे की छत सबसे बड़ी, दूसरी उससे छोटी, तीसरी उससे भी छोटी और चौथी सबसे छोटी है। सबसे छोटी छत एक कलश जैसी नज़र आती है। करीब 40 मीटर ऊंचे शंकु के आकार में बने इस मंदिर की दीवारें पत्थर की हैं। प्रवेश द्वार और दीवार पर सुन्दर नक्काशी की गई है। अन्दर एक शिला है जिसे देवी का विग्रह रूप मानकर पूजा की जाती है। हर साल जेष्ठ माह में यहां मेला लगता है। यहां पर भीम के पुत्र घटोत्कच का भी मंदिर है।हिडिम्बा एक राक्षसी थी, जिसके भाई हिडम्ब का राज उस समय मनाली के आसपास के पूरे इलाके में था। हिडिम्बा ने महाभारत काल में पांचों पांडवों में सबसे बलशाली भीम से शादी की थी। हिडिम्बा ने प्रण लिया था कि जो उसके भाई हिडिम्ब को युद्ध में मात देगा, उससे वह शादी करेगी। अज्ञातवास के दौरान पांडव मनाली के जंगलों में भी आए थे और उसी समय यहां राक्षस हिडिम्ब और भीम के बीच युद्ध हुआ था। भीम ने हिडिम्ब को युद्ध में हराकर उसकी हत्या कर दी थी। इसके बाद हिडिम्बा ने भीम से शादी कर ली थी लेकिन भीम से शादी करने के बाद राक्षसी हिडिम्बा मानव बन गई थी। महाभारत के युद्ध में वीर घटोत्कच का नाम आता है। लोक कथाओं के मुताबिक, वह हिडिम्बा और भीम का बेटा था। मां के आदेश पर घटोत्कच ने युद्ध में अपनी जान देकर कर्ण के बाण से अर्जुन की जान बचाई थी। हिडिम्बा राक्षसी की तब से ही लोग पूजा करने लगे थे।बताया जाता है कि विहंगम दास नाम का शख्स एक कुम्हार के यहां नौकरी करता था। हिडिम्बा देवी ने विहंगम को सपने में दर्शन देकर उसे कुल्लू का राजा बनने का आशीर्वाद दिया था। इसके बाद विहंगम दास ने यहां के एक अत्याचारी राजा का अंत कर दिया था। वह कुल्लू राजघराने के पहले राजा माने जाते हैं। इनके वंशज आज भी हिडिम्बा देवी की पूजा करते हैं। कुल्लू राजघराने के ही राजा बहादुर सिंह ने हिडिम्बा देवी की मूर्ति के पास मंदिर बनवाया था।